जी हां, छोटी मछली भी मार सकती है बड़ी को......
हर सुबह एक्वेरियम के आगे जैसे ही मैं पहुंचता हूं, तो भोजन की चाहत में उसके भीतर इतराती मछलियां ऊछल-कूद मचाने लगती हैं। कितना आराम आता है, सुबह-सुबह मछलियों को निहारना। मन शांत रहता है। साथ ही हर दिन उन्हें देखने के बाद भी उत्सुकता कम नहीं होती। यही नहीं यदि आप हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हैं और तनावग्रस्त हैं, तो घर में एक्वेरियम लाकर मछलियां पाल सकते हैं। पानी में तैरती रंगीन मछलियों को कुछ देर निहारने से ये बीमारी नियंत्रित हो सकती है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण भी है। पानी में दिखाई देने वाली रंगीन मछलियों के चलने से निकलने वाली तरंग आंखों को आराम देती है। इससे व्यक्ति के नर्वस सिस्टम को काफी आराम पहुंचता है, लेकिन इस आराम को हासिल करने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। यदि जरा सी चूक हो जाए, तो आराम की बजाय आपको उलटा टेंशन हो सकती है। क्योंकि देखभाल में चूक होने से मछलियां बीमारी की चपेट में आने लगती हैं। यदि कोई मछली बीमार होती है, तो उस पर दूसरी हमला करने लगती है। कमजोर पर हमला करना हर प्राणी की फितरत है। वह यह नहीं सोचता कि इस हमले से उसे ही नुकसान पहुंचेगा। ऐसा ही मछलियों में भी होता है। बीमार व कमजोर को अन्य मछली नोंचने लगती हैं। ऐसे में वे भी बीमार होने लगती हैं और एक-एक कर सबकी मौत होने लगती है। ऐसे में जल की रानी को बचाने व स्वस्थ्य रखने के लिए उन पर हर समय नजर भी रखनी पड़ती है। यदि मछली स्वस्थ्य तो उसे पालने वाला भी खुश रहता है।
यूं तो हर व्यक्ति की अपनी रुचि होती है। वह रंगों व आकार व अपनी जेब के वजन के हिसाब से एक्वेरियम में मछली पालता है। मछली को पालने के लिए समय से भोजन, एक्वेरियम की सफाई, मछलियों को उसमें पर्याप्त आक्सीजन मिल रही है या नहीं, इन सभी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। बेजुवान प्राणी कोई परेशानी होने पर बता नहीं पाता। सिर्फ उनकी हरकत से ही हम उनके सुख-दुख का अहसास कर सकते हैं। जैसे सुबह जब मछलियों के भोजन का समय होता है तो जो व्यक्ति उन्हें नियमित रूप से दाना देता है, उसे देखते ही सभी मछलियां ठीक उसी तरह छटपटाने लगती है, जैसे कूत्ता या अन्य पालतू भोजन देख कर खुश होता है। यदि उनमें से कोई मछली शांत व चुपचाप बैठी हो, तो यही समझा जाता है कि उसे कोई परेशानी है।
करीब आठ साल से सुबह उठते ही सबसे पहले मैं एक्वेरियम में मछलियों को दाना देता हूं। इसके बाद मेरी दिनचर्या प्रारंभ होती है। इन आठ साल में मैने अनुभव किया कि मछलियों का स्वभाव भी अन्य प्राणी व मनुश्य की तरह की होता है। उन्हें मनुश्य के समान बीमारी होती है। साथ ही वे मनुश्य की तरह ही अलग-अलग स्वभाव वाली होती है। अब स्वभाव की बात देखिए नोटी प्रजाति की मात्र एक ईंच छोटी मछली गप्पी करीब 38 रंगों में अलग-अलग रंग की होती है। यह मछली काफी आक्रमक होती है और अपने से पांच से छह ईंच बड़ी मछली को भी मार कर खा जाती है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि छोटी मछली भी बड़ी को मार सकती है। वहीं गहरे नीले रंग की ब्लू लोच प्रजाति की मादा मछली काफी शर्मिली होती है। नर ही भोजन तलाश कर इसकी सूचना मादा को देते हैं। शर्मिली मछली अक्सर किसी आड़ में छिपी रहती है।
