खुर्जा के कुंवर साहब....
वर्ष 2004 में मुझे नौकरी के दौरान देहरादून से ऋषिकेश में कुछ दिन के लिए भेजा गया। कारण यह था कि जिस समाचार पत्र में मैं कार्यरत था, उसमें ऋषिकेश में तैनात प्रतिनिधि के पिताजी बीमार थे। चंडीगढ़ में उनका इलाज चल रहा था। इस पर प्रतिनिध चंडीगढ़ गया हुआ था और उसके बदले मुझे व्यवस्था के तौर पर वहां भेजा गया। सहयोगी के पिताजी कई दिन तक बीमार रहने के बाद इस दुनियां से चल बसे। इसके बाद सहयोगी नियमित ड्यूटी करने लगे,लेकिन मुझे वापस देहरादून नहीं भेजा गया। इस तरह मुझे करीब डेढ़ साल से अधिक का समय ऋषिकेश रहते हुए हो गया। एक दिन मैने विचार किया कि कितने दिन होटल में खाना खाऊंगा। चाय नाश्ता तो कमरे में ही बना सकता हूं। उन दिनों उत्तराखंड आंदोलन चल रहा था। बार-बार आंदोलनकारी संगठन बंद की कॉल करते। ऐसे में होटल भी बंद हो जाते थे और मुझे या तो भूखा रहना पड़ता, या फिर मित्रों की कृपादृष्टि का पात्र बनना पड़ता। एक दिन मैं देहरादून घर आया तो स्टोव व कुछ बर्तन साथ ले गया कि कभी-कभार खाना भी बना लिया करूंगा। मैं जिस दिन रसोई का सामान लेकर ऋषिकेश पहुंचा, उसी दिन आफिस पहुंचने पर मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे खुर्जा भेजा जा रहा है। यूपी में स्थानीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं। इसी की कवरेज के लिए मुझे खुर्जा जाना पड़ेगा। इससे पहले मुझे आवश्यक दिशा निर्देशन के लिए समाचार पत्र के मुख्यालय मेरठ जाना था। यह घटना नवंबर 1995 की है।
सच तो यह है कि उसी दिन मुझे यह ज्ञात हुआ कि खुर्जा बुलंदशहर जिले का एक शहर है। मेरठ जाते समय मैं रास्ते भर खुर्जा के बारे में कल्पना ही कर रहा था। रास्ते में प्लानिंग बना रहा था कि किसी होटल में ठहरूंगा। दिन भर शहर भर में घूमा करंगा और शाम को अखबार के दफ्तर में बैठकर समाचार लिखूंगा और फैक्स से भेजूंगा। तब कंप्यूटर तो थे, लेकिन समाचार पत्रों के जिला मुख्यालयों में ही होते थे। मेरठ में मुझे अखबार के दफ्तर से पता चला कि खुर्जा में पहले से ही समाचार पत्र का प्रतिनिधि तैनात है। उसे किसी दूसरे शहर से भेजा गया था। खुर्जा में वह बीमार रहने लगा था। कई दिनों से वह ड्यूटी से भी गायब है। उसकी इच्छा शायद उस शहर में रहने की नहीं है। ऐसे में मुझे वहां भेजकर फंसाया जा रहा था। मैं मन से इस अनजाने शहर में कुछ दिन रहने को तैयार था, लेकिन वहां अपनी कर्मभूमि बनाने को हर्जिग तैयार नहीं था। मुझे समाचार पत्र के मालिक ने अच्छा-बुरा समझाया। यह बताया कि आस-पास के शहरों में जब मैं जाऊं तो वहां कौन-कौन से स्थानीय पत्रकारों की मदद समाचार संकलन के दौरान ले सकता हूं। मुझे बताया गया कि खुर्जा जाने से पहले मैं बुलंदशहर जाऊं और वहां जिला संवाददाता से मिल लूं। आगे की रणनीति वही समझा देंगे।
