Thursday 8 March 2012

याद आती है वह लड़की....

दुर्घटना का कारण एक नहीं होता। कई बार लापरवाही से होती है, तो कई बार अनजाने में। कई बार तो किसी की कोई गलती भी नहीं होती, बस अचनाक दुर्घटना हो जाती है। ऐसे में इसका अंजाम भी कई बार काफी खतरनाक हो जाता है। मसलन आपकी गाड़ी से कोई टकरा गया और यदि आपकी गलती न भी हो। तब भी दुर्घटना के बाद मौके पर जमा होने वाली भीड़ उसे ही गलत ठहराती है, जिसका वाहन हो। यदि दो वाहनों में कार व स्कूट की टक्कर हो तो लोग स्कूटर सवार का पक्ष लेने लगते हैं। दुर्घटना में चोटिल व्यक्ति को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने में तो शायद ही कोई मदद करे, लेकिन दुर्घटना के आरोपी की पिटाई करने में भी प्रत्यक्षदर्शी पीछे नहीं रहते। ऐसे में कोई भीड़ के कोप से बच जाए, तो उसे किस्मतवाला ही कहा जाएगा।
एक बार मेरे साथ भी ऐसी ही घटना घटी। मैं स्कूटर पर देहरादून से सहारनपुर जा रहा था। बिहारीगढ़ के निकट जैसे ही मैं पहुंचा, तो वहां कुछ बस व वाहन सड़क किनारे खड़े थे। एक रुकी बस से आगे मैं बढ़ा ही था कि अचानक सामने एक करीब 13 साल की लड़की स्कूटर से टकरा गई। घबराहट के मारे मैं ब्रेक भी नहीं लगा पाया और वह काफी दूर तक स्कूटर से घिसड़ती चली गई। किसी तरह मैने ब्रेक लगाए और स्कूटर को स्टैंड में खड़ा किया। मौके पर भीड़ भी जमा हो गई। मैने सोचा कि भीड़ कहीं हमला न कर दे, इस पर मैने हेलमेट भी नहीं उतारा। मैं लड़की के पास गया और उसका हालचाल जानने लगा। मैने मौजूद लोगों से पता करना चाहा कि उसके साथ कौन है। मैं किसी अस्पताल में उसका चेकअप कराने के पक्ष में था। तभी एक व्यक्ति वहां पहुंचा और गुस्से में लड़की का हाथ खींचकर ले गया। वह इतना बोला कि बस खड़ी है, जल्दी चल। उसे न अपनी बेटी के चोट लगने की चिंता थी और न ही मेरे से कोई मतलब था। उसे तो सिर्फ वहां जाने की जल्दी थी, जहां की बस के इंतजार में वह परिवार समेत सड़क किनारे खड़ा था। शायद वही उस लड़की का बाप था। उनका पूरा परिवार बस में बैठा और कुछ देर बाद बस भी मेरी आंखों से ओझल हो गई। मैं खुश था कि पब्लिक के कोप से मैं बच गया, लेकिन मुझे उस दिन सिर्फ एक मलाल था कि कहीं लड़की को ज्यादा चोट तो नहीं आई। उसका क्या हुआ होगा। यही बात मुझे आज तक कचोटती है और हमेशा कचोटती रहेगी।
                                                                                                            भानु बंगवाल 

2 comments:

  1. Aisa hota bhai....par hame khud samhalna jaruri hai...Galati tumhari thi saja us bechari balika ko mili aainda se sawdhan rahen...Fir wo rasta khatarnak hai...

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  2. होता है सर कभी-कभार ऐसा भी होता है। उस वक्‍त में नौंवी कक्षा में था। नई साइकिल खरीदी और उसे लेकर बाजार में आ गया। बाजार में बाइक पर सवार दो लडकों ने मेरी राइकिल पर टक्‍कर मार कर टायर मोड दिया। मैं निरीह सा कभी अपनी साइकिल को देख रहा और कभी उन लडकों को। इस बीच आसापास मौजूद लोगों ने दो-तीन भलमानस आए और बाइक पर सवार लडकों को भला बुरा कहते हुए साइकिल ठीक कराने को कहने लगे। पहले तो लडकों ने दादागिरी दिखाई, लेकिन बाद में उन्‍होंने भीड की बात मानने में ही भलाई महसूस की। मैं भी खुश था कि इस दुर्घटना के बहाने मेरी साइकिल में नया टायर लग गया।

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