Sunday 10 June 2012

पकड़ाना आसान, सजा दिलाना, ना बाबा ना...

शादी में जाने के लिए पहले कभी सूटकोट पहनने का क्रेज था। कुर्ता, पायजामा पहनने में तो तौहीन समझी जाती थी, लेकिन इन दिनों शादी के मौके पर लंबे डिजाइनर कुर्ते व पायजामे पहनने का फैशन सा चल गया है। दूल्हा भी सूटकोट की बजाय कुर्ता व पायजामा पहनता है, वहीं बारातियों के साथ ही शादी में आने वाले मेहमान भी डिजाइनर कुर्ते पहने होते हैं। इन डिजाइनर कुर्तों के साथ पायजामे में जेब तक नहीं होती। ऐसे में पहनने वाले को कुर्ते की जेब पर ही अपना पर्स व पैसे आदि रखने पड़ते हैं। ढीले-ढाले कुर्ते की जेब कब कट जाए, इसका भी पता नहीं चलता है। यह भी सच है कि आजकल शादियों में अक्सर लोगों की जेब कट जाती है। क्योंकि जेबकतरों के लिए कुर्ते में रखा पर्स उड़ाना आसान होता है।
बात करीब पांच साल पुरानी है। देहरादून में मैं पत्नी व बच्चों के साथ किसी विवाह समारोह में गया था। शादी में शामिल होने के लिए मेरी बड़ी बहन का परिवार भी दिल्ली से आया हुआ था। शादी में शामिल होने से पहले मेरे भांजे ने एक शोरूम से एक डिजाइनर कुर्ता खरीदा। मेरे जीजा भी अक्सर शादियों में सूट की बजाय कुर्ता ही पहनते हैं। शादी में जब हम पहुंचे तो वहां कुर्ते में कई युवा व बड़ी उम्र के लोग दिखाई दिए। लड़की की शादी में हम आमंत्रित थे।
वेडिंग प्वाइंट के गेट पर बारात जब आई, तो उस समय भीड़ का फायदा उठाकर छोटी उम्र के जेबकतरों का गिरोह भी सक्रिय हो गया। कुर्ते पहने मेहमान ही उनके निशाना बनते गए और किसी को इसका आभास तक नहीं हुआ। इसी बीच एक व्यक्ति को अपनी जेब कटने का एहसास हुआ। उसने जेब काटने वाले एक करीब 16 साल के किशोर को पकड़ लिया। किशोर की जेब से कुछ लोगों की जेब से साफ की गई रकम भी मिल गई। भीड़ उस पर अपने हाथ आजमाने लगी। किशोर के अन्य साथी भाग गए। कई लोगों की रकम भी वे साथ ही ले गए।
ऐसे मौकों पर कई बार जेबकतरों के साथी भी भीड़ में शामिल होकर उनकी पिटाई करने का उपक्रम करते हैं और मौका देखकर उसे भगा देते हैं। ऐसे में मुझे बीच में पड़ना पड़ा और मैने सभी को किशोर की पिटाई करने से मना किया। साथ ही उसे एक कुर्सी पर बैठा दिया और कोतवाली में फोन किया। मेरे जीजा व भांजे की जेब भी कट चुकी थी। जीजा के करीब तीन हजार रुपये गायब थे और भांजे का पर्स। पर्स में ज्यादा रकम नहीं थी, लेकिन एटीएम कार्ड, बीजा कार्ड, क्रेडिट कार्ड, परिचय पत्र आदि उसके पर्स में थे। पर्स किशोर के पास से बरामद हो गया और नकदी छोड़कर अन्य सारी वस्तुएं उसमें मिल गई। काफी देर के बाद पुलिस आई और किशोर को पकड़कर साथ ले गई। पुलिस ने पूछा कि कोई रिपोर्ट करना चाहता है, ऐसे में मेरे जीजा ने कहा कि वह रिपोर्ट लिखाएंगे। क्योंकि उनकी रकम मिली नहीं थी, ऐसे में उनके मन में जेबकतरे को सजा दिलाने का निश्चय करना स्वाभाविक ही था।
विवाह समारोह स्थल पर मेहमान पकवानों का मजा ले रहे थे, वहीं मेरे जीजा कोतवाली में बैठकर रिपोर्ट लिखा रहे थे। उनके साथ मेरा भी शादी का मजा किरकिरा हो गया था। रिपोर्ट लिखाकर जब वैडिंग प्वाइंट में हम वापस पहुंचे, तब तक खाना भी निपट चुका था। मैं बच्चों के साथ घर लौट आया। जीजा भी दो-तीन दिन देहरादून रहकर दिल्ली लौट गए। उनकी जेब से उड़ी रकम बरामद नहीं हो सकी। इस घटना के करीब डेढ़ साल बाद न्यायालय से मुझे देहरादून में और जीजा व भांजे को दिल्ली में सम्मन पहुंचे। रिपोर्ट में सभी के नाम का जिक्र था। ऐसे में सभी की गवाही जरूरी थी। देहरादून में रहने के कारण मैं तो कोर्ट में उपस्थित हो गया, लेकिन जीजा व भांजे के लिए यह एक सजा के ही समान था। जीजा निर्धारित तिथि पर देहरादून पहुंचे, लेकिन उस दिन वकीलों की हड़ताल थी। ऐसे में डेट आगे सरक गई। अगली डेट में आरोपी के वकील ने जानबूझकर कोई बहाना बना दिया और फिर दूसरी डेट ले ली। अब बार-बार डेट आगे सरकती और गवाही नहीं हो पाती। ऐसे में जीजा भी परेशान हो गए। जेब कटने पर उन्होंने जितनी रकम गंवाई, उससे कई ज्यादा दिल्ली-देहरादून के चक्कर में खर्च हो गए। ऐसे में वह आरोपी के वकील के मुताबिक ही बयान देने को तैयार हो गए। तब आरोपी के वकील ने भी झट से कोर्ट पहुंचकर मामला निपटा दिया। बाद में संदेह के आधार पर किशोर बरी हो गया। यह सच है कि  न्यायालयों में लेटलतीफी से उकताकर ही लोग कानूनी पचड़े में फंसने से तौबा करते हैं। ऐसे झंझट में फंसे लोग यही कहते हैं कि किसी अपराधी को पकड़ना आसान है, लेकिन सजा दिलाना, ना बाबा ना......
भानु बंगवाल
      

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