रात करीब एक बजे समाचार पत्रों के बंडल लेकर खुर्जा को अखबार की गाड़ी रवाना हुई तो मुझे भी उसमें बैठा दिया गया। सुबह करीब चार बजे अखबार की गाड़ी ने मुझे जिला संवाददाता के घर के सामने उतार दिया। चालक ने बताया कि सीढ़ी चढ़कर घंटी बजा देना। मैने घंटी बजाई तो मुझसे करीब पंद्रह साल ज्यादा की उम्र के एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला। मैने उन्हें अपना परिचय दिया। इस पर वह मुझे घर के भीतर ले गए। उन्हें शायद मेरे आने की सूचना पहले से थी। इस भले व्यक्ति ने मेरे लिए बिस्तर बिछाया और सोने के लिए कहा। बाकी बात सुबह होगी यह कहकर उन्होंने मुझे सोने को कहा। मैं बिस्तर पर लेटा, लेकिन मुझे नींद नहीं आई। भविष्य के प्रति तरह-तरह के ख्याल मेरे मन में आने लगे। मैं काफी डरा हुआ था। सुबह उक्त व्यक्ति ने मेरे नहाने को पानी गरम किया। फिर मुझे नाश्ता कराया और मुझे खुर्जा जाने वाली बस में बैठाने के लिए स्कूटर से बस स्टैंड को ले गए।
खुर्जा की बस के पास ही जिला संवाददाता को एक व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति से उन्होंने पहले हाथ मिलाया। फिर दोनों में किसी बात को लेकर बहस होने लगी। फिर उन्होंने मेरा उससे परिचय कराया और बताया कि उक्त व्यक्ति खुर्जा ही रहता है। वह भी खुर्जा जा रहा है। आप इसी के साथ खुर्जा चले जाना। यह मुझे समाचार पत्र के दफ्तर भी पहुंचा देगा।
साधारण से कपड़े। कमीज की आस्तीन व कालर के कोने फटे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े। एक स्वैटर पहने हुए इस व्यक्ति का परिचय कुंवर साहब के रूप में कराया गया था। कुंवर साहब की आवाज काफी कड़क थी। मैने उन्हें अपना परिचय भानु बंगवाल के रूप में दिया, लेकिन जितने दिन भी वह मुझे मिले, कभी भी मुझे बंगवाल नहीं कह पाए। कभी वह डंगवार कहते तो कभी गंगवार। रास्ते में बातचीत करने पर पता चला कि कुंवर साहब को भी लिखने-पढ़ने का शौक है। जिस दिन से खुर्जा प्रतिनिधि गायब हुआ, उस दिन से वही समाचार पत्र मुख्यालय में समाचार भेज रहे हैं। पंचायत चुनाव का प्रचार शुरू हो गया, ऐसे में वह अकेले चुनाव कवरेज नहीं कर सकते। वह सीधे घटनाक्रम के समाचार ही बना सकते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि जिला संवाददाता उनसे नाराज क्यों है। हुआ यह था कि दुष्कर्म के मामले के आरोपी की जमानत अर्जी जिला जज ने खारिज कर दी थी। फिर उनसे कमरे में अरोपी के वकील वार्ता करते हैं। इसके बाद जिला जज आरोपी के परिजनों व आरोपी को दोबारा बुलवाते हैं, फिर जमानत दे देते हैं। इस मामले को कुंवर साहब ने समाचार बनाकर भेज दिया। यह समाचार प्रकाशित होने पर हंगामा मच गया। जिला संवाददाता वकील भी थे। उन्हें जिला जज ने अपने केबिन में बुलाकर काफी हड़काया। फिर समाचार पत्र को खंडन छापना पड़ा। कुंवर साहब अपनी पर उतर आए। मुझसे कहने लगे कि उनके पास प्रमाण हैं कि इस मामले में अदालत दोबारा बैठी। क्योंकि कोर्ट के मोहर्रिर को जब जज साहब ने आरोपियों को बुलाने को भेजा, तो मोहर्रिर ने इसे अपनी जीडी (रोजनामचे) में इसे दर्ज कर लिया। उसने जीडी में लिखा था कि जब साहब के कहने पर वह आरोपी को बुलाने अपनी सीट छोड़कर गया