Saturday 30 June 2012

वजन बढ़ता गया और जेब ढीली..( बचपन के दिन-4)

कोई काम देखने से काफी आसान लगता है, लेकिन जब करने बैठो तब ही उसकी अहमियत नजर आती है। आसान सा दिखने वाला काम ही काफी मुश्किल भरा होता है। चाहे कोई नौकरी करता हो,  दुकान चलाता हो, चाहे कोई मजदूरी करता हो, या फिर एक्टिंग करता हो, नृत्य करता हो, या कोई खिलाड़ी निरंतर खेल का अभ्यास करता हो। ऊपरी तौर पर देखने में दूसरो के काम आसान लगते हैं। हो सकता है कि देखादेखी के बाद कोई दूसरे का काम कुछ समय तक आसानी से कर दे, लेकिन काम चलताऊ न हो, नियमित रूप से हो तो वह आसान नहीं होता। ऐसे में मेरा यही मानना है कि जो भी काम करो, दिल लगाकर।
अक्सर दूसरे के घर चुलबुले कुत्ते देखकर मन ललचाता है और देखने वाला भी यही डिमांड करता है कि ऐसा ही एक कुत्ता उसे भी दिला दो। कुत्ता पालना सबसे आसान काम नजर आता है, लेकिन तरीके से पालो तो यह ऐसी ड्यूटी हो जाती है, जिसमें कोई इंटरबल नहीं होता और न ही वीकऑफ। परवरिश में इंसान के बच्चे की तरह कुत्ते की भी देखभाल करनी पड़ती है। तभी वे पलते हैं। नहीं तो कब बीमारी लगी और कैसे उसकी मौत हुई इसका कारण भी पता नहीं चलता।
डोबरमैन प्रजाति की पालतू कुतिया ट्रेसी ने हमारे घर में एकसाथ चार बच्चों एक कुत्ता व तीन कुतिया को जन्म दिया। उस समय सर्दी के दिन थे। चारों बच्चों के साथ ही ट्रेसी की देखभाल मेरा बड़ा भाई करता था। घर में कुत्तों की भीड़ लगी तो बाद में हमने ट्रेसी को बहन को दे दिया। चार बच्चों में कुत्ते को हम रखना चाहते थे। तीन बच्चों को ऐसे लोगों को देना चाहते थे, जो उनकी सही परवरिश कर सकें। जब चारों कुत्ते करीब सवा महीने के थे, तो उनकी शैतानी भी बढ़ने लगी। मुझसे बड़ी बहन जब भी घर में झाड़ू-पौछा करती, तो चारों शैतानों को उसका इंतजार रहता। वे झाड़ू का छोर मुंह से पकड़ने का प्रयास करते। ऐसे में कुत्तों के साथ बहन की छीना झपटी होती। पौछा लगाते समय चारों एक छोर पकड़ लेते, जब वह छुड़ाने को पौछा खींचती, तो दूर तक फर्श में घिसटते चले जाते। इन कुत्तों के बच्चों का कोई नाम नहीं रखा गया। पहचान के लिए सबसे मोटी कुतिया को मोटी, सबसे कमजोर को छुटकी, भूरे रंग की कुतिया को भूरी व कुत्ते को कुत्ता ही पुकारा जा रहा था।
सर्दी ज्यादा होने पर चारों हीट ब्लोवर से सट कर बैठ जाते। भाई के कमरे में बेड के नीचे ही सभी ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था। घर के आंगन में रखे गमलों में  कीट का प्रकोप बढ़ने के कारण हम कीटशानाशक डीडीटी का प्रयोग करते थे। डीडीटी के गत्ते के डिब्बे को बेड से करीब तीन फुट की ऊंचाई पर दीवार में बने आले में रखा हुआ था। दोनों भाई तब अलग-अलग समाचार पत्रों में रिपोर्टर थे। एक शाम मैं व भाई दोनों ही घर पर नहीं थे। जब रोत को घर लौटे तो नजारा काफी भयावह था। आले से डीडीटी का डिब्बा बेड में गिर गया था। चारों शैतान बेड पर चढ़कर डीडीटी के गत्ते को कुतरकर खाते चले गए। पहले उनके पेट में गत्ते की लुगदी गई, फिर जहर।