इसी तरह मछलियां यदि स्वभाव के विपरीत हरकत करती हैं, तो यह उनके बीमारी के लक्षण होते हैं। ताकतवर मछली के साथ रहने वाली कमजोर मछली या फिर आक्सीजन की कमी से मछलियां हाईटेंशन की शिकार हो जाती हैं। ऐसी मछलियों के फिन की नशों में खून चमकने लगता है। यह रोग समय से भोजन न मिलने, ज्यादा मात्रा में भोजन करने, पानी में घुलित आक्सीजन की कमी के चलते भी हो जाता है। ऐसी मछलियों को एक्वेरियम से बाहर दूसरे बर्तन में रखकर ही उनका इलाज किया जाता है। देसी नमक मिले पानी में कुछ दिन रखने से उनका रोग नियंत्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार फ्लू होने की स्थिति में मछलियों की चाल सुस्त पड़ जाती है। ऐसे में वह कुछ खाती भी नहीं और मुंह का रंग सफेद पड़ने लगता है। ऐसे में ब्लू मिथाइलिन दवा की बूंद पानी में डालकर इनका इलाज किया जाता है। साथ ही तापमान बढ़ाने के लिए या तो हीटर लगाया जाता है, या फिर गुनगुना पानी एक्वेरियम में लगाया जाता है। लीवर डेमेज होने पर मछलियों में ड्रॉप्सी बीमारी हो जाती है। इस बीमारी का अभी तक कोई कारगार इलाज नहीं है। इसकी चपेट में आई मछलियों की नाभी से नीचे का हिस्सा बढ़कर लंबा हो जाता है। बार-बार तामपान घटने व बढ़ने से मछलियों में चर्म रोग हो जाता है। उसमें सफेद चकते पड़ने लगते हैं। ऐसे स्पोट को चिमटी से निकाला जाता है। साथ ही एक्वेरियम में लगे हीटर का तापमान 27 डिग्री से 32 के बीच किया जाता है। उपचार के लिए पानी की मात्रा का एक प्रतिशत पोटेशियम परमेंग्नेट भी इसमें मिलाया जाता है। पानी की खराबी में फिन रोग होने पर मछली के फिन गलने लगते हैं। यह रोग मछलियों की जान तक ले लेता है। जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने पर मछलियों को दस्त लग जाते हैं। ऐसे में मछलियों दो से तीन दिन तक खाना देना बंद करना पड़ता है। साथ ही एक्वेरियम के पानी को बार-बार बदलना पड़ता है।
एक इंसान के बच्चे को पालने में जैसी मेहनत लगती है। ठीक उसी तरह एक्वेरियम में पली मछलियों की देखभाल में भी मेहनत लगती है। यदि समुचित देखभाल नहीं की तो मछलियां मरती रहेंगी और लोग उसके स्थान पर दूसरी डालते रहेंगे। तब शायद ही आपका ब्लड प्रेशर का रोग नियंत्रित हो पाएगा। यदि आप मछलियों की समुचित देखभाल कर उन्हें हर तरह की बीमारी से बचाते हैं और उनकी उम्र को लंबा करते हैं तभी मछलियों का पालने का आनंद आएगा। साथ ही उन्हें निहारने से आपना मन सदैव प्रसन्न रहेगा। वह भी आपको देखकर ऐसी खुशी का इजहार करेंगी कि आप ही उनके सच्चे हितैशी हैं।
भानु बंगवाल
हर सुबह एक्वेरियम के आगे जैसे ही मैं पहुंचता हूं, तो भोजन की चाहत में उसके भीतर इतराती मछलियां ऊछल-कूद मचाने लगती हैं। कितना आराम आता है, सुबह-सुबह मछलियों को निहारना। मन शांत रहता है। साथ ही हर दिन उन्हें देखने के बाद भी उत्सुकता कम नहीं होती। यही नहीं यदि आप हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हैं और तनावग्रस्त हैं, तो घर में एक्वेरियम लाकर मछलियां पाल सकते हैं। पानी में तैरती रंगीन मछलियों को कुछ देर निहारने से ये बीमारी नियंत्रित हो सकती है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण भी है। पानी में दिखाई देने वाली रंगीन मछलियों के चलने से निकलने वाली तरंग आंखों को आराम देती है। इससे व्यक्ति के नर्वस सिस्टम को काफी आराम पहुंचता है, लेकिन इस आराम को हासिल करने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। यदि जरा सी चूक हो जाए, तो आराम की बजाय आपको उलटा टेंशन हो सकती है। क्योंकि देखभाल में चूक होने से मछलियां बीमारी की चपेट में आने लगती हैं। यदि कोई मछली बीमार होती है, तो उस पर दूसरी हमला करने लगती है। कमजोर पर हमला करना हर प्राणी की फितरत है। वह यह नहीं सोचता कि इस हमले से उसे ही नुकसान पहुंचेगा। ऐसा ही मछलियों में भी होता है। बीमार व कमजोर को अन्य मछली नोंचने लगती हैं। ऐसे में वे भी बीमार होने लगती हैं और एक-एक कर सबकी मौत होने लगती है। ऐसे में जल की रानी को बचाने व स्वस्थ्य रखने के लिए उन पर हर समय नजर भी रखनी पड़ती है। यदि मछली स्वस्थ्य तो उसे पालने वाला भी खुश रहता है।