था। कुंवर साहब का कहना था कि पत्रकार अदालतों के समाचार प्रकाशित करने से डरते हैं, लेकिन उनके समाचार में सच्चाई है। भले ही इस मामले में खंडन प्रकाशित कर दिया गया है, लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट तक शिकायत करेंगे। वह जेल जाने से भी नहीं डरते हैं। उस समय मैंने भी कुंवर साहब को समझाया कि अदालत के मामलों में टिप्पणी नहीं चलती है। ऐसे मामलों में सतर्कता बरती जानी चाहिए। पर वह अड़े रहे कि इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ। तभी तो ऐसे मामले में सीधे जमानत दे दी गई। कुंवर साहब अपनी जगह सही थे। मुझे इसका ज्ञान तब हुआ, जब मैं खुर्जा से देहरादून लौट आया था।
कुंवर साहब ने बस में ही मेरा परिचय लिया। फिर मुझे समाचार पत्र के दफ्तर पहुंचा दिया। साथ ही वह भी मेरे साथ ही जमे रहे। मैने उनसे कहा कि किसी होटल में कमरा दिलवा दो। इस पर उन्होंने कहा कि यहां होटल ही नहीं है। कुंवर साहब ने यह सच कहा या झूठ, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैं अनजान शहर में उनकी कृपा दृष्टि के सहारे थे। उन्होंने कहा कि मेरे घर रहो। मैने उन्हें समझाया कि मुझे खाने व रहने का ऑफिस से पैसा मिल जाएगा। आप सिर्फ व्यवस्था करा दो। इस पर उन्होंने कहा कि कल व्यवस्था करूंगा। आज फिलहाल आप मेरे घर रहना। मात्र एक दिन के परिचय के बावजूद वह एक अनजान से मोहल्ले में मुझे अपने घर ले गए। वहीं मुझे भोजन कराया और सोने को बिस्तर दिया। मैं रात भर यही सोचता रहा कि करीब तीन साल पहले जो शहर सांप्रदायिक दंगे में झुलसा हो, जहां दंगे की आग बड़ी मुश्किल से ठंडी हुई हो, उस शहर में सांप्रदायिक सदभाव आज भी कायम है। कुंवर साहब के घर में छोटे, बड़े व बूढ़ों ने मेरे से ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं उनसे पहले से परिचित हूं।
उस समय खुर्जा शहर में मुझे हर तरफ गंदगी ही गंदगी ही नजर आई। सड़कों के नाम पर गड्ढे व साफ सफाई के नाम पर जगह-जगह दुर्गंध भरे नाले व सड़क किनारे कूड़े के ढेर नजर आए। राह चलते कहीं-कहीं सड़क पर कीचड़ से भी दो चार होना पड़ रहा था। खैर कुंवर साहब ने मुझे तीन सौ रुपये महिने में किराए में एक कमरा दिला दिया। एक फोल्डिंग पलंग व रजाई-गद्दा वह खुद अपने घर से लेकर आ गए और मुझे रहने का अस्थाई ठिकाना मिल गया। हर दिन सुबह कुंवर साहब मेरे पास चले आते। उन्हें साथ लेकर मैं खुर्जा के हर वार्ड में घूमता, आसपास के कस्बे, छतारी, रब्बूपुरा, पहासु आदि का भी मैने भ्रमण किया। खाना होटल में ही खाया। सामाचार लिखने के बाद जब समय बचता तो सिनेमा हॉल जाकर मैने पिक्चर भी देखी। दोपहर के वक्त पिक्चर हॉल का नजारा मुझे कुछ अपने शहर से अलग ही नजर आया। हॉल के भीतर कितने दर्शक थे, इसका मुझे बाहर से क्या पता लगता, लेकिन सिनेमा हॉल के बाहर श्रोताओं की भीड़ जमी रहती। तब हॉल की छत पर लाउडस्पीकर लगाए जाते थे और पिक्चर के सारे डायलॉग व गाने बाहर सड़क पर खड़ा व्यक्ति सुन लेता था। रिक्शेवाले, तांगेवाले खाली समय पर सिनेमा हॉल के बाहर जमे रहते और बाहर से ही डायलॉग सुनते। कई बार तो ताली व सिटी की आवाज भी होने लगती। यानी बाहर बैठे ही पिक्चर के क्लाइमैक्स का पूरा मजा।