जब हम घर पहुंचे तो बिस्तर पर डीडीटी पाउडर बिखरा हुआ था। जमीन पर चारों कुत्ते निढाल पड़े थे। नजारा देख पहली नजर में समझ आ गया। किसी तरह उनके पेट से जहर वापस निकालना था। ऐसे में हमें कुछ न सूझा और चीनी नमक का घोल बनाकर एक-एक कर उनके मुंह में भरना शुरू किया। जब जरूरत से ज्यादा घोल उनके पेट में गया तो उन्होंने उगलना शुरू किया। ऐसे में कुछ देर बाद उनकी तबीयत कुछ ठीक नजर आने लगी। कुत्ता व मोटी अन्य की अपेक्षा कुछ तगड़े थे। ऐसे में वे ठीक नजर आए। रात करीब दो बजे जब हम सोए, तो कुछ देर बाद कुत्ते के छटपटाने से नींद खुल गई। वह मिर्गी के मरीज की भांति पैर हिला रहा था। मुंह से झाग निकल रहा था। फिर से उसका ट्रीटमेंट किया गया।
अगले दिन चारों को एक बड़े से डिब्बे में रखकर निजी पशु चिकित्सक के पास ले गए। उसने कुत्तों की जांच की और खतरे से बाहर बताया। साथ ही उसने बताया कि चारों कुत्ते काफी कमजोर हैं। इन्हें खाने में क्या देते हो। भाई ने बताया कि खाना तो मामूली देते हैं। सभी यही कहते हैं कि कुत्ते को ज्यादा खाना दो और पेट भरा हो तो वह रखवाली नहीं करेगा। डॉक्टर ने बताया कि जिस तरह इंसान के बच्चे को बार-बार भूख लगती है, उसी तहर कुत्तों को भी लगती है। इन्हें इतना खाना दो कि उनका पेट भर जाए और प्लेट पर भी बचा रहे। डाइट में अंडा, दूध, सेरेलेक, कीमा आदि खिलाओ। फिर क्या था घर में सेरेलेक के डिब्बे आने लगे। कुत्तो की दवा, डाइट आदि पर भाई का आधा वेतन उड़ने लगा। भाई की जेब ढीली होती रही और कुत्तों का वजन बढ़ने लगा। इस बीच दो कुतिया मोटी व छुटकी को अलग-अलग लोगो को दे दिया। तब तक कुत्ते का नाम बुलेट रख दिया गया, जो बाद में बुल्ली हो गया।
दो कुत्तों को नियमित घुमाना, नहलाना, खिलाना भी आसान काम नहीं था। जब वे छह माह के थे, तो दोनों के लिए तीस से अधिक रोटी बनती थी। मां या बहन जो भी रोटी बनाती, मन ही मन कुत्तों को भी कोसते। इन कुत्तों ने उन्हें बांधने के लिए प्रयोग होने वाली कई चेन भी तोड़ डाली। सुबह के समय मैं दोनो को घुमाने करीब दो किलोमीटर दूर डेयरी फार्म के खेत व जंगलों में ले जाता। मेरे से साथ मेरी बड़ी बहन के जेठ का बेटा सोनू भी कई बार सुबह घुमने जाता। अब वह मर्चेंट नेवी में है। रास्ते में दोनों कुत्ते कई बार इतना जोर लगाते कि चेन पकड़कर संभालना भी मुश्किल हो जाता। एक दिन हम घर की तरफ लौट रहे थे। सोनू ने दोनों कुत्तों की चेन पकड़ी और वो आपस में उलझ गई। कुत्तों ने जोर मारा और उसके हाथ से चेन छूट गई। दोनों कुत्ते सामानांतर दोड़ रहे थे। चेन बीच में उलझी हुई थी। सामने से आने जाने वाले लोग रास्ता छोड़ रहे थे। हन दोनों मामा-भांजा कुत्तों को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति हमसे आगे जाता दिखाई दिया। उसे पता नहीं था कि पीछे क्या हो रहा है। करीब पैंसठ वर्षीय वह व्यक्ति दोनो कुत्तों के बीच चेन की चपेट में आ गया और जमीन पर गिर पड़ा। इसके बाद सोनू कुत्तों को लेकर घर पहुंचा और मैं पहले उस व्यक्ति के घर, फिर उसके परिजनो को साथ लेकर अस्पताल। (जारी)
भानु बंगवाल

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