आजकल भई फैशन का जमाना है। इसके बगैर तो शायद ही कोई अपनी योग्यता का परिचय किसी को नहीं करा सकता। फेमस होने के लिए हो या फिर खुद को दूसरों की नजर में लाने के लिए, सभी काम में फैशन शो की जरूरत पड़ने लगी है। वैसे तो फैसन शो किसी होटल आदि में होते हैं। वहां मॉडल किसी कंपनी के उत्पाद या फिर परिधान को पहनकर रैंप में कैटवाक करती है। देखने वालों की निगाह उत्पाद पर कम और महिला मॉडल पर ज्यादा रहती है। शायद इसी को फैसन शो कहते थे। अब समय बदला और फैसन शो भी आम आदमी के इर्दगिर्द सिमट कर रह गया। फेसबुक में तो मानो इसकी बाढ़ सी आ गई। लिखने वाले तो इस सोशल साईट्स का इस्तेमाल अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में कर रहे हैं, वहीं कई फेशन शो में भी पीछे नहीं हैं। युवतियों की नग्न तस्वीरें हर दिन अपलोड की जाने लगी। इसे लाइक करने वालों की भी कमी नहीं है। तो क्या यहीं तक सिमट कर रह गया फैसन शो। इस पर मेरा जवाब नहीं में ही है। क्योंकि अब तो कोई भी वस्तु चाहे अच्छी या बुरी क्यों न हो, लेकिन उसे परोसने के लिए फैशन शो की जरूरत ही महसूस की जाने लगी।
शीशे के सामने कोई यदि खुद को निहारता है, तो शायद उसे यही भ्रम होता है कि वह काफी खूबसूरत है। अपने भ्रम को और पुख्ता करने के लिए वह अपने रंग-रूप, पहनावे, खानपान आदि में भी ध्यान देने लगता है। भीतर से यानी स्वभाव से चाहे वह कितना कुरूप हो, लेकिन बाहर से सबसे सुंदर दिखने का प्रयत्न करता है। अब तो व्यक्ति शीशे से निकलकर कंप्यूटर, मोबाइल के जरिये इंटरनेट की दुनियां में आ गया है। फैशन शो के जरिये वह भी खुद को साबित करने की जुगत में लगा है। बच्चें हों या फिर जवान, युवक, युवती हों या फिर बूढे़। सभी इस फैशन शो का अंग बन रहे हैं।
वैसे हर कदम-कदम पर फैशन की जरूरत पड़ने लगी है। मित्र की रेडियो व टेलीविजन मरम्मत की एक दुकान थी। अब टीवी ज्यादा खराब होते नहीं हैं और रेडियो खराब होने पर लोग नया खरीद लेते हैं। मरम्मत का काम तो लगभग खत्म हो गया है। घर में रखे टीवी से ज्यादा कीमत के लोग मोबाइल इसलिए खरीदते हैं कि यह फैशन बन गया है। दुकान जब नहीं चल रही थी तो मित्र ने टीवी रिपेयरिंग की दुकान को रेडीमेड कपड़ों की दुकान में तब्दील कर दिया। कपड़ों के शोरूम में चाहे कपडों की क्वालिटी जैसी भी हो, लेकिन दुकान की सजावट का पूरा ख्याल रखा गया। इससे दूर से ही लोग दुकान की तरफ आकर्षित होने लगे। यही तो है फैशन शो। नेताजी के पिताजी ने पूरी उम्र राजनीति की। बेटे ने राजनीति की बजाय वकालत की। फिर फैशन के तौर पर वकील बेटा पिता के पदचिह्न पर चला और नेतागिरी करने लगा। उत्तराखंड में राजनीति की। कमाल का आनंद मिला इस राजनीति में। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और बड़े पदों में काबिज हो गए। नेताजी को जब मलाई मिली तो उनके बेटे भी जनता के दुखदर्द का बीड़ा उठाने के लिए राजनीति के मैदान में उतर गए। माह में एक लाख रुपये से अधिक की सेलरी की नौकरियां छोड़ दी। अब उनसे कौन पूछे कि बगैर नौकरी के कैसे गुजारा चल रहा है। कहां से उनकी अंटी में पैसा आ रहा है। बेटों को भी आगे बढ़ने के लिए फैशन शो का ही सहारा लेना पड़ रहा है। एक बेटा तो बड़ा चुनाव हार गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। कूदे पड़ें हैं राजनीति के फैशन शो में कि कभी कोई न कोई शो हिट जरूर होगा। वैसे कमाई की चिंता नहीं है। बड़े-बड़े बिल्डरों को लाभ पहुंचाने में बेटों का सीधे हाथ रहता है। बड़ी योजनाओं का काम सीधा ऐसे बिल्डरों को उनके माध्यम से ही जा रहा है।
