Wednesday 17 October 2012

पंडितजी कहिन....

पितृ विसर्जन की सुबह सात बजे पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक पंडित गोदियाल जी घर पहुंच गए। हर साल पिताजी का श्राद्ध अमावस्या के दिन पड़ता है। मैं अलसुबह ही तर्पण आदि के कार्य को निपटाने के बाद ड्यूटी पर रवाना हो जाता हूं। इस बार आखरी श्राद्ध के दिन अमावस्या पड़ी। पंडितजी आए, उन्होंने तर्पण कराते समय मुझसे व मेरे भाई से विभिन्न मुद्राओं में बैठाकर पूजा की। पितरों को याद करवाया। पूजा के बहाने हमारी कसरत हो गई। कभी घुटनों के बल बैठो, कभी पलाथी मारकर। कभी पूर्व दिशा, तो कभी पश्चिम। यानि शारीरिक कसरत व पितरों को याद करके मानसिक कसरत दोनों हो हो गई। पूजा करीब पौन घंटे में निपट गई। फिर पंडित जी ने सवाल किया कि आपकी लोकसभा कौन सी है। मैने बताया कि टिहरी है। हाल ही में इसमें उपचुनाव हुए थे, जहां कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर भी महंगाई का असर रहा। कांग्रेस हारी और भाजपा जीत गई। पंडितजी बोले कौन से भाजपा भी कुछ नया कर लेगी। सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। पहले ये बताओ कि आपका गांव किस लोकसभा में पड़ता है।
मुझे पंडितजी के सवाल समझ नहीं आ रहे थे। वह बार-बार मेरी लोकसभा क्यों पूछ रहे हैं। मैने उन्हें बताया कि मेरा गांव पौड़ी लोकसभा में पड़ता, भले ही गांव टिहरी जनपद में है। इस पर पंडितजी ने कहा कि आगामी लोकसभा की वोटर लिस्ट में अपना व परिवार के वोटरों का नाम गांव से ही दर्ज कराना। मैने कारण पूछा तो वह हंसने लगे। पंडितजी से सुबह-सुबह लोकसभा व चुनाव की बात सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा था। उनका पंडिताई का कारोबार काफी फैला हुआ है। दो से तीन मोबाइल फोन साथ लेकर चलते हैं। यजमान अब किसी भी कर्मकांड के लिए फोन से ही संपर्क करते हैं। सुबह से लेकर शाम तक यजमानों के घर ही दौड़ते हैं। ज्यादा व्यस्तता में वह हर घर तक नही पहुंच पाते हैं, तो यह काम उनके चेले भी करते हैं। उनके चेलों की लंबी सूची है। यानी एक घर में पंडितजी व दूसरे घरों में चेले। चेले भी उनके परिवार के लोग हैं। जिन्हें उन्होंने ब्रह्मावृति के जरिये रोजगार दे रखा है। पंडितजी पढ़े लिखे हैं, ज्ञानी हैं, क्योंकि वह कई धार्मिक पुस्तक भी लिख चुके हैं। दक्षिणा दो तो कम होने पर भी वह नाक भौं नहीं सिकोड़ते हैं। इसलिए वह लालची भी नहीं हैं। 
मैने मामूली दक्षिणा दी। यजमान के घर भोजन वह करते नहीं। किस-किस के घर करेंगे, क्योंकि एक दिन में वह दस से पाचस घर में जो दौड़ लगाते हैं। ऐसे में मैने एक परिवार में एक दिन के हिसाब से बनने वाले भोजन के लिए आटा, दाल,चावल, मसाले, घी, तेल आदि समस्त सामग्री दान में दी। साथ ही पंडितजी को एक कमीज पैंट व पंडिताइन के लिए साड़ी भी दी। ये तो श्रद्धा है। किसी व्यक्ति को ही भगवान मानकर मैं उसे दान देने पर विश्वास रखता हूं। मेरे जैसे लोगों की दक्षिणा पर ही उसका घर चलता है। जब मौका होता है, तो वह कमाई भी खूब करते हैं, कई बार उन्हें खाली भी बैठना पड़ता है।
