Saturday 9 November 2013

भगोड़ा....(कहानी)

प्रकाश तो बचपन से ही सुनहरे भविष्य के सपने देखता था, लेकिन सपने कब पूरे होंगे यह उसे पता नहीं था। वह तो बस भाग रहा था। कभी जमाने में कुछ पाने के लिए तो कभी अपना अस्तित्व बचाने के लिए। क्या था उसका अस्तित्व यह भी उसे नहीं पता था। हां इतना जरूर था कि वह दूसरे लड़कों से कुछ अलग था। संगी साथी जब स्कूल से घर आकर मैदान में खेलने जाते, तो वह घर के काम में अपनी माता का हाथ बंटाता था। मैदान में कभी कभार ही जाता। घर के काम के साथ ही वह पढ़ाई के लिए समय निकालता। पढ़ाई में वह सामान्य था और उसे यह भी नहीं पता था कि पढ़ाई के बाद वह क्या करेगा। क्योंकि उसे किसी से कोई दिशा निर्देशन तक नही मिला था। वह तो बस भाग रहा था। इसी आपाधापी में वह पढ़ाई के दौरान ही कभी छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर तो कभी केन की कुर्सी बनकर अपनी जेब खर्च लायक पैसा भी कमा लेता।
पढ़ाई पूरी करने के बाद भी प्रकाश को सरकारी नौकरी नहीं मिली। मिलती भी कैसे, नौकरी के लिए या तो तगड़ी सिफारिश चाहिए थी, या फिर उसे इतनी कुशाग्र बुद्धि का होना चाहिए था कि वह इंटरव्यू में सब को पछाड़कर नौकरी पा ले। यह दोनों ही खूबियां उसमें नहीं थी। वह तो बस सामान्य था। सामान्य के लिए कहीं कोई जगह नहीं थी। फिर भी प्रकाश खाली नहीं था। वह अपने व परिवार की मदद के लायक कोई न कोई रोजगार तलाश ही लेता था। जब उसके साथ के युवा मस्ती करते तो वह काम में खटता रहता। उसकी भी इच्छा होती कि वह अपने दोस्तों की तरह मस्ती करे। खूब पैसा कमाए। एक प्रेमिका हो, जिसके साथ कुछ साल तक प्रेम की पींगे बढ़ाए, फिर बाद में उसके साथ घर बसा ले। कभी वह सपना देखता कि एक राजकुमारी भीड़ में उसकी तरफ आकर्षित होती है, फिर उससे शादी का प्रस्ताव रखती है। सपना तो सपना है। फिर भी वह खूब पैसे कमाने का सपना देखता। इसे पूरा करने के लिए एक ठेकेदार के पास काम करने लगा। वह सपना देखता कि ठेकेदारी का काम सीखकर वह अपना काम शुरू करेगा, लेकिन इसके लिए पैसा कहां से आएगा, यह उसे पता नहीं था। ठेकेदार भी प्रकाश की मेहनत का कायल था। वह प्रकाश को यह जताता कि जैसे प्रकाश अपना ही काम कर रहा है। वह भी मालिक है, लेकिन जब वेतन देने का समय आता तो प्रकाश मात्र नौकर होता। वही घिसा पिटा डायलाग ठेकेदार मारता कि जब तेजी से काम बढ़ेगा, तब प्रकाश के ऊपर नोटों की बारिश होगी। यह बारिश कब होगी इसका उसे पता नहीं था, फिर भी वह दौड़ रहा था और सबसे तेज दौड़ना चाहता था।
प्रकाश के घर से सामने जो परिवार रहता था, वहां कुछ दिनों से खूब चहल-पहल हो रखी थी। कारण था कि पड़ोसी गजेंद्र की ससुराल से उसकी सास व साली आदि आए हुए थे। गजेंद्र की पत्नी व एक बेटी थी। सहारनपुर से ससुराल के लोगों के आने पर उनके घर से सुबह से ही हंसी के फव्वारे सुनाई देते थे। प्रकाश को इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि उनके घर की तरफ झांक कर देखे कि कौन आए हैं। वह तो बस आवाज सुनकर ही अंदाजा लगाता। सुबह सात बजे काम को घर से निकल जाता और रात को जब घर पहुंचता तो आधा शहर सो रहा होता। फिर भी सुबह तड़के व देर रात तक पड़ोस से आवाजें आती, जो उसे उत्सुकता में डालती कि वहां जो आए हैं वे कैसे हैं।
