Thursday 15 November 2012

अफसर के अगाड़ी, घोडे़ के पिछाड़ी....

कहावत है कि किसी को अफसर के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी नहीं जाना चाहिए। दोनों ही कई बार खतरनाक साबित होते हैं। इसलिए व्यक्ति को बस अपने काम से ही मतलब रखना चाहिए। इसके बावजूद ये दिल है कि मानता ही नहीं। जानबूझकर कई बार व्यक्ति अफसर का चहेता बनने का प्रयास करता है। इस प्रयास में वह सफल भी  हो जाता है। यदि काबलियत होती है तो सिक्का चल पड़ता है। नहीं तो ज्यादा दिन उसकी चापलूसी नहीं चल पाती। जिस तरह घोड़े के पिछाड़ी जाने पर पता नहीं रहता कि घोड़ा कब बिदक जाए और लात जमा दे। ठीक उसी तरह अफसर के बार-बार पास जाने पर कब फजीहत हो जाए, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। अपने जीवन में मैने कई ऐसे लोगों को देखा जो बॉस के खासमखास कहलाते थे, लेकिन बाद में पता भी नहीं चला कि कब बॉस ने उन्हें पटखनी दे दी। पहले ऊंचाई पर बैठाया और फिर धक्का दे दिया।
करीब बीस साल पहले की बात है। तब स्थानीय समाचार पत्रों की काफी तूती बोलती थी। ऐसे ही एक समाचार पत्र के मालिकान में तीन भाई पार्टनर थे। एक भाई दूसरे राज्य में बैठकर समाचार पत्र की व्यवस्था संभाल रहा था, तो दूसरा भाई समाचार पत्र मुख्यालय में ही व्यवस्था देख रहा था। तीसरा भाई जो सबसे बड़ा था, वह विदेश में रहता और करीब छह माह में एक चक्कर लगाकर आमदानी का हिसाब किताब करता।
एक बार की बात है। रात को अचानक बिजली चली गई। जेनरेटर स्टार्ट किया तो वह भी तेल समाप्त होने पर बंद हो गया। समाचार पत्र के मालिक प्रेस परिसर में ही बने मकान में रहते थे। बीच वाला भाई आया और जेनरेटर स्टार्ट न होने पर एक कर्मचारी पर आग बबूला होने लगा। कर्मचारी ने बताया कि तेल डालना है। टार्च  नहीं मिल रही है। इस पर पूरी प्रेस में टार्च की खोज होने लगी। गेट पर गार्ड के पास भी टार्च नहीं मिली। तभी एक प्रूफ रीडर बीच में आ गया। उसे कर साहब के  नाम से पुकारते थे। उसने कहा कि कमाल है कि किसी के पास टार्च नहीं है। उनकी स्कूटर की डिग्गी में हमेशा टार्च रहती है। किस वक्त कहां इसकी जरूरत पड़ जाए। ऐसे में वह हमेशा अपने पास टार्च रखते हैं। कर साहब टार्च लेकर आए और जेनरेटर पर तेल डलवाकर स्टार्ट करा दिया। करीब बीस मिनट तक चले इस ड्रामे ने कर साहब को वाकई में साहब बना दिया। पत्र मालिक ने कर को कुशाग्र बुद्धि का बताते हुए घोषणा कर दी कि आज से वह समाचार पत्र के मैनेजर हैं। बस मैनेजर बनते ही कर साहब की बुद्धि भी भ्रष्ट हो गई। वह एक दुकान के लाला की तरह हर रिपोर्टर से हिसाब-किताब मांगने लगे। तब उस समय वह समाचार पत्र छह पेज का छपता था। उसमें कुल पैंतीस से चालीस समाचार ही लग पाते थे। पत्र में करीब छह-सात संवाददाता शहर के थे। कर साहब ने फरमान सुना दिया कि हर संवाददाता करीब 25 समाचार लाएगा और लिखकर देगा। यह फरमान अव्यवहारिक था। यदि हर संवाददाता 25 समाचार देता तो समाचार पत्र को भी काफी मोटा प्रकाशित करना पड़ता। पर जिद के आगे सभी संवाददाता मजबूर थे। फिर सभी संवाददाताओं ने कर की जिद का तोड़ तलाश लिया। एक-दो ढंग के समाचार लिखने के बाद किसी कार्यक्रम की रिपोर्टिंग को तोड़-तोड़ कर लिखना शुरू कर दिया। छोटी-छोटी चार दुर्घटनाओं को एक साथ समाहित करने की बजाय अलग-अलग लिखने लगे। हालांकि सभी समाचार प्रकाशित नहीं हो पा रहे थे और बच जाते। वहीं कर अपना मूल काम प्रूफरीडिंग पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था। समाचार पत्र के पार्टनर भाइयों में एक दिन विदेश में रहने वाला भाई आ गया। उसने समाचार पत्र का अवलोकन किया तो काफी गलती मिली। प्रूफ रीडर को बुलाया तो कर साहब उनके समक्ष पहुंचे। गलती के बारे में जब पूछा तो कर साहब ने बताया कि वह रिपोर्टरों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। इसलिए सही तरीक प्रूफ रीडिंग में समय नहीं दे पाए और गलती चली गई। इस पर अखबार स्वामी ने उसी समय कर साहब को पत्र से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
भानु बंगवाल  

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