Tuesday 13 November 2012

लो मन गई, मिलावट की दीपावली....

चाहे कितना भी हम पर्यावरण का पाठ बच्चों को पढा़ लें, लेकिन वे कहां मानने वाले। हां इतना जरूर है कि इस दीपावली में उन्होंने अन्य साल की अपेक्षा कुछ कम ही आतिशबाजी छोड़ी। इसे देखकर मुझे संतोष जरूर हुआ। हर बार की तरह इस बार भी दिखावे की दीपावली आई और दिखावा कर चली गई। इस दिखावे में हमने हर शहर में करोड़ों रुपयों पर यूं ही आग लगा दी। ये आग ऐसी लगी कि इसका असर कई दिन तक अब लोगों की सेहत में पड़ने वाला है। यही नहीं मेरे शहर देहरादून में तो कुछ प्रकृति ने भी ऐसा इंसाफ लोगों के साथ किया है कि जिस क्षेत्र में जितनी ज्यादी आतिशबाजी हुई, वहां का वातावरण भी ज्यादा दिनों तक दूषित रहेगा। जहां कम हुई, वहां इसका असर कम ही रहेगा।
देहरादून एक घाटी है। यानी कि चारों तरफ पहाड़ से घिरा एक शहर। यहां का मौसम भी कुछ अजीबोगरीब है। हर मोहल्ले व क्षेत्र का तामपान एक सा नहीं रहता। बरसाती नदी के किनारे बसे इलाको में कुछ तापमान रहता है, तो दूसरे इलाकों में कुछ। बारिश के दौरान कहीं बारिश हो रही होती है, तो कहीं चटख धूप निकली रहती है। तेज हवा भी कभी कभार ही चलती है। ऐसे में जिस क्षेत्र में जितना वायु प्रदूषण को नुकसान पहुंचा होगा, वहां आगे भी लोगों की सेहत को उतना ही खतरा बना रहेगा। क्योंकि वहां की प्रदूषित आबोहवा वहीं तक ज्यादा दिन तक लोगों को परेशान करेगी। फिर यह मिलावटी त्योहार में हवा ही क्या, खानपान से लेकर हर चीज में खतरा पैदा कर गया।
यहां मैं मिलावटी शब्द का प्योग इसलिए कर रहा हूं कि वैसे तो हर वस्तु में मिलावट अब आम बात हो गई है, लेकिन दीपावली के त्योहार में मिलावट कुछ जरूरत से ज्यादा हो रही है। आसपड़ोस के बच्चों ने दीपावली की रात आतिशबाजी के दौरान जो भी राकेट छोडे़, वो सीधे आसमान में जाने की बजाय आसपास के घरों में ही घुसे। ऐसे में हर बच्चे के मुंह से यही निकल रहा था कि राकेट में मसाला मिलावटी है। मेरे एक मित्र डॉ. बृजमोहन शर्मा जल, वायु के प्रदूषण के साथ ही खाद्य पदार्थों में मिलावट के प्रति लोगों को जागरूक करते रहते हैं। मैने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि पूरी दीपावली ही मिलावटी हो गई है। हम जो पूजा सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं, उसमें रोली भी मिलावटी है। कायदे से हल्दी में चूने का पानी मिलाकर रोली बन जाती है। हल्दी में चूने का पानी मिलाओ और वह लाल न हो तो समझो कि हल्दी में मिलावट है। बाजार में जो रोली मिल रही है, उसमें कैमिकल पड़ा है। इसी तरह चंदन की खुश्बू मिवावटी, धूप व अगरबत्ती मिलावटी। धूप में जड़ी-बूटियों की बजाय घटिया पेट्रोलियम उत्पाद की मिलावट है। सरसों का तेल मिलावटी, हींग में आटे की मिलावट, काली मिर्च में पपीते का बीज, जीरा में गाजर के बीज की मिलावट हो रही है। दालों व सब्जियों में रंगों की मिलावट, मिल्क प्रोडक्ट में कैमिकल व घटिया सामग्री की मिलावट हो रही है। यहां तक मेवे इतने पुराने बिक रहे हैं कि उसमें से पोष्टिक तत्व आयल ही गायब है। फिर ऐसी चीजें खाकर सेहत को फायदा तो नहीं मिलेगा, लेकिन नुकसान जरूर होगा।
रही बात आतिशबाजी की। सोडियम नाइट्रेट, सल्फर, जिंक, कैल्मियम, बेरेनियम आदि की घटिया व मिलावटी क्वालिटी इसमें प्रयोग की जा रही हैं। ऐसे में आतिशबाजी भी सही तरीके से नहीं जलती। जो अधफूंका कूड़ा बचता है, वह बाद में मिट्टी व पानी में मिलेगा। इससे भी जल व जमीन में प्रदूषण होगा। यह तो रही प्रदूषण की बात। दीपावली में एक दूसरे को बधाई देने में भी लोग कोई देरी नहीं दिखाते। दिल में भले ही किसी के प्रति कुछ और हो, लेकिन दिखावे में वहां भी मिलावट रहती है। फिर कामना की जाती है कि भगवान हमें सुख,शांति, समृद्धि दे। मेरा मानना है कि यदि हम सुख, समृद्धि के लिए सही कर्म (यानी मेहन) नहीं करेंगे तो वह अपने आप नहीं आने वाली। और यदि इसके लिए मिलावटी (शार्ट कट रास्ता) अपनाते हुए कर्म करेंगे तो उसके फल में भी मिलावट ही होगी। फिर इसके लिए हम किसे दोष देंगे।
भानु बंगवाल

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