होटलों की गंदगी को देख मुझे वहां खाना खाने में दिक्कत होने लगी। मैं पहले से ही कमजोर कदकाठी का था, वहां और सूखने लगा। किसी तरह मैने 15 दिन खुर्जा में बिता दिए। इस बीच खुर्जा प्रतिनिधि भी लौट आया। इस पर मैने अपने समाचार पत्र मुख्यालय में संपर्क कर वापस जाने की इजाजत मांगी, लेकिन वहां तो शायद कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। मुझे खुर्जा में रहने के लिए तैयार किया जा रहा था। एक दिन सभी समाचार पत्रों में पहले पेज पर समाचार प्रकाशित हुआ कि स्थानीय निकायों के चुनाव टल गए। अगली तारिख बाद में घोषित होगी। इस पर मैंने कुंवर साहब व खुर्जा प्रतिनिधि से विदा ली और मेरठ रवाना हो गया। वहां से मुझे कुछ दिन देहरादून भेजा गया फिर सहारनपुर। देहरादून आकर ही पता चला कि कुंवर साहब ने जिला जज की सुप्रीम कोर्ट में जो शिकायत की थी, उसका असर हो गया। क्योंकि सभी समाचार पत्रों में पहले पेज पर बुलंदशहर के जिला जज के निलंबन का समाचार प्रकाशित हुआ था। जिला जज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। आज इस घटना के करीब सत्रह साल से अधिक का समय हो गया है, लेकिन मैं कुंवर साहब जैसे व्यक्तित्व की सादगी, मेहमाननवाजी, स्पष्टवादिता को कभी नहीं भुला सकता।
भानु बंगवाल
वर्ष 2004 में मुझे नौकरी के दौरान देहरादून से ऋषिकेश में कुछ दिन के लिए भेजा गया। कारण यह था कि जिस समाचार पत्र में मैं कार्यरत था, उसमें ऋषिकेश में तैनात प्रतिनिधि के पिताजी बीमार थे। चंडीगढ़ में उनका इलाज चल रहा था। इस पर प्रतिनिध चंडीगढ़ गया हुआ था और उसके बदले मुझे व्यवस्था के तौर पर वहां भेजा गया। सहयोगी के पिताजी कई दिन तक बीमार रहने के बाद इस दुनियां से चल बसे। इसके बाद सहयोगी नियमित ड्यूटी करने लगे,लेकिन मुझे वापस देहरादून नहीं भेजा गया। इस तरह मुझे करीब डेढ़ साल से अधिक का समय ऋषिकेश रहते हुए हो गया। एक दिन मैने विचार किया कि कितने दिन होटल में खाना खाऊंगा। चाय नाश्ता तो कमरे में ही बना सकता हूं। उन दिनों उत्तराखंड आंदोलन चल रहा था। बार-बार आंदोलनकारी संगठन बंद की कॉल करते। ऐसे में होटल भी बंद हो जाते थे और मुझे या तो भूखा रहना पड़ता, या फिर मित्रों की कृपादृष्टि का पात्र बनना पड़ता। एक दिन मैं देहरादून घर आया तो स्टोव व कुछ बर्तन साथ ले गया कि कभी-कभार खाना भी बना लिया करूंगा। मैं जिस दिन रसोई का सामान लेकर ऋषिकेश पहुंचा, उसी दिन आफिस पहुंचने पर मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे खुर्जा भेजा जा रहा है। यूपी में स्थानीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं। इसी की कवरेज के लिए मुझे खुर्जा जाना पड़ेगा। इससे पहले मुझे आवश्यक दिशा निर्देशन के लिए समाचार पत्र के मुख्यालय मेरठ जाना था। यह घटना नवंबर 1995 की है।