दक्षिणा देते समय पंडितजी बोले- इस बार दक्षिणा में राशि मत दो। मैं यही चाहूंगा  कि आप अपने गांव में जाकर वहां की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराओ। यही मेरी दक्षिणा होगी। पंडितजी की रहस्यमयी बातें मेरी समझ से बाहर थी। मैं अज्ञानी उनके ज्ञान को समझने का प्रयास कर रहा था। मैने कहा कि पहली मत बुझाओ और साफ-साफ बताओ कि क्या माजरा है। तभी मैं आपकी बातों पर विचार करूंगा। इस दौरान पंडितजी को यजमानों के मोबाइल फोन भी आ रहे थे। वह उनके यहां अपने चेलों को भेजने का प्रबंध भी फोन से ही कर रहे थे। पंडितजी बोले कि मैने वर्ष 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़ने का निर्णय किया है। पौड़ी सीट से चुनाव लड़ना है और अभी से तैयारी में जुटा हूं। पंडितजी के मुख से चुनाव की बात सुनकर मेरे पैर के नीचे से धरती खिसकने लगी। मैने कहा कि ये राजनीति तो भ्रष्ट लोगों के लिए है। आप तो सीधे-साधे व्यक्ति हो। चुनाव लड़ना आसान नहीं है। अंटी में काली कमाई का पैसा होना चाहिए। कम से कम एक करोड़ हों तो लोकसभा चुनाव लड़ने की सोचो। नहीं तो दूर दराज के गांव में मतदाताओं को यह भी पता नहीं चलेगा कि आप भी चुनाव मैदान में हो। पंडितजी बोले मैं बगैर पैसे के लड़ के दिखाऊंगा। आज राजनीतिक दलों के लोग भ्रष्टाचार में फंसते जा रहे हैं। जनता उनसे नफरत करने लगी है। अरविंद केजरीवाल जैसे लोग नेताओं की कलई खोल रहे हैं। ऐसे में जनता को ईमानदार व्यक्ति ही चाहिए। यदि इसी तरह पोल खुलती रही, तो ईमानदार व्यक्ति आने वाले समय में ढूंढे नहीं मिलेगा। मैने कभी भ्रष्टाचार नहीं किया। मेरी यजमानों में अच्छी साख है। वही मुझे चुनाव भी जिताएंगे।
मैने पंडितजी को समझाने का प्रयास किया कि राजनीति ऐसा दलदल है कि इसमें ईमानदार व्यक्ति डूब जाता है। भ्रष्टाचारी ही इसमें तैरना जानता है। ये आपके बस की बात नहीं। मैने उत्तराखंड में पिछले लोकसभा चुनाव का उदाहरण दिया। तब चमोली की एक विधानसभा से पंडितजी भी खड़े हुए थे। पहले यजमानों से उन्हे ताड़ के पेड़ पर चढ़ाया, जब वोट देने की बात आई, तो नीचे गिरा दिया। मैने बताया कि रही बात भ्रष्टाचार की। जतना भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने पर मजा लेती है। चर्चा करती है, लेकिन जब वोट की बारी आती है तो फिर वही लोग जीत जाते हैं, जिन्हें पांच साल तक हम गाली देते आते हैं। यदि ऐसा न होता तो चारा घोटाले के आरोपी आज राजनीति में कहीं दिखाई नहीं देते, जेल में बंद होने वाले राजा भैया जेल मेंत्री नहीं बनते। इसी तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं।
पंडितजी को तो लोकसभा की राह आसान लग रही थी। उन्होंने कहा कि मैं बहस में नहीं पड़ना चाहता। मैने जो कहा वो करो। तभी मेरे भाई ने सवाल किया कि किस दल से चुनाव लड़ोगे। आपको कौन सा दल टिकट देगा। इस पर पंडितजी बोले, दलों को तो लोगों ने परख लिया। मैं तो अपने बूते निर्दलीय लड़ूंगा। जीत जाऊंगा तो मंत्री बनने के भी चांस हैं। पंडितजी की बातों से मुझे यही लगा कि आज जिस  कदर भ्रष्टारार के माले सामने आ रहे हैं, उससे आम व्यक्ति त्रस्त हो गया है। उसे किसी पर अब विश्वास नहीं रहा कि वह देश का भला कर सकेगा। यही दशा आम आदमी की भी है और पंडितजी की भी। वह खुद पर ही विश्वास जता कर आगे आना चाहते हैं। पंडितजी तो चले गए, लेकिन मैं यही सोचता रह गया कि जैसी कल्पाना वह कर रहे हैं, काश वह सच साबित होती।
भानु बंगवाल  

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