Sunday 4 November 2012

चारदीवारी लांघी तो घुटने लगा दम...

व्यक्ति कई साल से जिस परिवेश में रहता है, उसे वही अच्छा लगने लगता है। दूसरे परिवेश में वह खुद को ढाल नहीं पाता। हालांकि दूसरे परिवेश की दुनियां दूर से उसे अच्छी लगती हो, लेकिन वह जब उसमें जाता है, तो ज्यादा दिन नहीं टिक पाता। कुछएक लोग ही ऐसे होते हैं जो समय व परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालने में सक्षम होते हैं। अन्यथा व्यक्ति को जहां की आदत पड़ जाए, वह उससे मुक्ति नहीं पा सकता। यह आदत अच्छी और बुरी दोनों हो सकती है। वर्षों से पड़ी आदत से व्यक्ति मजबूर हो जाता है। बुरे को बुरे का साथ ही अच्छा लगता है और अच्छा व्यक्ति समाज में अपनी तरह के व्यक्तियों की तलाश करता है।
घर, पति व प्रेमी से ठुकराई महिलाओं की कहानी के लिए एक बार मैने नारी निकेतन जाने का निर्णय लिया। वहां जाने से पहले मैने जिलाधिकारी का अनुमति पत्र लिया और यूपी के एक नारी निकेतन (महिला संप्रेक्षण गृह) में गया। वहां जाकर अधीक्षिका ने मुझे सभी संवासिनियों से मिलाया और मैने उनसे अलग-अलग बात कर उनके जीवन के बारे में यह जानने का प्रयास किया कि वे किन परिस्थितियों में नारी निकेतन पहुंची। अमूमन सभी की कहानी करीब एक सी थी। कोई नाबालिक होने पर प्रेमी के साथ भागी। पकड़े जाने पर जब वह घरवालों के साथ रहने को तैयार नहीं हुई तो उसे वहां पहुंचा दिया गया। कुछ युवतियां ऐसी थी, जिन्हें प्रेमी, परिवार, या पति ने ही ठुकरा दिया था। कई ऐसी भी युवतियां मिली, जो अपनी कहानी सही नहीं बता रही थी। ऐसी युवतियां परिवार से बिछुड़ने की बात दोहरा रही थी। ऐसी युवतियों में अमूमन सभी कहीं मेले या फिर सफर के दौरान ट्रेन छुटने के कारण परिजनों से बिछुड़ने की बात दोहराती। मुझे उनकी बातों का विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन मैने यह नहीं कहा कि वे मुझसे झूठ कह रही हैं। वह जो बताना चाहती थी, उस पर मैं क्या कर सकता था। इसके बावजूद सभी की इच्छा नारी निकेतन की चारदीवारी से बाहर निकलकर खुली हवा में सांस लेने की थी। सभी की आंखों में सुंदर भविष्य के सपने थे। पर सपने कैसे साकार होंगे, यह किसी को पता नहीं था। हां पढ़ लिखकर ही कहीं मंजिल मिल जाए, इसी उम्मीद में कई पढ़ाई कर रही थी।
भले ही युवतियों ने परिवार से बिछड़ने की बात बस व ट्रेन से छूटकर बिछड़ने की कही, लेकिन अब मैं महसूस करता हूं कि वे सच ही कह रही थी। घर, परिवार की गाड़ी में हर इंसान सफर करता है। इस भीड़ में जो अलग से सफर करता है, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ तालमेल नहीं बैठाता, तो उसका बिछड़ना निश्चित है। ऐसों को पहले परिवार के बड़े बुजुर्ग समझाने का प्रयास करते हैं, लेकिन जब बार-बार भी समझाने से जवानी के जोश में डूबे युवाओं व युवितयों को समझ नहीं आता तो वे परिवार से बिछुड़ जाते हैं। तब न उन्हें परिवार के प्रति मोहमाया रहती है और न ही परिवार के सदस्यों को उनके प्रति।
मेरे नारी निकेतन जाने के कुछ माह बाद की बात है। नारी निकेतन की चारदीवारी में कैद 18 साल से ज्यादा उम्र की युवतियों का घर बसाने के लिए एक समाजिक संस्था ने पहल की। कुछ युवा आगे आए। प्रशासन की तरफ से उनका युवतियों से परिचय कराया गया। जोड़े बनाए गए और एक निश्चित दिवस पर सामूहिक विवाह कराकर ऐसी आठ युवतियों का घर बसा दिया गया। ऐसी शादी देखना भी मेरे लिए एक विचित्र अनुभव था। साथ ही यह खुशी भी हो रही थी कि चलो इन अभागियों को सहारा मिल गया। इस बात के करीब छह माह बाद मैं नारी निकेतन किसी समाचार के सिलसिले में गया। वहां जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि संवासनियों में कुछ चेहरे वे भी नजर आए, जिनकी छह माह पहले शादी करा दी गई थी। पता चला कि शादी के बाद सिर्फ तीन की ही अपने पति से बनी। बाकी जब परेशान हुई तो वापस नारी निकेतन भाग आई। नारी निकेतन में कई सालों तक रहने के बाद बाहरी दुनियां को देखकर वे डर गई। उनके लिए तो बाहर की खुली हवा ही घुटन भरी थी। तब मुझे पता चला कि उनका पति से तलाक का मुकदमा भी शुरू हो चुका था।
भानु बंगवाल

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