सच तो यह है कि उसी दिन मुझे यह ज्ञात हुआ कि खुर्जा बुलंदशहर जिले का एक शहर है। मेरठ जाते समय मैं रास्ते भर खुर्जा के बारे में कल्पना ही कर रहा था। रास्ते में प्लानिंग बना रहा था कि किसी होटल में ठहरूंगा। दिन भर शहर भर में घूमा करंगा और शाम को अखबार के दफ्तर में बैठकर समाचार लिखूंगा और फैक्स से भेजूंगा। तब कंप्यूटर तो थे, लेकिन समाचार पत्रों के जिला मुख्यालयों में ही होते थे। मेरठ में मुझे अखबार के दफ्तर से पता चला कि खुर्जा में पहले से ही समाचार पत्र का प्रतिनिधि तैनात है। उसे किसी दूसरे शहर से भेजा गया था। खुर्जा में वह बीमार रहने लगा था। कई दिनों से वह ड्यूटी से भी गायब है। उसकी इच्छा शायद उस शहर में रहने की नहीं है। ऐसे में मुझे वहां भेजकर फंसाया जा रहा था। मैं मन से इस अनजाने शहर में कुछ दिन रहने को तैयार था, लेकिन वहां अपनी कर्मभूमि बनाने को हर्जिग तैयार नहीं था। मुझे समाचार पत्र के मालिक ने अच्छा-बुरा समझाया। यह बताया कि आस-पास के शहरों में जब मैं जाऊं तो वहां कौन-कौन से स्थानीय पत्रकारों की मदद समाचार संकलन के दौरान ले सकता हूं। मुझे बताया गया कि खुर्जा जाने से पहले मैं बुलंदशहर जाऊं और वहां जिला संवाददाता से मिल लूं। आगे की रणनीति वही समझा देंगे।
रात करीब एक बजे समाचार पत्रों के बंडल लेकर खुर्जा को अखबार की गाड़ी रवाना हुई तो मुझे भी उसमें बैठा दिया गया। सुबह करीब चार बजे अखबार की गाड़ी ने मुझे जिला संवाददाता के घर के सामने उतार दिया। चालक ने बताया कि सीढ़ी चढ़कर घंटी बजा देना। मैने घंटी बजाई तो मुझसे करीब पंद्रह साल ज्यादा की उम्र के एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला। मैने उन्हें अपना परिचय दिया। इस पर वह मुझे घर के भीतर ले गए। उन्हें शायद मेरे आने की सूचना पहले से थी। इस भले व्यक्ति ने मेरे लिए बिस्तर बिछाया और सोने के लिए कहा। बाकी बात सुबह होगी यह कहकर उन्होंने मुझे सोने को कहा। मैं बिस्तर पर लेटा, लेकिन मुझे नींद नहीं आई। भविष्य के प्रति तरह-तरह के ख्याल मेरे मन में आने लगे। मैं काफी डरा हुआ था। सुबह उक्त व्यक्ति ने मेरे नहाने को पानी गरम किया। फिर मुझे नाश्ता कराया और मुझे खुर्जा जाने वाली बस में बैठाने के लिए स्कूटर से बस स्टैंड को ले गए।
खुर्जा की बस के पास ही जिला संवाददाता को एक व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति से उन्होंने पहले हाथ मिलाया। फिर दोनों में किसी बात को लेकर बहस होने लगी। फिर उन्होंने मेरा उससे परिचय कराया और बताया कि उक्त व्यक्ति खुर्जा ही रहता है। वह भी खुर्जा जा रहा है। आप इसी के साथ खुर्जा चले जाना। यह मुझे समाचार पत्र के दफ्तर भी पहुंचा देगा।
