Monday 27 February 2012

नैन नहीं, कान से भी होता प्यार

कहते हैं प्यार में आदमी अंधा हो जाता है। न उसे कुछ दिखाई देता है और न ही सुनाई देता है। प्यार के लिए न तो उम्र की सीमा ही होती है और न ही कोई जाति, धर्म का बंधन ही बीच में आता है। कई की कहानी सफल हो जाती है और कई असफल हो जाते हैं। प्यार करने वाले अक्सर यही तर्क देते हैं कि वे एक दूसरे के लिए बने हैं। एक पल भी अलग नहीं रह सकते हैं। उनकी कोशिश साथ रहने की होती है। बाद में उनकी प्रेम कहानी कितनी सफल होती है, यह भविष्य ही बतलाता है।
प्यार की शुरूआत भी आंखों से ही मानी जाती है। नैन मिले, विचार मिले और दोस्ती हो गई। पर जिसकी आंखें ही न  हों और प्यार हो जाए। जी हां ऐसे कई उदाहरण हैं। जिनके प्यार की शुरूआत कान से होती है। यानि एक दूसरे की आवाज सुनकर। ऐसे लोगों के लिए तो बस आवाज ही सुंदरता का प्रतीक होती है। आवाज सुनकर ही वे एक-दूसरे की सुंदरता की कल्पना करते हैं। एक मास्टरजी की भी ऐसी ही दास्तां है। वह दृष्टिहीन थे। उनके तीन बेटे भी थे। बड़ा बेटा करीब बाइस साल का था। दूसरा अट्ठारह का और तीसरा सोलह का। मास्टरजी की पत्नी भी दृष्टिहीन थी। सीधीसाधी घरेलू महिला। सरकारी नौकरी पर जब वह रिटायरमेंट की कगार पर पहुंचने लगे तो उन्हें एक दूसरी दृष्टिहीन महिला रानी से प्यार हो गया। उक्त महिला का पति भी दृष्टिहीन था और उनकी तीन बेटियां थी। बड़ी बेटी करीब दस साल की थी। बात करीब तीस साल पुरानी है। रानी और मास्टरजी के बीच इतनी करीबी बढ़ी कि वे एक दिन घर से भाग गए। इधर मा्स्टरजी की पत्नी और बेटे, तो दूसरी तरफ रानी की बेटियां और पति परेशान हो उठे। बुढ़ापे में दोनों बच्चों को छोड़कर घर से रफूचक्कर हो गए। मास्टरजी के बच्चे तो खाने-पीने के लिए मोहताज तक हो गए। मास्टरजी भाग कर मद्रास चले गए थे। किसी तरह मास्टरजी के बच्चों ने उन्हें तलाश किया। मनाने की कोशिश की। पर दोनों अलग-अलग रहने को राजी नहीं हुए। दोनों का तर्क था कि वे एक दूसरे के बगैर एक पल भी नहीं रह सकते हैं। इस पर तय हुआ कि मास्टरजी घर वापस आ जाएं। साथ ही रानी को भी रख लें। इस पर ही मास्टरजी वापस देहरादून रानी को लेकर अपने घर आए। रानी पूर्व पति के साथ रहने को तैयार नहीं थी। सो मास्टरजी के साथ ही रहने लगी। जन्म-जन्म के साथ ही कसम भले ही रानी व मास्टरजी ने खाई थी, लेकिन नियति को शायद कुछ और मंजूर था। घर आने के बाद मास्टरजी बीमार हुए और एक दिन चल बसे। अब रानी के लिए दिक्कत हो गई कि वह करे तो क्या करे। मास्टर जी के घर से दरवाजे उसके लिए बंद हो गए। पूर्व पति ने भी उसे अपने पास रखने से मना कर दिया। फिर एक दिन रानी गायब हुई और दोबारा किसी को नहीं दिखाई दी। बाद में पता चला कि रानी ने किसी दूसरे दृष्टिहीन से विवाह कर लिया।

                                                                                                                        भानु बंगवाल

2 comments:

  1. prem ki sach koi umr nhi hoti, haan prem aajkal telephone par bhi ho jata hai bin dekhe...so sahi hai.....
    achha likha hai
    shubhkamnayen

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  2. सही कहा सर, प्रेम की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन जो आजकल चल रहा है, उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता।

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