Friday 20 July 2012

खिचड़ी तैयार, हंडिया फूटने को बेकरार...

यहां तो अजीबोगरीब खिचड़ी पक रही है। जिस हंडिया में खिचड़ी पक रही, वह भी अब फूटने को बेकरार है। एक तरफ बाबा रामदेव का नौ अगस्त से भ्रष्टाचारियों भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान, तो दूसरी तरफ फर्जी दस्तावेज के माध्यम से पास्पोर्ट हासिल करने के मामले में बाबा के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी। उस आचार्य बाल कृष्ण की गिरफ्तारी, जिनके सहयोगी बाबा रामदेव सदैव भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे। समय-समय पर धरने, भूख हड़ताल आदि भी करते रहे। यानी दूसरों को नसीहत व खुद ही फजीहत, वाली कहावत यहां चरितार्थ होती नजर आ रही है। जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर बाबा आवाज उठा रहे हैं, वही मुद्दा उनके सहयोगी के माध्यम से उनके गले की भी फांस बन रहा है।
कहते हैं कि यदि किसी को सांप काटे तो शायद वह बच जाएगा, लेकिन यदि नेता काटे तो व्यक्ति पानी तक नहीं मांगता। ऐसे में बाबाओं को किसने सलाह दी कि अपनी बाबागिरी छोड़कर सरकार से दो-दो हाथ करो। यदि चुपचाप लोगों को कपालभाती व योग की अन्य कलाएं सिखाने के अलावा दाएं व बाएं नहीं देखते, तो शायद यह नौबत नहीं आती। अब बाबा ने तो भ्रष्चाचार को जड़ से उखाड़ने की कसम खा रखी है। सभी जानते हैं कि इसकी असली जड़ जहां है, वहां तक जाने में कई चक्रव्यूह हैं। यह जड़ दिल्ली से लेकर पूरे भारत में फैल रही है। इसके लपेटे में बाबा का आश्रम भी नहीं बचा और उनके सहयोगी भी इसमें फंस रहे हैं।
 जब मै छोटा था, तब मैं गली-गली, मोहल्लों में घूमकर भिक्षा मांगने वाले भगवाधारियों को ही बाबा समझता था। वे घर-घर जाकर लोगों की सुख शांति की कामना करते और भिक्षा मांगते। समय बीतने के साथ हाइटेक बाबाओं की बाढ़ सी आ गई। गली व मोहल्ले में घूमने वाले बाबा भिखारी कहलाने लगे और एयर कंडीश्नर कार में घूमने, आश्रम के नाम पर आलीशान बंगलों में रहने वाले ही असली बाबा कहलाने लगे। ऐसे बाबाओं के नाम की लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन यह भी सच है कि ऐसे लोगो में बाबा रामदेव ने अन्य बाबाओं से अलग हटकर सीधे केंद्र सरकार से पंगा ले रखा है। नतीजा आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी के रूप में सामने है। अब इस पर भी गौर कीजिए कि सरकार व बाबा में कौन गलत व कौन सही है। भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए, यह हर नागरिक चाहता है। वहीं, पासपोर्ट हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज का सहारा लेने के आरोप यदि सही पाए जाते हैं तो क्या यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता। वहीं, आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी को लेकर सीबीआइ की तत्परता सरकार की बदले की भावना पर सवाल खड़े नहीं करती। सीबीआइ कोर्ट से आचार्य की गिरफ्तारी के वारंट जारी होने से पहले ही सीबीआइ उनकी गिरफ्तारी के लिए हरिद्वार में डेरा डाल चुकी थी। ऐसी तत्परता हर मामलों में क्यों नहीं दिखाई जाती। वहीं बाबा समर्थकों का रवैया भी समझ से परे है। जब यह मामला न्यायालय में चला गया तो यह लड़ाई न्यायालय में लड़नी चाहिए, लेकिन इसके विरुद्ध यहां तो बाबा के अनुयायी सड़कों पर उतरकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। न्यायालय में ही दूध-का दूध व पानी का पानी हो सकता है। इसके विपरीत एक तरफ सरकार खिचड़ी पका रही है, वहीं दूसरी तरफ बाबाओं की खिचड़ी पक रही है। हंडिया तप रही है, जो कभी भी बीच चौराहे में फूटने वाली है। नतीजा क्या निकलता है, यह आने वाला वक्त बताएगा। 
भानु बंगवाल

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