साधारण से कपड़े। कमीज की आस्तीन व कालर के कोने फटे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े। एक स्वैटर पहने हुए इस व्यक्ति का परिचय कुंवर साहब के रूप में कराया गया था। कुंवर साहब की आवाज काफी कड़क थी। मैने उन्हें अपना परिचय भानु बंगवाल के रूप में दिया, लेकिन जितने दिन भी वह मुझे मिले, कभी भी मुझे बंगवाल नहीं कह पाए। कभी वह डंगवार कहते तो कभी गंगवार। रास्ते में बातचीत करने पर पता चला कि कुंवर साहब को भी लिखने-पढ़ने का शौक है। जिस दिन से खुर्जा प्रतिनिधि गायब हुआ, उस दिन से वही समाचार पत्र मुख्यालय में समाचार भेज रहे हैं। पंचायत चुनाव का प्रचार शुरू हो गया, ऐसे में वह अकेले चुनाव कवरेज नहीं कर सकते। वह सीधे घटनाक्रम के समाचार ही बना सकते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि जिला संवाददाता उनसे नाराज क्यों है। हुआ यह था कि दुष्कर्म के मामले के आरोपी की जमानत अर्जी जिला जज ने खारिज कर दी थी। फिर उनसे कमरे में अरोपी के वकील वार्ता करते हैं। इसके बाद जिला जज आरोपी के परिजनों व आरोपी को दोबारा बुलवाते हैं, फिर जमानत दे देते हैं। इस मामले को कुंवर साहब ने समाचार बनाकर भेज दिया। यह समाचार प्रकाशित होने पर हंगामा मच गया। जिला संवाददाता वकील भी थे। उन्हें जिला जज ने अपने केबिन में बुलाकर काफी हड़काया। फिर समाचार पत्र को खंडन छापना पड़ा। कुंवर साहब अपनी पर उतर आए। मुझसे कहने लगे कि उनके पास प्रमाण हैं कि इस मामले में अदालत दोबारा बैठी। क्योंकि कोर्ट के मोहर्रिर को जब जज साहब ने आरोपियों को बुलाने को भेजा, तो मोहर्रिर ने इसे अपनी जीडी (रोजनामचे) में इसे दर्ज कर लिया। उसने जीडी में लिखा था कि जब साहब के कहने पर वह आरोपी को बुलाने अपनी सीट छोड़कर गया था। कुंवर साहब का कहना था कि पत्रकार अदालतों के समाचार प्रकाशित करने से डरते हैं, लेकिन उनके समाचार में सच्चाई है। भले ही इस मामले में खंडन प्रकाशित कर दिया गया है, लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट तक शिकायत करेंगे। वह जेल जाने से भी नहीं डरते हैं। उस समय मैंने भी कुंवर साहब को समझाया कि अदालत के मामलों में टिप्पणी नहीं चलती है। ऐसे मामलों में सतर्कता बरती जानी चाहिए। पर वह अड़े रहे कि इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ। तभी तो ऐसे मामले में सीधे जमानत दे दी गई। कुंवर साहब अपनी जगह सही थे। मुझे इसका ज्ञान तब हुआ, जब मैं खुर्जा से देहरादून लौट आया था।
कुंवर साहब ने बस में ही मेरा परिचय लिया। फिर मुझे समाचार पत्र के दफ्तर पहुंचा दिया। साथ ही वह भी मेरे साथ ही जमे रहे। मैने उनसे कहा कि किसी होटल में कमरा दिलवा दो। इस पर उन्होंने कहा कि यहां होटल ही नहीं है। कुंवर साहब ने यह सच कहा या झूठ, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैं अनजान शहर में उनकी कृपा दृष्टि के सहारे थे। उन्होंने कहा कि मेरे घर रहो। मैने उन्हें समझाया कि मुझे खाने व रहने का ऑफिस से पैसा मिल जाएगा। आप सिर्फ व्यवस्था करा दो। इस पर उन्होंने कहा कि कल व्यवस्था करूंगा। आज फिलहाल आप मेरे घर रहना। मात्र एक दिन के परिचय के बावजूद वह एक अनजान से मोहल्ले में मुझे अपने घर ले गए। वहीं मुझे भोजन कराया और सोने को बिस्तर दिया। मैं रात भर यही सोचता रहा कि करीब तीन साल पहले जो शहर सांप्रदायिक दंगे में झुलसा हो, जहां दंगे की आग बड़ी मुश्किल से ठंडी हुई हो, उस शहर में सांप्रदायिक सदभाव आज भी कायम है। कुंवर साहब के घर में छोटे, बड़े व बूढ़ों ने मेरे से ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं उनसे पहले से परिचित हूं।
