Tuesday 12 June 2012

ये मुंबइया बहुत बोलता है...

इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हरएक घड़ी देखकर काम कर रहा है। सुबह उठने से लेकर चाय-नाश्ता, नहाने, समाचार पत्र पढ़ने, दफ्तर जाने आदि सभी का करीब टाइम फिक्स रहता है। अमूमन अंदाज से तय समय के अनुरूप ही हमारे काम निपटते हैं। पर कुछ काम ऐसे होते हैं, जिसमें हमारा टाइम मैनेजमेंट पूरी तरह से फेल हो जाता है। हमें पता ही नही होता है कि उसमें कितना वक्त लग जाएगा। ऐसे कामों में बिजली, पानी के बिल जमा करना, रेलवे आरक्षण  कराना, चिकित्सक के पास जाना आदि शामिल हैं। ऐसे कामों में यह पता नहीं होता है कि पहले से वहां कितनी भीड़ हो सकती है। इन सबसे अलग करीब एक माह में एक बार एक काम ऐसा आता है, जहां भी काफी इंतजार के बाद नंबर आता है। वह है नाई की दुकान में जाकर बाल कटवाना।
कहते हैं कि पहनावे, बालों की स्टाइल आदि से व्यक्ति की स्मार्टनेस झलकती है। बाल यदि सही तरह के बने हों तो व्यक्ति का चेहरा-मोहरा भी बदला नजर आता है। ऐसे में व्यक्ति को अच्छे नाई की तलाश रहती है। बचपन से ही मुझे नाई की दुकान में जाने से खीज उठती रही। कारण है कि एक तो बाल कटवाने में काफी देर लगती है, दूसरे अक्सर नाई इतना बोलते हैं कि कई बार उन्हें सुनना भी बर्दाश्त से बाहर हो जाता है। शहर के हर छोटे बड़े व्यक्ति की जन्मपत्री उनके पास रहती है। सभी तरह के लोग उनकी दुकान में आते हैं। ऐसे में उनका सामाजिक ज्ञान कुछ ज्यादा ही होता है। डॉक्टर हो या वकील, दरोगा हो या सिपाही सभी उनकी दुकान में आते हैं। साथ ही वह कई बार तो अपनी पहचान का फायदा भी उठाने से नहीं चूकते।
कई बार बालों की कटिंग से संतुष्टि नहीं मिलने पर मैने नाई की दुकान बदली। पहली बार जिस भी दुकान में बाल कटाने गया, वहां नाई ने पहला सवाल यही किया कि पहले कहां से बाल कटाते रहे। सारे बाल खराब कर दिए हैं। अब मैं उन्हें ढर्रे पर लाऊंगा। आगे से यही बाल कटवाया करो। बाल काटने के साथ ही मजबूरन मुझे उसकी तारीफ भी सुननी पड़ती है। पहली बार तो अमूमन सभी हेयर ड्रेसर काफी तल्लीनता से बार काटते हैं, फिर आगे वे चलताऊ काम करने लगते हैं। ऐसे में मुझे कोई ऐसा हेयर ड्रेसर नहीं मिला, जो हर बार नए अंदाज व उत्साह के साथ बाल काटे।
मेरे एक मित्र ने बताया कि देहरादून की रायपुर रोड पर भट्टे के निकट एक हेयर ड्रेसर काफी अच्छे बाल काटता है। उसकी बताई दुकान पर मैं भी गया। उससे परिचय मित्र ने पहले ही करा दिया था। जब मैं दुकान में गया तो वहां कुर्सी पर बैठे एक ग्राहक को निपटा कर उसने मेरा ही नंबर लगाया। पहले से बैठे अन्य को उसने कहा कि मेरे बाद ही वह उनके बाल काटेगा। मैं खुश था। इस दुकान में बाल काटने वाला युवक मुंबइया के नाम से प्रचलित है। युवक ने मेरे बालों में क्लिप लगा दी। बालों को बार-बार नाप रहा था और काट छांट रहा