Thursday 19 April 2012

बातूनी दादी

उम्र 80 साल। पतली आबाज, पर काफी तेज। अब पांव से चलने फिरने में भी लाचार। घर के गेट से बाहर अब उसने जाना छोड़ दिया। बस एक आदत नहीं छूटी, वो है किसी की विषय पर लंबी बात करना। एक बार छेड़ दो तो बात पर बात निकलती चली जाती है और इस बातूनी दादी की बात कभी समाप्त नहीं होती है।
मेरे पिताजी के एक चाचा उनकी हम उम्र ही थे। उन्हें हम दादाजी कहते थे। दादाजी जितने शांत स्वभाव के थे, उसके ठीक उलट उनकी पत्नी यानी मेरी दादी है। बातें करने में पूरे गांव में उनका कोई जवाब नहीं। ऐसे में दादी का नाम बातूनी दादी पड़ गया। पिताजी देहरादून में नौकरी करते थे ऐसे में उन्होंने दादाजी का भी देहरादून में अपने साथ सरकारी नौकरी में जुगाड़ करा दिया। सच पूछो तो उस जमाने में सरकारी नौकरी के लिए ज्यादा मारामारी नहीं होती थी। लोग एक दूसरे को सरकारी नौकरी के लिए गांव से बुलाते थे। हमारा परिवार पहले से ही देहरादून रहता था। दादाजी भी अपना परिवार देहरादून ले आए। मुझे अपनी दादी की याद नहीं है। इसलिए पिताजी की चाची को ही मैं दादी  समझता था। करीब तीस साल पहले जब देहरादून में टेलीविजन नहीं थे, तब लोग काफी मिलनसार प्रवृत्ति के थे। अस्कर एक दूसरे के घर कई-कई किलोमीटर का सफर तय करके लोग मिलने जुलने जाया करते थे। हमारा घर सरकारी कालोनी में था। वहीं सरकारी दवाखाना भी था और दादी को दवाई खाने का कुछ ज्यादा ही शोक था। वह डिस्पेंसरी जाती तो हमारे घर भी जरूर आती थी। दादी के पास किस्सों का पिटारा रहता था। साथ ही वह ताजा समाचारों की भी जानकारी रखती थी। मुझे याद है पाकिस्तान प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली  भुट्टो की फांसी की खबर भी दादी ही हमारे यहां सबसे पहले लेकर आई थी।
भले ही बातूनी दादी ने किसी स्कूल में शिक्षा नहीं ली, लेकिन उसकी खासियत यह थी कि वह गणित में माहिर थी और याददाश्त काफी अच्छी थी। हमारे पूरे गांव के हर उम्र के बच्चों से लेकर युवाओं की जन्म तिथि उसे याद थी। किसी के जन्म, विवाह आदि का दिन, तारीख व वर्ष उसे टिप्स में याद रहता था। हंसी, मजाक बच्चों से लाड, प्यार आदि सभी उसके गुण थे। यदि उसे आभास हो जाए कि सामने वाला उसकी खिल्ली उड़ा रहा तो वह उसे श्राप देने में भी नहीं चूकती थी।
अब दादी अपने सबसे छोटे बेटे के पास देहरादून के रायपुर क्षेत्र में रहती है। वह ज्यादा चल फिर नहीं सकती, लेकिन आज भी उसे देश, दुनियां की खबर रहती है। 80 की उम्र में भी बातें अब भी वह पहले जैसी ही करती है। एक दिन वह घर के बाहर चारपाई में बैठकर धूप सेक रही थी। तभी एक युवक उसके पास आया और बातों में लगा दिया। बेटा व बहू घर पर नहीं थे। अनजान व्यक्ति से बातें करते हुए दादी को यह अहसास तक नहीं हुआ कि उसके अन्य साथी घर में घुसकर सामान खंगाल रहे हैं। जब युवक चला गया तो इसके काफी देर बाद दादी को चोरी का पता चला। आज दादी उस घटना की तारीख, समय को याद कर किसी अनजान से बात करने की आदत पर अपने को कोसती रहती है।  
                                                                                  भानु बंगवाल

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