Wednesday 6 June 2012

अब हाइटेक हो गए ठग...

पीएनबी में बैंक खाता होने के बावजूद अक्सर मैं दूसरे बैंक के एटीएम का इस्तेमाल करता हूं।कारण यह है कि पीएनबी का एटीएम काउंटर मेरे रास्ते में तो पड़ते हैं, लेकिन सड़क क्रास करने का झंझट रहता है।साथ ही पीएनबी के काउंटर में भीड़ भी मुझे ज्यादा मिलती है।ऐसे में जब भी मैं दूसरे बैंक के एटीएम से पैसे निकालता हूं, तो मोबाइल मंे एक मैसेज आता है।इसमें निकाली गई राशि का विवरण होता है, साथ ही एक अनुरोध भी रहता है कि पीएनबी के एटीएम का ही इस्तेमाल करें।ऐसे में कई बार मैं पीएनबी की एटीएम मशीन का इस्तेमाल करने का प्रयास करता हूं।इस प्रयास मंे अधिकतर मुझे निराश ही होना पड़ा।कई बार पैसे ही नहीं निकले, तो कई बार मशीन खराब मिली।एक रात को देहरादून में पीएनबी की इंद्रानगर शाखा के एटीएम से पैसे निकालने गया, तो वहां अंधेरा था।मशीन चालू थी।मैने पहले जमा राशि की जांच के लिए कार्ड मशीन पर डाला।राशि का पता तो चल गया, लेकिन कार्ड बाहर नहीं निकला।अंधेरे में मैं परेशान हो गया।अक्सर एटीएम मशीन के कक्ष में कुछ मोबाइल नंबर लिखे होते हैं।इनमें किसी परेशानी की शिकायत की जाती है।मैने मोबाइल से रोशनी कर पूरे कक्ष का निरीक्षण किया।वहां कुछ नंबर थे।वहां दीवारों में नंबर के कुछ स्टीकर तो लगे थे, पर कहां के हैं इसका पता नहीं चल रहा था।कारण स्टीकर कुछ फटे हुए थे।ऐसे में मैने अंदाज से पहला नंबर मिलाया।वह मैरिज ब्यूरो का निकला।दूसरा नंबर मिलाया तो वह हैल्थ सेंटर का निकला।जहां बताया जाता है कि वजन को कैसे कम किया जाए।तीसरे नंबर एक एजेंसी का था, जिसमें यह बताया जा रहा था कि घर बैठे मैं आसानी से करोड़ पति बन सकता हूं।
रात के साढ़े दस बजे कार्ड फंसा और वहीं पर ग्यारह बज गए।मैने एक मित्र को फोन मिलाकर शिकायत के लिए नंबर हासिल किया, लेकिन वह नंबर दस से बारह बार ट्राई करने के बावजूद भी नहीं लगा।फिर मैने समय बर्बाद करने की बजाय घर जाना ही बेहतर समझा।अगले दिन सुबह मैं बैंक गया।वहां के मैनेजर मुझे काफी सज्जन लगे।उन्हें मैने अपनी समस्या बताई तो वह मुस्कराने लगे।उनके लिए यह नई बात नहीं थी।मैनेजर के कमरे में एक महिला भी बैठी थी, वह पांच हजार रुपये से एकांउट खुलाने आई थी।मैनेजर ने उस महिला से पूछा कि वह क्या करती है, तो उसने बताया कि वह घरेलू महिला है।खाता खोलने की वजह उसने बताई कि उसकी लाटरी लग गई है।ऐसे में एकाउंट खोलना जरूरी है।महिला की बात सुनकर मेरी दिलचस्पी बढ़ी।मैने पूछा कि कहीं लाटरी का टिकट लिया था।इस पर उसने बताया कि टिकट नहीं लिया।मोबाइल फोन पर करीब तीस लाख की लाटरी लगने का मैसेज आया।कागजी कार्रवाई के लिए उससे दस हजार रुपये अदा करने हैं।फिर बैंक में पैसे ट्रांसफर हो जाएंगे।मैं तुरंत समझ गया कि महिला ठगी का शिकार बनने वाली है।मैने उसे समझाया कि इस तरह के मैसेज फर्जी होते हैं।अब तक कई लोग ऐसी ठगी का शिकार हो चुके हैं।मैने बताया कि मुझे तो कई मिलीयन डालर, यूरो व अन्य ईनाम के मैसेज अक्सर आते रहते हैं।मैने हाल ही में ऐसी ठगी के शिकार लोगों के उदाहरण भी दिए, जो मैसेज के जाल में फंसकर पांच से दस लाख रुपये गंवा चुके थे।इस पर महिला सब कुछ आसानी से समझ गई और उसने लाटरी की राशि का मोह छोड़ दिया।
सच ही है कि व्यक्ति लोभ के फेर में पड़कर ही अपनी जमा पूंजी भी गंवा देता है।पहले भी ठगी करने वाले लालच देते थे और अब भी।फर्क इतना है कि अब ठग हाइटेक हो गए हैं, वह सीधे सामने नहीं आते और काम कर जाते हैं।जब मैं छोटा था, तब ठग रास्ते में पोटली रख देते थे।कोई व्यक्ति जब उसे उठाता, तो एक व्यक्ति भी उसके पास आता।वह कहता कि पोटली दोनों ने देखी है।इसका सामान आधा-आधा बांटेंगे।पोटली में नकली सोने के गहने होते।ठग अपने हिस्से में नकदी मांगता।लालच में पड़कर व्यक्ति अपनी जेब की राशि ठग को देता।ऐसे में ठग राशि कम बताता और ठगी का शिकार बन रहे व्यक्ति की घड़ी, चेन, अंगूठी आदि भी ले जाता।बदले में व्यक्ति को पीतल के गहनों की पोटली थमा देता।इसी तरह रास्ते में मिलने वाले अनजान कई बार परेशानी बताकर सोने को कौड़ियों के भाव बेचने का लालच देते।लालच में पड़कर व्यक्ति अपनी जेब की राशि, अंगूठी आदि ठग को थमाकर ज्यादा सोना लाने के फेर में पड़ जाते।ठगी का शिकार होने वाले यह भी नहीं सोचते कि वह सोने के बदले सोना क्यों दे रहे हैं।जो वह दे रहे हैं वह तो असली है, लेकिन दूसरा जो थमा रहा है, उसके असली होने की क्या गारंटी है।लालच ही ऐसी चीज है, जो सोचने की शक्ति को भी कमजोर कर देती है।
ऐसा नहीं है कि ठगी का शिकार भोले-भाले लोग ही बनते हैं।कई बार तो समाज में शातीर माने जाने वाले नेताजी भी लालच में पड़कर ठगी का शिकार हो जाते हैं।देहरादून में जिला पंचायत के एक पूर्व अध्यक्ष बैंक से करीब दो लाख रुपये निकालकर अपनी गाड़ी तक पहुंचे।सीट पर ब्रीफकेस रखकर वह जैसे ही बैठने लगे, तभी एक व्यक्ति ने उन्हें बताया कि उनके कुछ नोट जमीन पर गिर गए है।नेताजी ने देखा कि वाकई में दस, पचास व सौ के कुछ नोट नीचे पड़े हैं। लालच में वह नोट उठाने लगे।खुश होकर उन्होंने नोटों को एकत्र कर कुर्ते की जेब के हवाले किया।फिर कार में बैठे तो उनके नीचे से जमीन ही खिसक गई।उनका नोटों से भरा ब्रिफकेस गायब हो चुका था।वह नोट के बदले नोट ही गंवा बैठे।
भानु बंगवाल 
 
  

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