Thursday 28 June 2012

हिंसा से अहिंसा का पाठ (बचपन के दिन-3)

घर के पालतू जानवर भी परिवार का सदस्य हो जाते हैं। घर में सुख-दुख की घड़ी में जानवर भी व्यक्ति जैसा ही व्यवहार करते हैं। वे भले ही आदमी की बोली को बोल नहीं पाते हैं, लेकिन उनसे क्या कहा जा रहा है, उन्हें समझ आ जाता है। ज्यादातर जानवर हिसंक होते हैं, लेकिन एक ऐसा बेजुवान भी था, जो हिंसा से अहिंसा का पाठ पढ़ा गया।
मेरा भोटिया प्रजाति का कुत्ता अज्ञानतावश एक बैंक मैनेजर ने मरवा दिया। रॉक्सी नाम के इस कुक्ते की मौत पर घर में सभी को दुख था। तब कुत्ता पालने के नाम से ही मैं दुखी होने लगता था। दुनियां की रीत है कि एक दिन जो आया उसे जाना ही है। किसी के मरने का कितने दिन गम मनाया जा सकता है। कुछ दिन व्यक्ति दुखी होता है और धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगती है। अब तो इंसान की जान की कोई कीमत ही नहीं रही, फिर भी रॉक्सी तो कुत्ता ही था। उसे भी कुछ दिनों के बाद सभी भुला बैठे। मेरे भाई ने तय किया कि अब ऐसा कुत्ता पाला जाए, जिसे हाथ लगाने का कोई साहस नहीं कर सके। एक दिन वह करीब ढाई माह की डोवरमैन प्रजाति की कुतिया घर ले आया। इसका नाम ट्रेसी रखा गया।
काफी चंचल प्रवृति की ट्रेसी घर के सभी सदस्यों की लाडली थी। ट्रेसी को खाना देने के लिए एक प्लेट थी। जब परिवार के लोग खाना खाते हैं, तब कुत्ते को भोजन नहीं देना चाहिए। यहीं हमने कुत्ता पालने में गलती कर दी। हम कभी-कभार खाना खाते समय रोटी के टुकड़े उछालकर उसे देते थे। बस क्या था ट्रेसी की आदत पड़ गई कि जब भी हम भोजने करते वह चिल्लाने लगती। यह आदत छुड़ाने के लिए उसे काफी डराया भी गया, लेकिन यहां हमारा मनोवैज्ञानिक फेल हो गया। ट्रेसी की खासियत थी कि छोटे बच्चों से उसे काफी प्यार था। उसके सामने किसी बच्चे को यदि डांट दिया जाए, तो वह डांटने वाले पर ही भौंकने लगती, साथ ही काटने का उपक्रम भी करती। मेरा भांजा सोनू अक्सर हमारे घर आता था। वह शरारत करता और ट्रेसी के पास छिप जाता। ऐसे में उसे डांटने का साहस किसी पर नहीं होता। जन्माष्टमी में बच्चे घर में चंडाल सजाते हैं। मेरा भांजा भी हमारे घर अपने खिलौने- हीमैन, जेआइजो, बैटमैन आदि लेकर आया हुआ था। उसके लिए मैने नदी से रेत, पत्थर लाने के साथ ही काई, होली के रंग आदि से घर के आंगन में वृंदावन का मॉडल बनाया। उसे खिलौनों से सजाया गया। करीब तीस खिलौने वहां पर रखे गए। आसपड़ोस के बच्चे भी सोनू के साथ खेलने को दिन भर हमारे घर ही जमे रहे। शाम को काफी तेज बारिश होने लगी। बहन सोनू को अपने घर ले गई, बारिश के दौरान आपाधापी में वह खिलौने वापस नहीं ले जा सका। सारे खिलौने बाहर आंगन में पड़े रहे। रात गई और नई सुबह धूप के साथ निकली। बिस्तर से उठकर मैं सीधे  आंगन में गया और वहां का नजारा देख मेरे पैर से जमन खिसक गई। सारे खिलौने गायब थे। मैने सोचा कि बारिश से सजावट टूट गई, हो सकता है खिलौने रेत में दबे होंगे, लेकिन ऐसा नहीं था। शायद खिलौने कोई चोर ले उड़ा। अब सोनू को मनाना काफी मुश्किल काम था। फिर मुझे ट्रेसी पर गुस्सा आया कि बारिश में उसे किसी अनजान के आने का पता क्यों नहीं चला। रखवाली की बजाय वह भी टिन की छत  वाले अपने कमरे में सोती रही होगी। गुस्से से मैने ट्रेसी को आवाज लगाई, लेकिन वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली। मैं जब उसके कमरे में पहुंचा, तो वहां का नजारा देखकर मुझे काफी अचरज हुआ। मुझे पूरी कहानी समझ आई तो प्यार से ट्रेसी को पुचकारने लगा। हुआ यूं कि रात को खिलौने बाहर देख ट्रेसी विचलित हो गई होगी और एक-एक खिलौने को उठाकर वह अपने कमरे में जमा करती रही। इस तरह पूरी रात बारिश में भीगकर उसने अपने कमरे में खिलौनो का ढेर लगा दिया।
ट्रेसी ने चार बच्चों को जन्म दिया और कुत्ता पालने की चाहत में हमने उसे बहन को दे दिया। ट्रेसी को घुमाने अक्सर मेरे जीजा अपने बेटे सोनू व दूसरी बहन के बेटे को लेकर सैनिक डेयरी फार्म के जंगल में चले जाते थे। एक दिन एक बरसाती खाले में उतरकर वे जंगल में काफी आगे निकल गए। वे एक खाले से दूसरे खाले में भटक रहे थे, लेकिन उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था। ऐसे में सोनू रोने लगा। फिर उन्होंने तय किया कि खुद रास्ता खोजने की बजाय ट्रेसी पर निर्भर हो जाते हैं। ट्रेसी आगे-आगे चलती रही और राह भटके तीनों उसके पीछे। कुछ देर इधर-उधर घुमाने के बाद ट्रेसी उन्हें मुख्य मार्ग तक ले आई। बहन के घर उनके ऑफिस का एक कर्मचारी कौशिक आता था। उसे देख ट्रेसी स्वभाव के अनुरूप भौंकती थी। एक सुबह मेरे जीजा ट्रेसी को घुमा रहे थे। रास्ते देखा कि कौशिक का पड़ोसी से विवाद हो रहा है। विवाद बड़ा और मारपीट में बदल गया। कौशिक को पड़ोसी का परिवार पीट रहा था। तभी ट्रेसी ने आव-देखा न ताव और कौशिक को पीट रहे मुख्य व्यक्ति का हाथ मुंह से पकड़ लिया। वह व्यक्ति घरबाकर खुद को छुड़ाने में लग गया, लेकिन ट्रेसी की पकड़ से छूट नहीं पाया। पड़ोसी के चुंगल से छूटने के बाद मौका देख कौशिक जान बचाकर भाग निकला। दो पक्षो की हिंसा रोकने के लिए ट्रेसी के हिंसक होने के चर्चे उस दिन से कई दिनों तक बहन के मोहल्ले के लोगो की जुबां पर रहे। हिंसक होकर भी उसने अहिंसा का पाठ पढ़ा दिया। ... (जारी)
भानु बंगवाल

No comments:

Post a Comment