Monday 20 August 2012

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी...

सुबह-सुबह फेसबुक खोली तो दो फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली। अमूमन मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लेता हूं। इसका कारण यह भी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का यह सस्ता व सुलभ माध्यम है। इन दो फ्रेंड रिक्वेस्ट में एक युवती की थी और एक युवक की। दोनों को कनफर्म करने के कुछ ही देर बाद मेरी वाल में ऐसी फोटोग्राफ्स नजर आने लगी, जिसे मैं परिवार के किसी भी सदस्य के साथ नहीं देख सकता। ये सब उक्त लड़की की ओर से जारी हुए थे, जिसे मैं फ्रेंड लिस्ट में शामिल कर चुका था। हो सकता है कि किसी ने उसे ऐसी फोटो से टेग कर दिया हो और इसका उस समय तक उसे पता भी नहीं हो। या फिर किसी लड़की की फर्जी आइडी से फेस बुक में एकाउंट खोलकर किसी ने ऐसी हरकत की हो। कई बार तो व्यक्ति को पता भी नहीं चलता और उसे दूसरा व्यक्ति अशलील मैसेज या फोटो से टेग कर देता है। ऐसे में उसके पेज की सारी सामग्री उसके मित्रो को भी चली जाती है। ऐसी ही अशलीलता की शिकार एक युवती हाल ही में आत्महत्या भी कर चुकी है। जो भी हो, लेकिन फेसबुक में अशलीलता उस लड़की की तरफ से ही परोसी गई। मेरा एकाउंट मेरा दस वर्षीय छोटा बेटा तक खोल देता है। ऐसे में मैंने उक्त लड़की को अपनी फ्रेंड लिस्ट से ही हटा दिया। इसके बाद ही मुझे अशलील फोटो से निजात मिली।
सोशल साइट फेसबुक जहां रचनात्मक कार्य करने वालों के लिए एक कारगार हथियार साबित हो रही है, वहीं इसके माध्यम से ऐसे लोग भी सक्रिय हैं, जो या तो संकीर्ण विचारधारा के हैं, या फिर किसी बीमारी से ग्रसित। ऐसे लोगो के कारण ही कई बार समाज में भ्रामक सूचनाएं फैलती हैं और नतीजा बंगलौर में मची अफरा-तफरी के रूप में सामने आता है। इसके बावजूद हम दोष दूसरे मुल्क को देते है। अपने बीच के जयचंद को हम भूल जाते हैं। बाहर से तो एक मैसेज आया, लेकिन उसे आगे बढ़ाने वाले कौन थे, यह भी विचारणीय प्रश्न है। सोशल साइट फेसबुक भी मीडिया का एक रूप है। मीडिया का उद्देश्य सूचना देना, शिक्षित करना व मनोरंजन करना है। इसमें कोई नियंत्रण नहीं होना भी आने वाले दिनों में खतरनाक साबित हो सकता है। विचारों का आदान-प्रदान, एक दूसरे से पहचान बढ़ाना आदि के लिए ऐसी साइट का उपयोग तो सही है। इसके विपरीत राष्ट्र व समाज को नुकसान पहुंचाने, भ्रामक प्रचार, अशीलीलता परोसने वालों पर अंकुश लगाने की भी जरूरत है।
आजाद मुल्क के हम वहीं तक आजाद नागरिक हैं, जहां तक हम दूसरों की आजादी में दखल नहीं डालते हैं। फेसबुक में कई बार ऑनलाइन होते ही चेट पर कई महाशय टपक जाते हैं। ऐसे कई लोग तो काफी मुश्किल से पीछा छोड़ते हैं। मानो वे आपका इंतजार करते रहते हैं कि कब आप ऑनलाइन होंगे। कैसे हो, क्या कर रहे हो, और सुनाओ आदि उनके सवाल होते हैं। कई बार काम के वक्त ऐसे लोगों का टपकना मुझे कुछ झुंझलाहट देता है, लेकिन मैं इनका बुरा नहीं मानता। क्योंकि ऐसे लोग बुरे नहीं होते, वे तो सिर्फ टाइम पास कर रहे होते हैं। इनसे अगर कोई परेशान हो तो वह चेट आफलाइन कर सकता है। इसके विपरीत फेस बुक में भ्रामक प्रचार व अशलीलता परोसने वालों का क्या उपाय है। मैने तो ऐसे लोगों से निजात पाने का उपाय निकाल लिया है कि उन्हें अपनी फ्रेंड लिस्ट से ही बाहर कर दिया जाए। क्योंकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
भानु बंगवाल   

No comments:

Post a Comment