इस रंग बदलती दुनियां में जिस आदमी का रंग सबसे ज्यादा बार-बार बदलता रहता है। वह नेता होता है। नेता ही ऐसी कौम है, जिसे सत्ता पर रहने पर भी काम है और विपक्ष में रहने के दौरान भी। हां फर्क बस इतना है कि सत्ता में रहने के दौरान वह सरकार का गुणगान करता है, वहीं, विपक्ष में रहने के दौरान वह सरकारी की खिंचाई करता है। नेताजी के साथ ही उनके चेले भी इसी काम में जुटे रहते हैं। वैसे चेलों का भी कोई दीन ईमान नहीं रह गया। वे भी समय और मौके की नजाकत देखकर रंग बदलते रहते हैं। उनके रंग बदलने के साथ ही नेता भी बदल जाते हैं। आज इसका दामन थामा है तो कल मौका देखकर दूसरे का थामने में वे तनिक गुरेज तक नहीं करते हैं। नेताजी सत्ता में अच्छे पद पर बैठे तो चेले भी रोजगार में जुट जाते हैं। किसी न किसी बहाने उनका रोजगार चल पड़ता है। पहले वे अपना भला करते हैं, फिर वे अपनी पहचान वालों का नंबर लगाते हैं। यही परंपरा तो हर राज्य में चल रही है। इससे उत्तराखंड भी अछूता नहीं है।
उत्तराखंड में बार-बार मुख्यमंत्री बदलने को भले ही कोई राज्य के विकास में रोड़ा अटकना बताए, लेकिन इस परिपाटी ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम से जोड़ दिया है। जो खाली बैठकर एक-दूसरे को कोसते रहते थे, वे अब व्यस्त हो गए हैं। यानी उन्हें रोजगार मिल गया है। कुछ करने का मौका, अपनी जेब भरने का मौका, या फिर दूसरों का भी कुछ न कुछ भला करने का मौका। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है। पहले भाजपा के कार्यकाल में भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने तो उनसे जुड़े कार्यकर्ता बिजी हो गए। फिर निशंक मुख्यमंत्री बने तो उनके गुट के कार्यकर्ताओं को भी किसी न किसी काम के बहाने रोजगार मिला। कई कार्यकर्ता तो बड़े-बड़े कामों के ठेकेदार बन गए। वहीं, खंडूड़ी से जुड़े कार्यकर्ता उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके कामों को पूरा कराने में व्यस्त रहे। इस तरह भाजपा के दोनों गुटों को काम मिलता रहा। कांग्रेस की सरकार बनी तो बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने से उनसे जुड़े कार्यकर्ता व्यस्त रहने लगे। कई की ठेकेदारी चल पड़ी। फिर हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने पर उनसे जुड़े युवा भी अब रोजगार की तलाश में जुट गए। जो कार्यकर्ता निठल्ले बैठे थे, वे अब तड़के घर से निकल रहे हैं। उनके फोन बिजी जा रहे हैं। सीएम के कार्यक्रमों में अक्सर वे नजर आ रहे हैं। अब किसी को कोसने के लिए उनके पास वक्त नहीं है। पांच साल की सरकार में बार-बार मुख्यमंत्री बदलेंगे तो हर गुट के कार्यकर्ताओं को फायदा मिलेगा। फायदा क्यों न मिले। हजारों घोषणाएं हो रही हैं। इन घोषणाओं के शिलान्यास हो रहे हैं। इसे पूरा करने के लिए कार्यकर्ता ही आगे आएंगे। बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से हर गुट के कार्यकर्ता को ठेकेदार बनने का मौका मिल रहा है। बिजनेस बनती जा रही राजनीति यहां कार्यकर्ताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। वहीं निवर्तमान सीएम के कार्यकाल की घोषणाओं को पूरा करने के लिए उनसे जुड़े कार्यकर्ता भी जुटे रहेंगे। इसका कुछ तो असर राज्य के आधारभूत ढांचे के विकास कार्यों पर जरूर पड़ेगा और कुछ कार्यकर्ताओं की जेब पर भी। वहीं, नेताओं के बिजी रहने से शहर, गांव, मोहल्लों व कस्बों में अमन चैन भी रहेगा। क्योंकि नेता यदि खाली हो तो यह शुभ नहीं होता। नेता के बिजी रहने में ही सबकी भलाई है। यानी, हम भी खुश, तुम भी खुश और सारा जग खुश।
भानु बंगवाल
उत्तराखंड में बार-बार मुख्यमंत्री बदलने को भले ही कोई राज्य के विकास में रोड़ा अटकना बताए, लेकिन इस परिपाटी ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम से जोड़ दिया है। जो खाली बैठकर एक-दूसरे को कोसते रहते थे, वे अब व्यस्त हो गए हैं। यानी उन्हें रोजगार मिल गया है। कुछ करने का मौका, अपनी जेब भरने का मौका, या फिर दूसरों का भी कुछ न कुछ भला करने का मौका। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है। पहले भाजपा के कार्यकाल में भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने तो उनसे जुड़े कार्यकर्ता बिजी हो गए। फिर निशंक मुख्यमंत्री बने तो उनके गुट के कार्यकर्ताओं को भी किसी न किसी काम के बहाने रोजगार मिला। कई कार्यकर्ता तो बड़े-बड़े कामों के ठेकेदार बन गए। वहीं, खंडूड़ी से जुड़े कार्यकर्ता उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके कामों को पूरा कराने में व्यस्त रहे। इस तरह भाजपा के दोनों गुटों को काम मिलता रहा। कांग्रेस की सरकार बनी तो बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने से उनसे जुड़े कार्यकर्ता व्यस्त रहने लगे। कई की ठेकेदारी चल पड़ी। फिर हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने पर उनसे जुड़े युवा भी अब रोजगार की तलाश में जुट गए। जो कार्यकर्ता निठल्ले बैठे थे, वे अब तड़के घर से निकल रहे हैं। उनके फोन बिजी जा रहे हैं। सीएम के कार्यक्रमों में अक्सर वे नजर आ रहे हैं। अब किसी को कोसने के लिए उनके पास वक्त नहीं है। पांच साल की सरकार में बार-बार मुख्यमंत्री बदलेंगे तो हर गुट के कार्यकर्ताओं को फायदा मिलेगा। फायदा क्यों न मिले। हजारों घोषणाएं हो रही हैं। इन घोषणाओं के शिलान्यास हो रहे हैं। इसे पूरा करने के लिए कार्यकर्ता ही आगे आएंगे। बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से हर गुट के कार्यकर्ता को ठेकेदार बनने का मौका मिल रहा है। बिजनेस बनती जा रही राजनीति यहां कार्यकर्ताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। वहीं निवर्तमान सीएम के कार्यकाल की घोषणाओं को पूरा करने के लिए उनसे जुड़े कार्यकर्ता भी जुटे रहेंगे। इसका कुछ तो असर राज्य के आधारभूत ढांचे के विकास कार्यों पर जरूर पड़ेगा और कुछ कार्यकर्ताओं की जेब पर भी। वहीं, नेताओं के बिजी रहने से शहर, गांव, मोहल्लों व कस्बों में अमन चैन भी रहेगा। क्योंकि नेता यदि खाली हो तो यह शुभ नहीं होता। नेता के बिजी रहने में ही सबकी भलाई है। यानी, हम भी खुश, तुम भी खुश और सारा जग खुश।
भानु बंगवाल
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