Friday 25 May 2012

सब कुछ नकली, तो असली क्या

महंगाई लगातार बढ़ रही है।पेट्रोल, सब्जी, राशन-पानी के दाम लगातार बढ़ रहै हैं।अब तो दाम बढ़ना सामान्य बात सी लगने लगी है।करीब बीस साल पहले जब समाचार पत्रों में आतंकवादी वारदात या हत्या आदि के समाचार पहले पेज में छपते थे, तो उस पर लोग भी चर्चा करते थे।बाद में यह बात सामान्य होने लगी।ठीक उसी तरह महंगाई बढ़ना भी अब सामान्य बात होने लगी है। महंगाई तो बढ़ रही है।साथ ही अब असली व नकली के बीच भेद करना भी मुश्किल हो गया है।महंगा सामान खरीदा और पता चला कि नकली है।सच तो यह है कि मिलावटी का जमाना आ गया है।हर चीज में मिलावट है।फिर किसे इस्तेमाल करें या किसे न करें, यह सवाल हर जनमानस के मन में उठता है।
सुबह उठने के बाद जब व्यक्ति स्नान आदि से निवृत होने के बाद नाश्ते की तैयारी करता है।नाश्ते में दूध लो, लेकिन क्या पता वह भी असली नहीं हो।सिंथेटिक दूध का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। चेकिंग के नाम पर सरकारी महकमा छोटे विक्रेताओं पर ही शिकंजा कसता है।बड़ी कंपनियों व बड़े कारोबारियों के डिब्बा बंद व पैकेट की शायद ही कभी जांच की जाती हो। यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि अधिकांश लोग पैकेट की चीजों के इस्तेमाल पर िवश्वास करते हैं।मेरे एक सहयोगी ने बताया कि एक दिन रात के समय उसके हाथ से दूध का पैकेज गिर गया।थैली फट गई।उसने सोचा की सुबह फर्श की सफाई करेगा।सुबह उठने के बाद जब सफाई की तो वह दूध के दाग नहीं छुटा पाया।कई महीने तक दूध के दाग साफ नहीं हो सके।ऐसे दूध को असली कहेंगे या फिर कुछ और।
अच्छी सेहत के हरी सब्जी खाने को डॉक्टर कहते हैं।अब सब्जी के चटक हरे व दमकते रंग भी धोखा हो सकते हैं।सब्जी ताजी दिखाने के लिए परमल, करेला, खीरा, पालक, मटर के दाने आदि में कृत्रिम रंग मैलेचाइड ग्रीन को मिलाया जाता है।इसके घोल में डालने से सब्जी ताजी नजर आती हैं।ऐसी सब्जी को खाने से पेट दर्द, लीवर की खराबी, ट्यूमर, कैंसर जैसे खतरनाक रोग हो सकते हैं।अब दूध भी नकली, सब्जी भी नकली।तो खाओगे क्या।डॉक्टर कहते हैं कि ताजे फल खाओ और सेहत बनाओ।रही बात फलों की।उन्हें पकाने का तरीका भी तो नकली है।पेड़ में पकने की बजाय कच्चे फल तोड़कर उन्हें जल्द पकाने के लिए कैिल्शयम कार्बाइड का प्रयोग किया जाता है।खरबूजा, तरबूज, आम, आड़ू, अंगूर आदि इसी से पकाए जा रहे हैं।ऐसे फल खाकर बीमारी को न्योता देना है। तरबूज का लाल रंग भी धोखा हो सकता है।भीतर से सूर्ख लाल दिखने के लिए इसमें रोडामीन बी का इंजेक्शन दिया जाता है।इसे खाना भी बीमारी का न्योता देना है।केला बाहर से सही नजर आता है।छिलका उतारने पर भीतर गला होता है।
नकली फल, सब्जी खाने से बीमार हुए तो डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा।कई डॉक्टर साहब भी नकली हैं।नकली डिग्री लेकर गांव-गांव व कस्बों में उनकी दुकान मिल जाएगी।वे दवा लिखेंगे और हम कैमिस्ट की दुकान पर जाएंगे।क्या गारंटी है कि दवा भी असली हो।वैसे तो फल, दूध, सब्जी की जांच के तरीके भी हैं, लेकिन किसके पास इतना समय है कि सब्जी लाने के बाद उसके एक टुकड़े पर स्प्रीट से भीगी रुईं रगड़े।ऐसा करने पर मिलावटी रंग रुईँ पर लग जाएगा।इसी तरह चायपत्ती व अन्य सामान की भी जांच की जा सकती है।यहां जांच के तरीके बताउंगा तो यह ब्लाग काफी बढ़ा हो जाएगा।पर सच यह है कि जांच करोगे तो कुछ भी खाने लायक नहीं रहोगे।खाने के बाद बात रही पीने की।पानी भी अब शुद्ध नहीं रह गया है।पतित पावनी गंगा का पानी भी प्रदूषित है।इसे भी मैला करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी।
दूध मिलावटी, पानी प्रदूषित, सब्जी का रंग नकली, दही मिलावटी, पनीर मिलावटी, दाल में पॉलिश, जूस मिलावटी सभी कुछ तो नकली है।फिर असली क्या बचा है।इंसानी रिश्ते।यह भी मिलावटी हो सकते हैं और बनावटी भी।तभी तो अपने असली पिता का पता लगाने के लिए रोहित शेखर नाम के व्यक्ति ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खिलाफ न्यायालय की शरण ली है।सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्हें डीएनए टैस्ट के लिए कहा जा रहा है।     
 भानु बंगवाल

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