Monday 16 July 2012

चेहरे पे चेहरा.....

देहरादून के छात्रों ने शहर भर में संचालित हुक्का बार के खिलाफ अभियान चलाया। इस अभियान के तहत तोड़फोड़ भी की और हुक्का बार बंद कर दिए गए। ये हुक्का बार भले ही कुछ समय के लिए बंद हुए हों, लेकिन छात्रो की इस कार्रवाई के बारे में जिसने भी सुना, उनमें से अधिकांश ने तारीफ ही की। लोगों का कहना था कि नशे के खिलाफ छात्रों का अभियान तारीफे काबिल है।
अब बात है नशे की। वर्तमान में युवा पीड़ी नशे की गिरफ्त में फंसती जा रही है। जो युवा घर परिवार के हाथ से निकल गया, वह तो शराब का नशा भी खुलेआम कर रहा है। जो छिपाकर नशा कर रहे हैं, वे या तो हुक्का बार में जा रहे हैं, या फिर नशीली दवा का सेवन कर रहे हैं। ऐसे नशेड़ी में छात्र व छात्राओं की संख्या भी  दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। अब रही नशा कराने वालों को रोकने की बात, तो अकेले हुक्का बार के खिलाफ छात्रों की कार्रवाई उनके दूसरे चेहरे को उजागर करती है।
वैसे तो हर नशा बुरा है, लेकिन व्यक्ति शराब का नशा करता है तो उसे ज्यादा बुरा माना जाता है। बीड़ी, तंबाकू भी गंभीर बीमारी को दावत देते हैं, लेकिन नशे के लिए पैन कीलर दवा व इंजेक्शन लगाना तो और भी खतरनाक है। क्योंकि ऐसा नशा करने वालों का जल्द किसी को पता नहीं चल पाता है। माता-पिता को जब इसका पता चलता है, तो तब तक उनके बच्चे हाथ से काफी दूर निकल चुके होते हैं। ऐसे में उन्हें सुधारना भी काफी मुश्किल हो जाता है। इन सबके बावजूद हुक्का बार पर ही छात्रों ने कार्रवाई क्यों की यह सवाल मुझे उस समय से ही कौंध रहा था, जब छात्रों का समूह हुक्का बारों में जाकर उन्हें बद करा रहा था। क्योंकि शराब के नशे की हालत में किसी की बेटी, बहन को छेड़ना, हत्या व अन्य जघन्य अपराध करने की घटनाएं तो अक्सर सुनाई देती हैं, लेकिन बीड़ी, हुक्का के माध्यम से नशा कर किसी को छेड़ने की घटना शायद ही किसी ने सुनी हो।
शहर में पहले तो शराब की दुकानें व कुछ बार ही थे, लेकिन अब शराब के बार व पब की  संख्या भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है। पब में तो शराब के नशे में मारपीट की घटनाएं भी आम हो गई हैं। सवाल उठता है कि ऐसे स्थानों पर छात्रों की नजर क्यों नहीं पड़ती। क्या छात्र भी शराब के बार संचालित करने वालों के हाथों खेल रहे हैं। क्योंकि हुक्का बार से जब पब व अन्य बड़े बार संचालित करने वालों का धंधा प्रभावित होने लगा तो अचानक छात्रों ने हुक्का बार के संचालन पर हमला बोल दिया। छात्रों का शराब के बार के खिलाफ सॉफ्ट कार्नर व हुक्का बार के खिलाफ आक्रोश क्या स्वभाविक था। या फिर सोची समझी रणनीति। क्योंकि कॉलेज में फीस ढांचे, समय से परीक्षा, लाइब्रेरी में पर्याप्त किताबें आदि मुद्दों को छोड़ छात्रों का आंदोलन कॉलेज परिसर की चारदीवारी से बाहर क्यों निकल रहा है।
इन्ही सभी सवालों की उधेड़बुन मेरे मस्तिष्क में चल रही थी। इसका सिंपल सा जवाब नहीं मिल रहा था। दोपहर को मैं घर की तरफ खाना खाने को जा रहा  था। घर के निकट राजपुर रोड पर आर्यनगर को जाने वाली ढलान की तरफ जब मैने रुख किया तो मुझे मन में उठने वाले सवालों का जवाब मिल गया। ढलान पर स्थित एक पब के बाहर छात्रों जमावड़ा लगा था। उनमें से अधिकांश के हाथ में कोल्ड ड्रिंक की बोतलें थी। शायद कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाई हुई थी। तभी तो एक दो सिप मारने के बाद छात्र अपने साथी को बोतल सरका रहे थे। ऐसी कोल्ड ड्रिंक  पब संचालन करने वालों की तरफ से छात्रों को मुफ्त परोसी जा रही थी।
भानु बंगवाल            

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