Tuesday 8 January 2013

Severe cold and pultan market ...

कड़ाके की ठंड और पलटन बाजार...
उत्तरभारत में कड़ाके की ठंड। इस ठंड की तुलना पहले की ठंड से की जा रही है। कोई कहता है कि 45 साल बाद ऐसी ठंड पड़ी, तो कोई मौसम विज्ञानी के आंकडो़ के आधार पर कह रहे हैं कि 12 साल बाद ऐसी सर्दी आई। यानी प्रकृति भी अपने इस रूप को दोहरा रही है। देश के अन्य इलाकों की तरह ही उत्तराखंड के मैदानी इलाको में भी सर्दी अपना प्रकोप बरपा रही है। फिर भी पर्वतीय इलाकों में मौसम खुशगवार है। ऐसा मौसम देहरादून की राजपुर रोड से सटे इलाकों में भी देखने को मिल रहा है। मेरा तो कहना है कि यदि मैदानी इलाकों में रहने वालों ने धूप के दर्शन नहीं किए और सूर्यदेव की एक झलक पाने को तरस गए हों तो चले आइए उत्तराखंड। यहां सुबह व शाम को सर्दी का अहसास जरूर होता है, लेकिन देहरादून समेत नई टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग व चमोली जैसे शहरों में सुबह करीब आठ बजे से गुनगुनी धूप खिलने लगती है। शाम पांच बजे तक धूप का मजा यहां लिया जा सकता है। जैसे समुद्र किनारे खड़े होकर लगता है कि पूरी दुनियां में पानी ही पानी है। ठीक उसी तरह यहां धूप को देखकर यह अहसास तक नहीं होता कि देहरादून से आगे निचले इलाके के लोग धूप से तरस रहे हैं।
कितनी जरूरी है यह धूप भी जीवन के लिए। लोगों की सुबह धूप से शुरू होती है। सुबह होते ही जब बच्चे व बूढ़े बिस्तर छोड़ते हैं तो वे पहले धूप में जरूर बैठते हैं। इसके बाद ही दांतों में ब्रश व अन्य काम की शुरूआत होती है। घर से आफिस पहुंचने पर सबसे पहले कर्मी धूप में खड़े हो रहे हैं। फिर कुछ देर की सिकाई के बाद ही कामकाज को पटरी पर लाने की दिनचर्या की शुरुआत होती है। काम करते-करते घंटे दो घंटे बाद चाय पीने के बहाने ऐसे कर्मी धूप सेंकने से भी नहीं चूक रहे हैं। कई विभागों में तो अधिकारी से लेकर बाबू तक धूप में ही कुर्सी मेज लगाकर कामकाज निपटाते देखे जा सकते हैं।
ये तो था प्रकृति का दोहराव। जो कुछ-कुछ साल के अंतराल में पुराने मौसम को दोहराकर पुरानी यादों को ताजा कर देती है। लेकिन, इस बार तो देहरादून में व्यवस्थागत दोहराव भी नजर आने लगा है। यह दोहराव शहर के मुख्य बाजार पलटन बाजार में देखने को मिल रहा है। जहां करीब पैंतीस साल पहले भ्रमण के दौरान वाहन दिखाई नहीं देते थे। क्योंकि तक शहर में वाहनों की संख्या सीमित थी। ऐसे में लोग पैदल ही इस बाजार में पहुंचकर छोटी-छोटी जरूरत का सामान खरीदते थे। समय के साथ हुए बदलाव ने इस बाजार की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी। दोपहिया व ठेलियों की भीड़ के चलते इस बाजार में जाने से हर कोई कतराने लगा था। इस बार प्रशासन ने इस बाजार में वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित कर दी। ऐसे में पलटन बाजार अपने पुराने रूप से और ज्यादा निखर गया है। क्योंकि यहां करीब दस साल पहले अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाकर कई दुकानें पीछे की गई। इससे सड़क भी चौड़ी हो गई। दिन में गुनगुनी धूप और चौड़ी सड़क पर पैदल भ्रमण का मजा कुछ अलग ही है।
अब बात करें पलटन बाजार की। वर्ष 1882 में जब सहारनपुर-देहरादून मार्ग का निर्माण हुआ तो मसूरी व गढ़वाल के समीपस्थ क्षेत्रों तक सामान पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने एक यातायात व्यवस्था आरंभ की। तब मोहंड सुरंग से प्रवेश कर मुख्य सड़क राजपुर रोड में प्रवेश किया जाता था। उस समय एकमात्र सड़क धामावाला ग्राम से होते हुए आज के घंटाघर के समीप से राजपुर तक पहुंचती थी। सहारनपुर रोड से दर्शनी होते हुए राजपुर तक की सड़क 1892 के आसपास तक राजपुर रोड कहलाई। जहां वर्तमान में पलटन बाजार है, वहां 1864 में अंग्रेजों की ओल्ड सिरमौर बटालियन ने छावनी बनाई। यहां सैन्य अधिकारियों के आवासीय स्थल भी थे। सड़क के दोनों ओर के क्षेत्र सेना के पास थे। समीप ही परेड मैदान गोरखा बटालियन के पास था। दोनों बटालियन बाद में दून के गढ़ी डाकरा क्षेत्र में स्थानांतरित हो गई और पलटन बाजार क्षेत्र खाली हो गया। परिणामस्वरूप तीन जुलाई 1874 को यह क्षेत्र तत्कालनी सुपरिंटेंडेंट ऑफ दून एचजी रॉस को सेना ने इस आशय के साथ सुपुर्दगी में दिया कि वह भूमि का नजराना सेना के कोष में प्रतिवर्ष जमा कराते रहें। यह भूमि बाद में नगर पालिका को सौंप दी गई। 1923 में राय बहादुर उग्रसेन ने नगर पालिका अध्यक्ष का कार्यभार संभाला तो खाली नजूल भूखंडों के स्वामित्व का अधिकार उन्होंने या तो अपने पास रख लिया या उसे व्यापारियों को औने-पौने दाम में बेच दिया। परिणामस्वरूप एक बाजार के रूप में पलटन बाजार अस्तित्व में आया।
अपने भीतर एक इतिहास को संजोए हुए देहरादून का पलटन बाजार आज फिर से सेलानियों के लिए एक सुंदर पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होता नजर आ रहा है। जहां लोगों की भीड़ तो है, लेकिन वाहनों की आवाजाही न होने के चलते अफरातफरी का माहौल नहीं है। इस व्यवस्था से बाजार जाने वाले खुश हैं। सिर्फ दुखी एक तबका है, वो हैं यहां के व्यापारी। जो पहले की तरह न तो दुकानों के आगे अतिक्रर्मण हीकर पा रहे हैं और न ही वाहनों की आवाजाही के प्रतिबंध को हजम कर पा रहे हैं।
भानु बंगवाल

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