Tuesday 26 June 2012

कौन गलत, कौन सही..(बचपन के दिन भुला-2)

अपने प्यारे कुत्ते जैकी की मौत का घर में सभी को काफी दुखः था। जिस दिन उसकी मौत का पता चला घर में किसी की खाना खाने तक की इच्छा नहीं हुई। मैने दोबारा कुत्ता पालने का विचार ही मन से निकाल दिया। वर्ष 1989 की जनवरी में पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हो गए। उनके रिटायर्डमेंट के बाद कुछ माह हम किराये के दो कमरो के मकान में चिड़ौवाली नामक स्थान पर रहे। रिटायर्डमेंट के बाद जो पैसा मिला उससे पिताजी ने वर्ष 1990 में देहरादून की राजपुर रोड से सटे आर्यनगर में तीन कमरों का मकान खरीद लिया। तब तक मेरी तीन बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी। बड़ा भाई एक दैनिक समाचार पत्र में रिपोर्टर था और मैं एक ठेकेदार के साथ सरकारी विभागों में भवन आदि बनाने की ठेकेदारी का काम सीख रहा था। मैने अपनी मेहनत से एक साइकिल खरीदी, जो घर से ही चोरी हो गई। इसका जिक्र भी मैं- साइकिलः अपनी कमाई की, नामक  ब्लाग में काफी पहले कर चुका हूं।
पिताजी के पास जो राशि थी, उससे मात्र मकान का ढांचा ही खरीदा गया। तीन कमरों में ही छत थी। मकान में दो बाथरूम थे। इन दो बाथरूम के साथ ही एक छोटे कमरे व कीचन में छत नहीं थी। हमारे रहने लायक मात्र तीन कमरे थे। मकान का चारदीवारी तो थी, लेकिन गेट नहीं था। किसी तरह कीचन व बाथरूम के साथ ही एक अन्य कमरे में सिमेंट व टिन की चादर की छत का जुगाड़ किया गया, लेकिन गेट के नाम पर बांस की खपच्चियों से पिताजी और मैने एक कामचलाऊ गेट बना दिया।
घर से साइकिल चोरी होने पर रखवाली के लिए कुत्ते की आवश्यकता महसूस होने लगी। जैकी की मौत के बाद मैंने कुत्ता तलाशने में ज्यादा दिलचस्पी नही दिखाई। एक दिन मेरा बड़ा भाई राजपुर रोड जाखन स्थित एक सेवानिवृत्त मेजर के घर से भौटिया प्रजाति के कुत्ते का बच्चा लेकर घर आ गया।
भूरे रंग का करीब दस-पंद्रह दिन के कुत्ते के इस बच्चे को घर में सभी का खूब प्यार मिला। उसकी देखभाल भी अच्छी तरह हुई और वह तेजी से बड़ा होने लगा। इस कुत्ते का नाम मैने रॉक्सी रखा। बचपन से ही रॉक्सी काफी चुलबुला था। साथ ही वह रात को सोते समय मेरे बिस्तर में घुस जाता। जिस डंडे को देखकर कुत्ते डरते थे, वह उसे देखकर गुर्राना सीखा। करीब तीन महीने की उम्र में ही वह बड़े साइज के कुत्ते के बराबर नजर आने लगा। वह जल्द भौंकना सीख गया था। उसे देखकर अनजान व्यक्ति डरता था। जब उसके दांत निकलने लगे तो काफी पैने थे। वह खेल में भी यदि मुंह से किसी को पकड़ता तो समझो खून निश्चित रूप से आएगा। खेल ही खेल में मेरे भांजे को भी वह काट चुका था। वह कुत्ता कम, भेड़िया ज्यादा नजर आता था। उसकी नजर से कोई चीज छिपी नहीं रह सकती थी। वह उसे तलाश ही लेता। जब कुत्तों के दांत निकलते हैं और जब दूध के दांत टूटते हैं, तब वे चप्पल व जूतों को कुतरने लगते है। रॉक्सी में भी यही आदत थी।