था। खामोशी से अपने काम को अंजाम दे रहा यह युवक मुझे पहली ही बार प्रभावित कर गया। आधे बाल कटे तो मैने उससे पूछा कि तूझे मुंबइया क्यों कहते हैं। यहीं मै गलती कर गया। बस उसकी जुबां खुली और लपलपाने लगी। उसने बताया कि वह मुंबई में भी काम कर चुका है। फिर उसने यह भी बताया कि मेरे बाल वह ऐसे कर देगा कि हर कोई पूछेगा कि कहां बाल कटवाता हूं। नानस्टाप बोलने वाले इस युवक के बोलते समय कई बार हाथ भी चलने भी बंद होने लगते। ऐसे में बाल कटने में करीब सवा घंटा बीत गया।
बाल अच्छे कटे और मैं नियमित रूप से मुंबइया से ही बाल कटवाने लगा। कटिंग के पैसे भी वह मामूली वसूलता था। वाकई में उसने आड़े-तिरछे खड़े वालों को तीन-चार माह में ही ढर्रे पर ला दिया। उसकी दुकान में मेरे साथ दोनों बेटे भी बाल कटवाने जाते।  मुंबइया इतना बोलता था कि उसकी दुकान में जाने से मुझे झीज चढ़ने लगी। साथ ही वह काफी आलसी था। छुट्टी के दिन जब सुबह मैं उसकी दुकान पर पहुंचता, तो वहां ताला लगा होता। बगल में घर से उसे मैं उठाता। तब दुकान का शटर खोलकर वह सफाई का उपक्रम करता। मैं बच्चों से कहता कि बोलना मत, नहीं तो यह रामायण, पुराण व महाभारत सभी कुछ एक साथ शुरू कर देगा। फिर भी हमसे गलती हो ही जाती और वह टेपरिकार्डर की तरह अपनी कहानी सुनाने लगता। साथ ही बार-बार कहता कि मैने ऐसे बाल काट दिए हैं कि लोग पूछेंगे कि कहां से कटवाए। आज तक मुझसे ऐसा किसी ने नहीं पूछा, लेकिन उसका मानना था कि ऐसा लोग पूछते हैं।
एक दिन मुंबइया मेरे बाल काट रहा था और मेरा छोटा बेटा कुर्सी को घुमाकर खेल रहा था। उसने कुर्सी दुकान के बीचोंबीच रख दी। फिर कहने लगा अब आसानी से घुमाओ। तभी बड़े बेटे से कहा कि गाने सुनने हैं। उसने हां कह दिया। फिर वह मेरे बाल काटने छोड़कर भीतर अपने घर में चला गया। वहां से डेक को ऑन किया। गाना चला और बंद हो गया। फिर पेंचकस लेकर वह डेक ठीक करने लगा। घड़ी तेजी से घूम रही थी, लेकिन मुंबइया हमें खुश करने के लिए डेक का पोस्टमार्टम कर रहा था। इस काम में उसे बीस मिनट लग गए। तीन जनों के बाल काटने में उसने तीन घंटे से अधिक समय लगा दिया। मैं उसे जल्दी-जल्दी बाल काटने को कहता, लेकिन वह किसी की सुनता ही न था। ऐसे में मेरे साथ ही बच्चों ने भी मुंबइया से बाल कटवाने से तौबा कर ली। मुंबइया की दुकान हमारे घर से करीब ढाई किलोमीटर दूरी पर है, वहीं हमारे घर से डेढ़ सौ मीटर की दूसरी पर हेयर ड्रेसर की दुकान है। अब हम घर के ही पास बाल कटवाते हैं। बच्चों से जब भी मैं मुंबइया से बाल कटवाने को कहता हूं, तो वे यही कहते हैं कि- मुंबइया बहुत बोलता है और समय ज्यादा लगता है। पर सच यह भी है कि मुंबइया के हाथ में जो हुनर है, वह मुझे बड़ी से बड़ी नामी दुकानों के कारीगर में नजर नहीं आया।
भानु बंगवाल           

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