Thursday 25 October 2012

जन्मदिनः अनोखा गिफ्ट, रहो फिट......

अपने जन्मदिन को लेकर किसी को कई दिन से इंतजार रहता है, वहीं जन्मदिन में शामिल होने वालों को भी इस दिन का इंतजार रहता है। कई भाई तो ऐसे हैं कि जिन्हें न तो अपना ही जन्मदिन याद रहता है और न ही वे दूसरों का याद रखते हैं। इस दुनियां में अलग-अलग तरह के लोग हैं। कोई जन्मदिन मनाता है तो कोई चुपचाप से जन्मदिन वाला दिन काट लेता है।
मेरे ऑफिस में एक मित्र कवि भी हैं। वह जब किसी से बात कर रहे होते हैं तो उनका पता ही नहीं चलता कि वे कहां शब्दों की मार कर रहे हैं। जिस पर उनका इशारा रहता है कई बार तो वह भी नहीं समझ पाता कि उसके संदर्भ में बात कही गई है। कुछ दिन पहले तक वह रात को घर जाते समय आवारा कुत्तों से परेशान थे। रास्ते में एक जगह ऐसी पड़ती थी कि वहां कुत्ते उनका इंतजार करते रहते थे। जैसे ही मित्र उधर से गुजरते कुत्ते भी काफी दूर तक उनकी मोटर सायकिल का पीछा करते। एक दिन मित्र काफी खुश दिखाई दिए। मैने कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अब कुत्तों ने तंग करना बंद कर दिया है। वे मुझे पहचानने लगे हैं। ये बात उन्होंने ऐसे मौके पर कही, जिस समय आफिस में उनकी खिंचाई होती थी। अब उन्होंने कहां इशारा किया वही जाने। एकदिन मित्र देरी से ऑफिस पहुंचे। उनके माथे पर टीका लगा था। जब साथियों ने कारण पूछा तो पहले वह बात को  घुमाते रहे। फिर उन्होंने सच बता ही दिया कि आज मेरा जन्मदिन है। आनन-फानन मित्र को गिफ्ट का प्रबंध किया जाने लगा। एक कुछ खुरापाती सहयोगियों की चौकड़ी बैठी। उसमें यह तय किया जा रहा था कि कवि मित्र को जन्मदिन में क्या गिफ्ट दिया जाए। किसी ने पैन-डायरी का सुझाव दिया तो किसी ने कहा कि यह प्रचलन पुराना हो गया है। कुछ ऐसा गिफ्ट दिया जाना चाहिए, जिसका वह ज्यादा से ज्यादा दिन तक हर रोज उपयोग कर सकें। ऐसी क्या चीज हो सकती है। इसके लिए मित्र की दैनिक दिनचर्या को टटोला गया। रात को आफिस से देर से जाने के कारण देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं। जब उठते हैं तब मार्निंग वॉक का समय भी नहीं रहता। सूरज चढ़ जाता है। ऐसे में नहाने-धोने के बाद चाय नाश्ता लेकर सीधे ऑफिस दौड़ते हैं। यही तो है एक पत्रकार की जिंदगी। चलना तो होता नहीं, ऐसे में पेट भी बाहर निकलने लगता है। ऊपर से मित्र का यह 47 वां जन्मदिन था। खुरापातियों की चौकड़ी ने गिफ्ट तय कर लिया और बाजार से ले आए। मित्र को गिफ्ट दिया गया। उन्होंने उसे उसी समय खोल दिया। गिफ्ट देखकर वह हैरान थे। शायद उन्हें गुस्सा भी आ रहा था, लेकिन बोले कुछ नहीं। गिफ्ट था ही ऐसा। सेहत को फिट रखने के लिए कूदने के लिए रस्सी (स्कीपिंग रोप), पहनने के लिए सपोटर (लंगोट) उनके गिफ्ट पैक में निकले। गिफ्ट मिला तो मित्र ने भी मिठाई की बजाय सभी को नमक के रूप में ढोकला खिलाया। जन्मदिन बीत गया तीन दिन-चार दिन बाद मित्र कुछ फुर्तीले नजर आने लगे। उन्होंने बताया कि भले ही मजाक में मित्रों ने उन्हें गिफ्ट दिया, लेकिन उनके लिए वह उपयोगी साबित हो रहा है। उठते ही वह रस्सी कूद रहे हैं। इसका असर उनकी सेहत पर भी दिखने लगा। वह तहेदिन से ऐसाअनोखा गिफ्ट देने वालों का धन्यबाद करते हैं।
भानु बंगवाल   

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