घर में माता-पिता के साथ हम दो भाई व एक बहन थे। रॉक्सी की आदत यह भी थी कि जब कोई घर से बाहर निकलता तो उसका काफी दूर तक पीछा करने का प्रयास करता। काफी भगाने के बाद ही वह वापस लौटता। मेरी बहन राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान में टीचर्स की ट्रैनिंग ले रही थी। एक दिन अलसुबह मेरी बहन ने मुझे संस्थान तक छोड़ने को कहा। मैं मोटरसाइकिल से उसे छोड़ने को निकल पड़ा। घर के कामचलाऊ गेट से छिरककर रॉक्सी भी बाहर आ गया और हमारा पीछा करने लगा। मोटरसाइकिल में लगे शीशे पर मेरी नजर जब पड़ी तो मुझे इसका पता चला। मैने रुक कर उसे भगाने का प्रयास किया, वह कुछ दूर पीछे जाकर रुक गया। उस दिन वह वापस जाने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि नियति को कुछ और मंजूर था। मैने मोटरसाइकिल तेज दौड़ाई और घर से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित संस्थान में बहन को छोड़ दिया। वापस आया तो न तो रॉक्सी मुझे सड़क पर मिला और न ही घर पहुंचा। मुश्किल से पंद्रह मिनट में ही वह गायब हो चुका था। मैने आसपास उसे काफी तलाशा, पर उसका पता नहीं चला। एक महिला ने मुझे बताया कि राजपुर रोड पर कुछ दूर मैरा पीछा करने के बाद उसके पीछे कुत्तों के समूह पड़ा और वापस लौट गया।
उस दिन ड्यूटी में मेरा मन नहीं लगा। दोपहर को काम छोड़कर मैं वापस घर की तरफ रॉक्सी को तलाशने को चल पड़ा। घर से करीब दो किलोमीटर पहले ओल्ड सर्वे रोड पर दूर से मुझे दो व्यक्ति पैदल चलते दिखाई दिए। उनके हाथ में रस्सा था। रस्से पर रॉक्सी का शव बंधा था। वे उसे घसीट कर ले जा रहे थे। मैने उन्हें रोका और कुत्ते की मौत का कारण पूछा। उन्होंने बताया कि वे नगर पालिका के कर्मचारी है। यह जंगली कु्त्ता किसी बैंक के मैनेजर के घर घुस गया था। इसकी शिकायत नगर पालिका में की गई, तब जाकर काफी मुश्किल से यह कुत्ता मारा गया। कर्मचारी कुत्ते को मारने की अपनी बहादुरी बखान कर रहे थे और मेरा शरीर सुन्न होता जा रहा था। मैने अपनी एक दिन की दिहाड़ी बीस रुपये उन्हें दी और कहा कि उसे गोद में ले जाओ। इसे कहीं दफन कर देना। पैसों के लालच में वे कुत्ते को  उठाकर चलने लगे। उनसे शिकायतकर्ता का पता लेकर मैं सीधा उस घर में गया, जहां रॉक्सी को मरवाया गया था। बैंक मैनेजर का परिवार काफी सीधा लगा। उन्हें कुत्ते की प्रजाति का भी पता नहीं था। हुआ यूं कि उस दिन रॉक्सी पहली बार घर से बाहर कदम रखकर काफी दूर तक निकल गया था। जब रॉक्सी के पीछे सड़कों के कुत्ते पड़े तो वह डरकर बैंक मैनेजर के घर जान बचाने को घुस गया। वह उनके घर बेड के नीचे जा छिपा। उसे भगाने को जब डंडा दिखाया तो स्वभाव के अनुरूप वह गुर्राने लगा। ऐसे में जंगली कुत्ता समझकर उन्होंने उसे मरवा दिया। मैं बैंक मैनेजर को भी कुछ नहीं कह सका। यही मनन करता रहा कि मेरी गलती पहली थी कि कुत्ते को ज्यादा दूर पीछे क्यों आने दिया। आज यह सवाल मन में उठता है कि बैंक मैनेजर ने भी क्या गलती की थी, जो कुक्ते को जंगली समझकर उसे मरवा दिया। पूरे प्रकरण में कौन गलत और कौन सही था। घर पहुंचा तो देखा माताजी खाना बना रही है। सबकी रोटी बनाने के बाद वह रॉक्सी के आने की उम्मीद में उसके लिए मोटी-मोटी रोटियां थैप रही थी।........(जारी)
भानु बंगवाल

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