अभी तक यही माना जाता रहा है कि रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार है। बहन भाई को राखी बांधती है और भाई उसकी रक्षा का संकल्प लेता है। साथ ही बहन को भाई दक्षिणा देता है। अब प्रश्न यह है कि एक मामूली सा धागा बांधने से क्या किसी की रक्षा हो सकती है। शायद सभी इसका उत्तर ना में ही देंगे। इस बारे में मेरा मानना है कि कोई भी पर्व आत्मविश्वास बढाने का होता है। यदि त्योहारों में हम ब्रत रखते हैं तो हम खुद को भी भीतर से मजबूत करते हैं। जरूरत पढ़ने पर हम भूखा रह सकते हैं। ऐसा ही आत्मविश्वास हमारे अंदर बढ़ता है। इसी प्रकार रक्षा सूत्र भी आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करता है। ठीक वैसे ही जैसे मेरी 85 वर्षीय बूढ़ी मां को जब भी बुखार होता है, तो उसे मैं बुखार की गोली देता हूं। मैं जो गोली देता हूं कई बार वह उससे ठीक नहीं होती। इस पर उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता है। डॉक्टर उसे वही गोली देता है, जो मैं पहले ही दे चुका हूं। इसके बावजूद वह डॉक्टर की गोली से ठीक हो जाती है। यही तो एक दूसरे के प्रति विश्वास है।
रक्षाबंधन को लेकर कई कहानियां मिलती हैं। कृष्ण को द्रोपती ने राखी बांधी तो चीरहरण के दौरान कृष्ण ने उसे संकट से बचाया। इंद्र रक्षसों से जब सब कुछ हार चुके तो उनके गुरु बृहस्पति ने उन्हें रक्षा सूत्र बांधा। यही रक्षा सूत्र ने इंद्र का आत्मविश्वास बढ़ाने का काम किया और वह राक्षसों से जीतने में सफल हुए। इसी तरह राजा बलि को जब पता चलता है कि उनकी हत्या ब्राह्मण के हाथ होनी है, तो वह गुरु शुक्राचार्य के पास जाते हैं। गुरु शुक्राचार्य उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हैं और राजा बलि पाताल में जाकर अपनी जान बचाता है। इसी तरह की अनेक कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि पहले यज्ञ के दौरान यज्ञसूत्र बांधे जाते थे। बाद में यही यज्ञ सूत्र का नाम बदलकर रक्षा सूत्र हो गया। ब्राह्मण अपने यजमान को रक्षा सूत्र बांधते हैं और यजमान उन्हे दक्षिणा देते हैं। अब सवाल यह उठता है कि रक्षा सूत्र किसे बांधा जाए। आप किसी की रक्षा का संकल्प लेते हैं, किसी की लंबी आयु की कामना करते हैं, तो उसे रक्षा सूत्र बांध सकते हैं। उत्तराखंड में मैती आंदोलन से जुड़े लोग पेड़ों को रक्षासूत्र बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं। वहीं अब तो यह त्योहार भाई व बहन का न होकर पिता-बेटी, पति-पत्नी का भी हो गया है। मेरी बहन तो अपने पति की लंबी उम्र की कामना को लेकर हर साल पति को रक्षा सूत्र बांधती है। इसी तरह दिल्ली स्थित मेरे भांजे की पत्नी अपने पिता को रक्षा सूत्र बांधती है।
रक्षा सूत्र बांधने के इस त्योहार को व्यापक स्तर पर मनाया जाना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि सिर्फ एक धागा बांधकर त्योहार की औपचारिकता न निभाई जाए। यह संकल्प भी लिया जाए कि जिसे राखी बांधी जा रही है,या जिससे बंधवाई जा रही है, हर मुसीबत में एक दूसरे की मदद को तैयार रहेंगे। कितना अच्छा होता कि होली की तरह यह त्योहार भी हर भेदभाव से हटकर मनाया जाता। पड़ोसी एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते। साथ ही एक दूसरे के प्रति मन में खटास को भूलने का प्रयास करते। अमीर-गरीब को, छोटा-बड़े को, बलवान-कमजोर को, मालिक नौकर को क्यों नहीं बांधता रक्षा सूत्र। क्यों नहीं हम एक दूसरे की तरक्की में सहयोग का संकल्प लेते। परिवार, रिश्तेदार, मित्र आदि शायद बुरे वक्त पर काम आ जाएंगे, लेकिन नए रिश्ते व संबंध भी जरूरत पड़ने पर काम आ सकते हैं।
भानु बंगवाल
रक्षाबंधन को लेकर कई कहानियां मिलती हैं। कृष्ण को द्रोपती ने राखी बांधी तो चीरहरण के दौरान कृष्ण ने उसे संकट से बचाया। इंद्र रक्षसों से जब सब कुछ हार चुके तो उनके गुरु बृहस्पति ने उन्हें रक्षा सूत्र बांधा। यही रक्षा सूत्र ने इंद्र का आत्मविश्वास बढ़ाने का काम किया और वह राक्षसों से जीतने में सफल हुए। इसी तरह राजा बलि को जब पता चलता है कि उनकी हत्या ब्राह्मण के हाथ होनी है, तो वह गुरु शुक्राचार्य के पास जाते हैं। गुरु शुक्राचार्य उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हैं और राजा बलि पाताल में जाकर अपनी जान बचाता है। इसी तरह की अनेक कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि पहले यज्ञ के दौरान यज्ञसूत्र बांधे जाते थे। बाद में यही यज्ञ सूत्र का नाम बदलकर रक्षा सूत्र हो गया। ब्राह्मण अपने यजमान को रक्षा सूत्र बांधते हैं और यजमान उन्हे दक्षिणा देते हैं। अब सवाल यह उठता है कि रक्षा सूत्र किसे बांधा जाए। आप किसी की रक्षा का संकल्प लेते हैं, किसी की लंबी आयु की कामना करते हैं, तो उसे रक्षा सूत्र बांध सकते हैं। उत्तराखंड में मैती आंदोलन से जुड़े लोग पेड़ों को रक्षासूत्र बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं। वहीं अब तो यह त्योहार भाई व बहन का न होकर पिता-बेटी, पति-पत्नी का भी हो गया है। मेरी बहन तो अपने पति की लंबी उम्र की कामना को लेकर हर साल पति को रक्षा सूत्र बांधती है। इसी तरह दिल्ली स्थित मेरे भांजे की पत्नी अपने पिता को रक्षा सूत्र बांधती है।
रक्षा सूत्र बांधने के इस त्योहार को व्यापक स्तर पर मनाया जाना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि सिर्फ एक धागा बांधकर त्योहार की औपचारिकता न निभाई जाए। यह संकल्प भी लिया जाए कि जिसे राखी बांधी जा रही है,या जिससे बंधवाई जा रही है, हर मुसीबत में एक दूसरे की मदद को तैयार रहेंगे। कितना अच्छा होता कि होली की तरह यह त्योहार भी हर भेदभाव से हटकर मनाया जाता। पड़ोसी एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते। साथ ही एक दूसरे के प्रति मन में खटास को भूलने का प्रयास करते। अमीर-गरीब को, छोटा-बड़े को, बलवान-कमजोर को, मालिक नौकर को क्यों नहीं बांधता रक्षा सूत्र। क्यों नहीं हम एक दूसरे की तरक्की में सहयोग का संकल्प लेते। परिवार, रिश्तेदार, मित्र आदि शायद बुरे वक्त पर काम आ जाएंगे, लेकिन नए रिश्ते व संबंध भी जरूरत पड़ने पर काम आ सकते हैं।
भानु बंगवाल
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