उस समय खुर्जा शहर में मुझे हर तरफ गंदगी ही गंदगी ही नजर आई। सड़कों के नाम पर गड्ढे व साफ सफाई के नाम पर जगह-जगह दुर्गंध भरे नाले व सड़क किनारे कूड़े के ढेर नजर आए। राह चलते कहीं-कहीं सड़क पर कीचड़ से भी दो चार होना पड़ रहा था। खैर कुंवर साहब ने मुझे तीन सौ रुपये महिने में किराए में एक कमरा दिला दिया। एक फोल्डिंग पलंग व रजाई-गद्दा वह खुद अपने घर से लेकर आ गए और मुझे रहने का अस्थाई ठिकाना मिल गया। हर दिन सुबह कुंवर साहब मेरे पास चले आते। उन्हें साथ लेकर मैं खुर्जा के हर वार्ड में घूमता, आसपास के कस्बे, छतारी, रब्बूपुरा, पहासु आदि का भी मैने भ्रमण किया। खाना होटल में ही खाया। सामाचार लिखने के बाद जब समय बचता तो सिनेमा हॉल जाकर मैने पिक्चर भी देखी। दोपहर के वक्त पिक्चर हॉल का नजारा मुझे कुछ अपने शहर से अलग ही नजर आया। हॉल के भीतर कितने दर्शक थे, इसका मुझे बाहर से क्या पता लगता, लेकिन सिनेमा हॉल के बाहर श्रोताओं की भीड़ जमी रहती। तब हॉल की छत पर लाउडस्पीकर लगाए जाते थे और पिक्चर के सारे डायलॉग व गाने बाहर सड़क पर खड़ा व्यक्ति सुन लेता था। रिक्शेवाले, तांगेवाले खाली समय पर सिनेमा हॉल के बाहर जमे रहते और बाहर से ही डायलॉग सुनते। कई बार तो ताली व सिटी की आवाज भी होने लगती। यानी बाहर बैठे ही पिक्चर के क्लाइमैक्स का पूरा मजा।
होटलों की गंदगी को देख मुझे वहां खाना खाने में दिक्कत होने लगी। मैं पहले से ही कमजोर कदकाठी का था, वहां और सूखने लगा। किसी तरह मैने 15 दिन खुर्जा में बिता दिए। इस बीच खुर्जा प्रतिनिधि भी लौट आया। इस पर मैने अपने समाचार पत्र मुख्यालय में संपर्क कर वापस जाने की इजाजत मांगी, लेकिन वहां तो शायद कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। मुझे खुर्जा में रहने के लिए तैयार किया जा रहा था। एक दिन सभी समाचार पत्रों में पहले पेज पर समाचार प्रकाशित हुआ कि स्थानीय निकायों के चुनाव टल गए। अगली तारिख बाद में घोषित होगी। इस पर मैंने कुंवर साहब व खुर्जा प्रतिनिधि से विदा ली और मेरठ रवाना हो गया। वहां से मुझे कुछ दिन देहरादून भेजा गया फिर सहारनपुर। देहरादून आकर ही पता चला कि कुंवर साहब ने जिला जज की सुप्रीम कोर्ट में जो शिकायत की थी, उसका असर हो गया। क्योंकि सभी समाचार पत्रों में पहले पेज पर बुलंदशहर के जिला जज के निलंबन का समाचार प्रकाशित हुआ था। जिला जज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। आज इस घटना के करीब सत्रह साल से अधिक का समय हो गया है, लेकिन मैं कुंवर साहब जैसे व्यक्तित्व की सादगी, मेहमाननवाजी, स्पष्टवादिता को कभी नहीं भुला सकता।
भानु बंगवाल
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