Saturday 23 February 2013

The Story Of A Saint..

साधु बना है स्वादु नहीं
मेरे एक मित्र कई दिनों से परेशान चल रहे हैं। परेशानी का कारण भी ऐसा है कि जिसे भी वे समस्या का बखान करते, बदले में सिर्फ सांत्वना के उन्हें कोई कुछ नहीं देता। ऐसे में उनकी समस्या का हल नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में उनकी व्यथा बढ़ती ही जा रही है। मित्र के बड़े भाई का बेटा पिछले तीन माह से परिवार का मोह छोड़कर घर से भाग गया। मित्र का भतीजा पढ़ाई में काफी होनहार था। बीएससी करने के बाद पिछले दो साल पहले वह हरिद्वार में नौकरी तलाश करने गया था। वहीं, किसी अखाड़े में उसने शरण ली। यहीं से उसका हृदय परिवर्तन ऐसा हुआ कि एक दिन वह घर छोड़कर चला गया। मित्र ने भतीजे की काफी तलाश की। युवक की मां का रो-रोकर बुरा हाल था। उसका कहना था कि एक बार मेरे बेटे को सामने ले आओ। फिर मैं उसे कहीं जाने नहीं दूंगी। पर युवक ने भी सोच समझकर फैसला लिया था। वह क्यों फिर इस मोहमाया के संसार में वापस आता। वह तो कहीं एकांत में जा छिपा।
तलाशी अभियान जारी था। पता चला कि जिस युवक को मित्र के परिवार का हर सदस्य तलाश कर रहा था, वह तो उत्तरकाशी में रह रहा है। किसी आश्रम में जाकर उसने सन्यास धारण कर लिया और वहीं पर वह तप कर रहा है। युवक का पता चलते ही परिजन उसे मनाने पहुंचे। लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। वह तो अब रमता जोगी बन गया। उसे वही जीवन ही रास आया और वह दोबारा गृहस्थ आश्रम की तरफ लौटने को राजी नहीं हुआ। मित्र ने जिसे भी अपनी यह परेशानी बताई उन्हें कुछ ने सलाह दी कि पकड़कर घर ले आओ। कुछ दिन बाद उसके भीतर से साधु बबने का भूत उतर जाएगा। फिर लगेगा कि वह गलती कर रहा था। मित्र का कहना था कि अब वह हाथ से निकल गया है। भतीजे ने साफ कहा कि उसे घर लाओगे तो कोई फायदा नहीं होगा। उसने अपने जीवन की राह खुद तलाश की। अब वह इस राह  को तो नहीं बदेलगा। मित्र के परिजन युवक को देखने उत्तरकाशी भी गए। वहां आश्रम में एक सन्यासी से आग्रह किया कि इस युवक को दोबारा घर में जाने के लिए कहो। सन्यासी ने कहा कि अब वह शायद ही अपनी इच्छा से दोबारा मोहमाया की दुनियां में वापस लौटेगा। परिजनों से सन्यासी बाबा से कहा कि बच्चा नादान है, पढ़ा-लिखा है, माता-पिता को उससे काफी अपेक्षाएं हैं। सन्यासी का कहना था कि यह तो सिर्फ बीएससी ही है। यहां तो पीएचडी धारक भी सबकुछ छोड़कर सन्यास जीवन जी रहे हैं। अब इसे छेड़ने से कोई फायदा नहीं।
जिस दिन मित्र ने अपने भतीजे की यह कहानी हम कुछ मित्रों को सुनाई तो कुछ ने कहा कि उसका भतीजा तो बड़ा ही परोपकारी है। कहावत है कि किसी कुल से यदि एक व्यक्ति सन्यास धारण कर लेता है तो उस कुल की सात पीढ़ियों का जीवन सुधर जाता है। इस कहावत में दम भी है क्योंकि आजकल बाबाओं का जमाना है।  बड़ी-बड़ी लग्जरी कार में बाबा घूमते हैं। कई बाबाओं ने तो ट्रस्ट के नाम से इतनी संपत्ति जोड़ रखी है कि उनके परिजनों को भी वहां ठेकेदारी मिल गई है। ऐसे में कई योग गुरु का उदाहरण सबके सामने है। एक साथी का कहना था कि तुम्हारे भतीजे ने सन्यासधारण कर परिवार के साथ ही देश का भला किया है। जीवन भर सन्यासी रहेगा। विवाह उसका हुआ नहीं था और अब करेगा नहीं। ऐसे में देश में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण में भी उसका योगदान रहेगा। एक मित्र ने कहा कि तुम्हारे भतीजे के साधु बनने से अब तुम भी उसका फायदा उठा सकते हो। यदि उसे अच्छी मठाधिशी मिल गई तो समझो तुम्हारे बारे न्यारे। योग गुरु की तरह वह भी धार्मिक व अध्यात्मिक बिजनेसमैन बन गया तो तुम्हारे परिवार के लोगो के लिए भी पैसा कमाने के  लिए कुछ काम धंधा मिल जाएगा। जवाब में मित्र का कहना था कि भतीजा न तो पैसा ही कमाएगा और न ही संपत्ति अर्जित करेगा। हमे सिर्फ संतोष इस बात का है कि कि वह साधु बना है, स्वादु नहीं।
भानु बंगवाल