Wednesday 26 June 2013

Doing Service Forgetting Are Own pain

 दिल में दर्द छिपा देते रहे दवा...
उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया। लोगों ने आपदा का तांडव झेला, जिंदगी के लिए जूझते रहे। जान बचाने की कोशिश की और फिर सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ दिया। जब जान बची तो भोजन-पानी के साथ ही रात गुजारने का संकट सामने आने लगा। ऐसे में लोगों की मदद को स्थानीय लोग ही आगे आए। इनमें से कई ऐसे लोग भी थे, जो आपदा में अपने खेत-खलिहान, घर, दुकान सभी कुछ खो चुके थे। उनके सामने भी खाद्यान्न का संकट था। फिर भी वे आपदा में फंसे लोगों की भोजन-पानी से मदद करते रहे। इसके विपरीत मुसीबत में फंसे लोगों का कई ऐसे लोगों से भी वास्ता पड़ा, जिन्हें मुसीबत के मारों से कोई लेना देना तक नहीं था। उनका मकसद इस मौके का फायदा उठाकर अपनी पोटली भरना था। ये निष्ठुर व्यापारी थे या मजदूरों का मुखौटा लगाए बदमाश, पता नहीं, लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया, उससे राज्य की छवि को बट्टा लगा।
जिस पहाड़ में बेटा बीमार माता-पिता को अस्पताल पहुंचाने के लिए कंधे में उठाकर मीलों पैदल चलता हो और मुसीबत पडऩे पर पूरा गांव एक हो जाता हो, वहां के लोगों पर यात्रियों से लूट-खसोट का आरोप लगाना बेमानी होगा। आपदा आई तो लोगों ने मुख्य रास्ते छोड़कर सुरक्षित स्थानों व पहाडिय़ों की तरफ चढऩा शुरू कर दिया। गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ के करीब 14 किलोमीटर लंबे रास्ते में जगह-जगह लोगों ने ऐसे स्थानों पर पनाह ली, जिसे सुरक्षित समझा गया। गौरीगांव में ही करीब चालीस परिवारों ने मुसीबत में फंसे यात्रियों के लिए अपने घर के कोठार (खाद्यान्न भंडार) खोल दिए। लोगों ने अपने घर के राशन की चिंता किए बगैर ही मुसीबत में फंसे लोगों को भोजन की व्यवस्था की। यहां तक कि पीडीएस के जरिये मिलने वाले राशन से किसी तरह जिंदगी गुजारने वाले ग्रामीणों तक ने फंसे श्रद्धालुओं के लिए चलने वाले लंगर में योगदान दिया। इसी तरह जंगल चïट्टी में जो दुकानें सुरक्षित बची, वहां भी लोगों ने शरण ली। मदद का सिलसिला यहीं नहीं थमा और आसपास से लोग यात्रियों के भोजन का जुगाड़ करते रहे। गौरीगांव के द्वारिका गोस्वामी व राजेंद्र गोस्वामी के मुताबिक जब राशन समाप्त होने लगा तो यात्रियों को एक समय का ही भोजन उपलब्ध कराया जा सका। करीब पांच हजार लोगों ने इस गांव ने शरण ली थी। चमोली में हेलंग से लेकर पीपलकोटी तक सड़क किनारे गांवों में बसे लोगों ने भी अपने घरों में फंसे यात्रियों को पनाह दी और उनके भोजन की भी व्यवस्था की। पंचायत घर लोगों के लिए खोल दिए। यहीं नहीं यात्रियों की मदद की ऐवज में कुछ नहीं लिया। ठीक यही हाल पांडुकेश्वर, गोविंदघाट आदि क्षेत्र में भी था। पांडुकेश्वर में तो कई लोग ऐसे थे, जिनके अपने मकान ध्वस्त हो गए, इसके बावजूद वहां लोगों ने मुसीबत में फंसे यात्रियों के रहने के लिए आपसी सहयोग से लंगर तक चलाए। पांडुकेश्वर में जगजीत मेहता व अतुल शर्मा, लामबगड़ में जगबीर परमार का घर व खेत सभी बह गए। वहां हेलीकाप्टर ने इंटर कालेज में खाद्यान्न गिराया तो इन लोगों ने खाद्यान्न स्थानीय लोगों को नहीं लेने दिया। उन्होंने कहा कि पहले इस खाद्यान्न से यात्रियों को खाना बनाकर खिलाया जाएगा और उन्होंने खिलाया भी। उत्तरकाशी के गंगोत्री रूट पर फंसे यात्री हों या फिर यमुनोत्री रूट पर। सभी स्थानों पर स्थानीय लोगों ने मुसीबत में फंसे यात्रियों की मदद की। इस मदद में ये नहीं देखा कि यात्री धन्ना सेठ है या फिर गंगू तेली। टिहरी जनपद में भी यही स्थिति थी। महिलाएं खेती बाड़ी छोड़ लंगर में खाना पकाने पहुंच रही थी।
इसके बावजूद यात्रा रूट पर फंसे लोगों से लूट खसोट की सूचनाएं भी आईं। कई स्थानों पर पानी की एक बोतल के सौ रुपये में बेचे जाने की सूचनाएं आती रहीं। अब सवाल यह है कि जिस पहाड़ में लोग मुसीबत के मारों की मदद कर रहे हों, वहां पर ये लूट खसोट कौन कर रहा था। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए जरूरी है कि सरकार चार धाम यात्रा के दौरान बाहर से आने वाले लोगों का रजिस्टे्रशन करें। संदिग्ध लोगों पर खास नजर रखी जाए कि कहीं कोई असामाजिक तत्व साधु वेश धरकर या फिर मजदूर बनकर लूटपाट के इरादे से तो नहीं घुस रहा है।
भानु बंगवाल

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