Saturday 28 July 2012

जब चली कलम तो भागा भूत.....

भूत, प्रेत, जादू, टोना, गंडे आदि के बारे में मैने बचपन से ही सुना था, लेकिन कभी भूत नहीं देखा। हां मेले में जादू अक्सर देखता था, लेकिन जल्द ही जादू मेरी पकड़ में आने लगा। सो मेरी दृष्टि में यह सिर्फ हाथ की ही सफाई थी। भूत के बारे में कई बार लोग किस्से सुनाते थे, लेकिन मैं उस पर यकीन नहीं करता था और आज भी नहीं करता हूं। वैसे भूत-प्रेत का जिक्र ऐसे स्थानों पर ही ज्यादा होता है, जहां जंगल हो, सुनसान हो, वीरान हो। पहाड़ों में तो व्यक्ति दो ही वस्तु से डरता है। उनमें एक बाघ है और दूसरा भूत। पहाड़ों में रात को सन्नाटे में जब हवा चलती है तो पेड़ की पत्तियों से भी आवाज आती है। यही नहीं रात को शिकार की तलाश में बाघ भी आबादी वाले इलाकों में विचरण करते हैं। ऐसे में कई बार तो लोग बाघ के चलने की सरसराहट को ही भूत समझ लेते हैं। खैर मेरे घर का माहौल ऐसा रहा कि किसी भी बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते रहे। ऐसे में मेरे से बड़े भाई व बहन कोई भी भूत की बातों का विश्वास नहीं करता।
अब रही भूत की बात। कई बार तो हमारे मीडिया से जुड़े लोग भी अंधविश्वास के किस्सों को बड़े चटपटे अंदाज से प्रस्तुत करते हैं। घटना की तह तक जाने का कोई प्रयास नहीं करता। इसी का परिणाम है कि वर्ष 94 में पूरे हिंदुस्तान में अचानक गणेश जी दूध पीने लगे। कई बार साईं बाबा की फोटो से दूध टपकने लगता है। साथ ही कई बार स्वाभाविक घटनाओं को चमत्कार के नजरिये से देखा जाता है।
ऐसी ही एक घटना मुझे याद है। करीब तीस साल पहले की बात है। देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र के अंतर्गत अनारवाला गांव में एक व्यक्ति के घर में भूत का वास होने की चर्चा पूरे शहर में आग की तरह फैलने लगी। एक पुराने मकान में रिटायर्ड फौजी रहता था। उसके मकान में रखा सामान अचानक धूं-धूं करके जलने लगता। ऐसे में फौजी ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ घर से दूर एक पेड के नीचे शरण ले ली। घर का कीमती सामान पेड़ के नीचे रख दिया गया। बचे सामान में कभी किसी पर और कभी किसी पर आग लगती। यहां तक कहा जाने लगा कि मकान में रात को पत्थरों की बरसात भी होती है। अनारवाला गांव में भूत वाले मकान को देखने के लिए दिन में लोगों का तांता लगने लगा था।
उस समय अमूमन सभी समाचार पत्रों ने मकान में भूत होने की घटना को बढ़ाचढ़ा कर प्रकाशित किया। तब मेरा बड़ा भाई एक स्थानीय समाचार पत्र में क्राइम रिपोर्टर था। वह भी घटना की तहकीकात करने गांव गया। कुछ दिन लगातार वह भूत वाले घर में गया। वहां उसने देखा कि मौके पर कोई भी मौजूद नहीं रहता और आग लग जाती है। इस आग लगने का कारण जानने के लिए मेरे भाई ने मेरी ग्याहरवीं की रसायन शास्त्र की किताब तक पढ़ डाली। फिर एक दिन आग के रहस्यों पर सवाल उठाते हुए समाचार पत्र में लेख प्रकाशित कर दिया। उस लेख में भवन स्वामी पर ही अंगुली उठाई गई। साथ ही यह भी बताया गया कि फौज में रहने के कारण भवन स्वामी को रसायनो के बारे में भी जानकारी है। लेख में स्पष्ट किया गया कि सफेद फास्फोरस आदि के घोल में भीगी वस्तु जब हवा के संपर्क में आती है तो उसमें अपने आप ही आग लग जाती है। पूर्व फौजी के मकान में आग लगने के कारणो में यह समझाया गया कि मकान पुराना हो चुका है। ऐसे मे नया मकान बनाने के लिए कहीं वह ग्रामीणो की सहानुभूति तो चाहता। क्योंकि उस समय गांव के लोग चंदा एकत्र कर जरूरतमंद की मदद भी करते थे। समाचार पत्र में लेख छपने के बाद मकान में आग लगनी भी बंद हो गई। भवन स्वामी अपने  परिवार के साथ उसी मकान में शिफ्ट कर गया, जहां भूत रहता था।  
भानु बंगवाल

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