हर क्षेत्र में फैशन शो के बगैर काम चलना अब मुश्किल है। लेखक यदि किताब लिखता है तो उसका बाहरी आवरण यदि बेहतर नहीं होगा तो शायद कोई किताब को देखेगा ही नहीं। समाचार पत्रों की खबर की हेडिंग ही उसका आकर्षण है। एक नेता को अपनी लच्छेदार भाषा व पहनावे पर ध्यान देना पड़ता है। दुकान जितनी सजी होती, ग्राहक भी उतना आकर्षित होगा। क्लीनिक में डाक्टर को अपनी डिग्रियों की प्रति सजाने के साथ ही अपनी अन्य योग्यताओं के प्रमाण सजाने पड़ रहे हैं। गजब की प्रतिस्पर्धा है इस फैशन शो में। सभी आगे बढ़ने के लिए दूसरे की टांग खिंचने में लगे रहते हैं। ऐसे में जो हिट हुआ वहीं सफल मॉडल है।
भानु बंगवाल
शीशे के सामने कोई यदि खुद को निहारता है, तो शायद उसे यही भ्रम होता है कि वह काफी खूबसूरत है। अपने भ्रम को और पुख्ता करने के लिए वह अपने रंग-रूप, पहनावे, खानपान आदि में भी ध्यान देने लगता है। भीतर से यानी स्वभाव से चाहे वह कितना कुरूप हो, लेकिन बाहर से सबसे सुंदर दिखने का प्रयत्न करता है। अब तो व्यक्ति शीशे से निकलकर कंप्यूटर, मोबाइल के जरिये इंटरनेट की दुनियां में आ गया है। फैशन शो के जरिये वह भी खुद को साबित करने की जुगत में लगा है। बच्चें हों या फिर जवान, युवक, युवती हों या फिर बूढे़। सभी इस फैशन शो का अंग बन रहे हैं।
वैसे हर कदम-कदम पर फैशन की जरूरत पड़ने लगी है। मित्र की रेडियो व टेलीविजन मरम्मत की एक दुकान थी। अब टीवी ज्यादा खराब होते नहीं हैं और रेडियो खराब होने पर लोग नया खरीद लेते हैं। मरम्मत का काम तो लगभग खत्म हो गया है। घर में रखे टीवी से ज्यादा कीमत के लोग मोबाइल इसलिए खरीदते हैं कि यह फैशन बन गया है। दुकान जब नहीं चल रही थी तो मित्र ने टीवी रिपेयरिंग की दुकान को रेडीमेड कपड़ों की दुकान में तब्दील कर दिया। कपड़ों के शोरूम में चाहे कपडों की क्वालिटी जैसी भी हो, लेकिन दुकान की सजावट का पूरा ख्याल रखा गया। इससे दूर से ही लोग दुकान की तरफ आकर्षित होने लगे। यही तो है फैशन शो। नेताजी के पिताजी ने पूरी उम्र राजनीति की। बेटे ने राजनीति की बजाय वकालत की। फिर फैशन के तौर पर वकील बेटा पिता के पदचिह्न पर चला और नेतागिरी करने लगा। उत्तराखंड में राजनीति की। कमाल का आनंद मिला इस राजनीति में। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और बड़े पदों में काबिज हो गए। नेताजी को जब मलाई मिली तो उनके बेटे भी जनता के दुखदर्द का बीड़ा उठाने के लिए राजनीति के मैदान में उतर गए। माह में एक लाख रुपये से अधिक की सेलरी की नौकरियां छोड़ दी। अब उनसे कौन पूछे कि बगैर नौकरी के कैसे गुजारा चल रहा है। कहां से उनकी अंटी में पैसा आ रहा है। बेटों को भी आगे बढ़ने के लिए फैशन शो का ही सहारा लेना पड़ रहा है। एक बेटा तो बड़ा चुनाव हार गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। कूदे पड़ें हैं राजनीति के फैशन शो में कि कभी कोई न कोई शो हिट जरूर होगा। वैसे कमाई की चिंता नहीं है। बड़े-बड़े बिल्डरों को लाभ पहुंचाने में बेटों का सीधे हाथ रहता है। बड़ी योजनाओं का काम सीधा ऐसे बिल्डरों को उनके माध्यम से ही जा रहा है।
हर क्षेत्र में फैशन शो के बगैर काम चलना अब मुश्किल है। लेखक यदि किताब लिखता है तो उसका बाहरी आवरण यदि बेहतर नहीं होगा तो शायद कोई किताब को देखेगा ही नहीं। समाचार पत्रों की खबर की हेडिंग ही उसका आकर्षण है। एक नेता को अपनी लच्छेदार भाषा व पहनावे पर ध्यान देना पड़ता है। दुकान जितनी सजी होती, ग्राहक भी उतना आकर्षित होगा। क्लीनिक में डाक्टर को अपनी डिग्रियों की प्रति सजाने के साथ ही अपनी अन्य योग्यताओं के प्रमाण सजाने पड़ रहे हैं। गजब की प्रतिस्पर्धा है इस फैशन शो में। सभी आगे बढ़ने के लिए दूसरे की टांग खिंचने में लगे रहते हैं। ऐसे में जो हिट हुआ वहीं सफल मॉडल है।
भानु बंगवाल
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