सर्दी का मौसम था। मौसम बदलते ही प्रकाश भी वायरल की चपेट में आ गया। काम से छुट्टी ली। डॉक्टर से दवा ली और घर बैठ आराम करने लगा। कमरे में ठंड ज्यादा थी, तो वह छत पर धूप सेंकने चला गया। तभी उसे सामने वाली छत पर एक युवती नजर आई। युवती नहा कर छत में बाल सुखाने आई थी। उसकी उम्र करीब 18 या 19 रही होगी। रंग गोरा, कद-काठी सामान्य, यानी सुंदरता के लगभग सभी गुण उसमें प्रकाश को नजर आए। वह उसे देखता ही चला गया। युवती भी शायद ताड़ गई कि पड़ोस का युवक उसमें दिलचस्पी ले रहा है। यह युवती प्रकाश के पड़ोसी की साली थी। पड़ोसी की तीन सालियां था। बड़ी की शादी हो रखी थी। दो कुंवारी थी, उनमें यह युवती बीच की थी, जिसका घर का नाम गुल्लो था। कुछ देर इठलाकर, प्रकाश पर नजरें मारकर युवती छत से नीचे उतरकर कमरे में चली गई और प्रकाश छत से उतरना ही भूल गया। पूरी दोपहर से शाम तक छत पर ही रहा। कभी समय काटने को कहानी की किताब पड़ता और कनखियों से पड़ोसी की छत पर देखता कि शायद युवती दोबारा आए। वह युवती के साथ जीते-जागते ख्वाब देखने लगा। उसे लग रहा था कि शायद वही उसका प्यार है, जिसके लिए वह पैदा हुआ। युवती के दोबारा छत में न आने पर प्रकाश निराश हो गया था।
पड़ोसी की बेटी का जन्मदिन था। प्रकाश के घर भी भोजन का न्योता मिला। प्रकाश काफी खुश था कि जन्मदिन के बहाने युवती को दोबारा देखने का मौका मिलेगा। प्रकाश की मोहल्ले में छवि अच्छी थी। सभी उसे नेक व चरित्रवान मानते थे। वह जब बातें करता तो सभी से घुलमिल जाता था। जन्मदिन पार्टी में भी वह पड़ोसी के घर ऐसे काम करने लगा कि जैसे उसी घर का सदस्य हो। कभी वह चाय परोसता तो कभी मेहमानों तक प्लेट में पकोड़े व अन्य खानपान की वस्तुएं पहुंचाता। इसी दौरान एक बार कीचन में एक ऐसा मौका आया कि प्रकाश व युवती दोनों ही अकेले थे। तब प्रकाश युवती के पास धीरे से फुसफुसाया...आप बहुत सुंदर हो, मुझे आपसे प्यार होने लगा है। यह कहने भर के लिए वह थर-थर कांप रहा था। उसमें युवती की प्रतिक्रिया तक जानने का साहस नहीं हुआ। वह चाय की ट्रे लेकर बाहर निकल गया।
जन्मदिन मनाने के बाद पड़ोसी के ससुराल वाले भी अपने घर लौट गए और प्रकाश भी अन्य दिनों की तरह ड्यूटी को जाने लगा। उसका मन न तो काम में लगता और न ही उसे भूख लगती। रह-रहकर गुल्लो की सूरत ही उसे नजर आती। नींद में भी और जागते हुए भी। वह गुल्लो से बात करना चाहता था। मीठी-मीठी बातें कर उसे समझना चाहता था, लेकिन उस तक पहुंचने का उसे रास्ता नहीं सूझ रहा था। किस्मत ने पलटी मारी और ठेकेदार ने प्रकाश को सनमाइका के कुछ टुकड़े सौंपे और कहा कि इन सेंपलों के लेकर सहारनपुर जाओ। वहां जिस दुकान में ऐसी डिजाइन की सनमाइका मिले, वहां कुछ एडवांस देकर आर्डर बुक करा देना। सहारनपुर का नाम सुनते ही प्रकाश का दिल सीने से उछलकर हलक में आ गया। वह बिजनेस की बातें समझकर ठेकेदार से सहारनपुर जाने को विदा हुआ, लेकिन सीधे अपने पड़ोसी के घर पहुंचा। वहां जाकर उसने पड़ोसी से कहा कि मुझे सहारनपुर जाना है। वहां के बाजार का मुझे ज्ञान नहीं है। तु्म्हारा ससुराल सहारनपुर है। तुम्हारे दो साले हैं। वहां का पता दे दो, मैं तुम्हारे एक साले को साथ लेकर बाजार जाउंगा तो परेशानी कम होगी।
सज्जन पडो़सी ने एक कागज में पता लिखा। साथ ही एक मैप भी बना दिया कि बस अड्डे से वह कैसे उसकी ससुराल तक पहुंचेगा। पता जेब में डालकर प्रकाश सहारनपुर को रवाना हो गया। सहारनपुर पहुंचने के बाद प्रकाश को पड़ोसी के ससुराल को तलाशने में परेशानी नहीं हुई। वह उस घेर (आहता) तक पहुंच गया, जहां गुल्लो उससे मिलने वाली थी। पुरानी हवेलीनुमा मकान की उधड़ती सीढ़ियां चढ़कर प्रकाश एक दरवाजे के सामने पहुंचा। वहां गुल्लो को झा़ड़ू मारते देखा, प्रकाश उसके सामने खड़ा हो गया। अचानक प्रकाश को सामने देख गुल्लो आश्चर्यचकित हो गई। उसने पूछा कैसे आए। प्रकाश से जवाब मिला आपसे मिलने। घर में कोई नजर नहीं आ रहा था। गुल्लो उसे कमरे में ले गई। वह सोफे में बैठ गया। प्रकाश ने पूछा कि बाकी सब कहां हैं। गुल्लो इठलाती हुई बोली कि आप आ रहे थे, मैने सभी को भगा दिया। शाम तक कोई नहीं आएगा। वह रसोई में जाकर प्रकाश के लिए चाय बनाने लगी। प्रकाश भी पीछे-पीछे रसोई में चला गया। उसने गुल्लो का हाथ पकड़ा। फिर माथा चूम लिया। गुल्लो ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। न वह हंसी और न ही चिढ़ी। प्रकाश डर गया वह वापस सौफे में बैठ गया। अब प्रकाश  सोचने लगा कि वह वहां क्यों आया। क्या उसकी मंजिल गुल्लो है। या फिर उसे अभी जीवन में बहुत कुछ करना है। अभी उसकी उम्र 21 साल ही तो है। अभी वह ठीक से कामाता तक नहीं। यदि प्रेम के जाल में फंस गया तो शायद वह बर्बाद हो जाएगा। मेरी मंजिल तो यहां नहीं है। मुझे तो सहारनपुर के बाजार में सनमाइका का सेंपल लेकर घूमना है। जहां सेंपल से मिलतीजुलती सनमाइका मिलेगी, वहीं मेरा काम खत्म। मैं क्यों इस माया के जाल में फंस रहा हूं। भाग निकल प्रकाश, वर्ना बाद में पछताना पड़ेगा।
इसी बीच गुल्लो चाय लेकर पहुंच गई। तभी उनके घर एक व्यक्ति ने प्रवेश किया। वह उनका परिचित था,  जो शायद गांव से गुल्लो के पिता के पैसे देने आया था। गुल्लो ने उसे टरकाने के उद्देश्य से यह कहा कि मेरे पिताजी चार घंटे बाद आएंगे, लेकिन वह वापस जाने को टस से मस नहीं हुआ और घर पर ही बैठकर इंतजार करने की बात कहने लगा। तभी गुल्लो ने घर से दूर एक फेमस दुकान का नाम बताया और वहां से गाजर का हलवा लाने को भेज दिया। वह चला गया। प्रकाश ने चाय पी और गुल्लो से विदा लेने को उठने लगा। पर गुल्लो तो कुछ और चाह रही थी। उसने मुख्य द्वार बंद कर चटकनी लगा दी। वह प्रकाश को पकड़कर बिस्तर की तरफ खींचने लगी। जिस गुल्लो को लेकर प्रकाश कई दिनों से सपने देखता आ रहा था, वह चकनाचूर हो गए। वही गुल्लो उसे भयानक  सूपर्नखा नजर आने लगी। वह उससे पीछा छुड़ाना चाह रहा था। उसे गुल्लो से घीन आने लगी। उसका पूरा शरीर डर से कांप रहा था, वहीं गुल्लो वासना से कांप रही थी। उसने गुल्लो से कहा कि वह एक घंटे बाद दोबारा आएगा। तब तक वह इंतजार करे। वह प्रकाश का रास्ता रोक खड़ी हो गई। इस पर प्रकाश ने उसे थप्पड़ रसीद कर दिया। फिर चटकनी खोली तो देखा कि सामने की छत से कुछ महिलाएं उसी घर की तरफ टकटकी लगाए देख रही। जो शायद किसी तमाशे के इंतजार में थीं। प्रकाश तेजी से साथ दरवाजे की दहलीज लांघ कर निकल गया। उसने पीछे मुड़कर देखने का साहस तक नहीं किया। वहीं गुल्लो खिड़की से उसे जाता हुआ देख रही थी। उसे आश्चर्य हुआ कि जो उसे देखकर लट्टू होता था, वह तो भगोड़ा निकला। वहीं प्रकाश ने हमेशा से लिए दिल से गुल्लो को निकाल दिया और फिर कुछ बनने के लिए जारी दौड़ में शामिल हो गया।
भानु बंगवाल 

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