यूं तो हर व्यक्ति की अपनी रुचि होती है। वह रंगों व आकार व अपनी जेब के वजन के हिसाब से एक्वेरियम में मछली पालता है। मछली को पालने के लिए समय से भोजन, एक्वेरियम की सफाई, मछलियों को उसमें पर्याप्त आक्सीजन मिल रही है या नहीं, इन सभी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। बेजुवान प्राणी कोई परेशानी होने पर बता नहीं पाता। सिर्फ उनकी हरकत से ही हम उनके सुख-दुख का अहसास कर सकते हैं। जैसे सुबह जब मछलियों के भोजन का समय होता है तो जो व्यक्ति उन्हें नियमित रूप से दाना देता है, उसे देखते ही सभी मछलियां ठीक उसी तरह छटपटाने लगती है, जैसे कूत्ता या अन्य पालतू भोजन देख कर खुश होता है। यदि उनमें से कोई मछली शांत व चुपचाप बैठी हो, तो यही समझा जाता है कि उसे कोई परेशानी है।
करीब आठ साल से सुबह उठते ही सबसे पहले मैं एक्वेरियम में मछलियों को दाना देता हूं। इसके बाद मेरी दिनचर्या प्रारंभ होती है। इन आठ साल में मैने अनुभव किया कि मछलियों का स्वभाव भी अन्य प्राणी व मनुश्य की तरह की होता है। उन्हें मनुश्य के समान बीमारी होती है। साथ ही वे मनुश्य की तरह ही अलग-अलग स्वभाव वाली होती है। अब स्वभाव की बात देखिए नोटी प्रजाति की मात्र एक ईंच छोटी मछली गप्पी करीब 38 रंगों में अलग-अलग रंग की होती है। यह मछली काफी आक्रमक होती है और अपने से पांच से छह ईंच बड़ी मछली को भी मार कर खा जाती है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि छोटी मछली भी बड़ी को मार सकती है। वहीं गहरे नीले रंग की ब्लू लोच प्रजाति की मादा मछली काफी शर्मिली होती है। नर ही भोजन तलाश कर इसकी सूचना मादा को देते हैं। शर्मिली मछली अक्सर किसी आड़ में छिपी रहती है।
इसी तरह मछलियां यदि स्वभाव के विपरीत हरकत करती हैं, तो यह उनके बीमारी के लक्षण होते हैं। ताकतवर मछली के साथ रहने वाली कमजोर मछली या फिर आक्सीजन की कमी से मछलियां हाईटेंशन की शिकार हो जाती हैं। ऐसी मछलियों के फिन की नशों में खून चमकने लगता है। यह रोग समय से भोजन न मिलने, ज्यादा मात्रा में भोजन करने, पानी में घुलित आक्सीजन की कमी के चलते भी हो जाता है। ऐसी मछलियों को एक्वेरियम से बाहर दूसरे बर्तन में रखकर ही उनका इलाज किया जाता है। देसी नमक मिले पानी में कुछ दिन रखने से उनका रोग नियंत्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार फ्लू होने की स्थिति में मछलियों की चाल सुस्त पड़ जाती है। ऐसे में वह कुछ खाती भी नहीं और मुंह का रंग सफेद पड़ने लगता है। ऐसे में ब्लू मिथाइलिन दवा की बूंद पानी में डालकर इनका इलाज किया जाता है। साथ ही तापमान बढ़ाने के लिए या तो हीटर लगाया जाता है, या फिर गुनगुना पानी एक्वेरियम में लगाया जाता है। लीवर डेमेज होने पर मछलियों में ड्रॉप्सी बीमारी हो जाती है। इस बीमारी का अभी तक कोई कारगार इलाज नहीं है। इसकी चपेट में आई मछलियों की नाभी से नीचे का हिस्सा बढ़कर लंबा हो जाता है। बार-बार तामपान घटने व बढ़ने से मछलियों में चर्म रोग हो जाता है। उसमें सफेद चकते पड़ने लगते हैं। ऐसे स्पोट को चिमटी से निकाला जाता है। साथ ही एक्वेरियम में लगे हीटर का तापमान 27 डिग्री से 32 के बीच किया जाता है। उपचार के लिए पानी की मात्रा का एक प्रतिशत पोटेशियम परमेंग्नेट भी इसमें मिलाया जाता है। पानी की खराबी में फिन रोग होने पर मछली के फिन गलने लगते हैं। यह रोग मछलियों की जान तक ले लेता है। जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने पर मछलियों को दस्त लग जाते हैं। ऐसे में मछलियों दो से तीन दिन तक खाना देना बंद करना पड़ता है। साथ ही एक्वेरियम के पानी को बार-बार बदलना पड़ता है।
एक इंसान के बच्चे को पालने में जैसी मेहनत लगती है। ठीक उसी तरह एक्वेरियम में पली मछलियों की देखभाल में भी मेहनत लगती है। यदि समुचित देखभाल नहीं की तो मछलियां मरती रहेंगी और लोग उसके स्थान पर दूसरी डालते रहेंगे। तब शायद ही आपका ब्लड प्रेशर का रोग नियंत्रित हो पाएगा। यदि आप मछलियों की समुचित देखभाल कर उन्हें हर तरह की बीमारी से बचाते हैं और उनकी उम्र को लंबा करते हैं तभी मछलियों का पालने का आनंद आएगा। साथ ही उन्हें निहारने से आपना मन सदैव प्रसन्न रहेगा। वह भी आपको देखकर ऐसी खुशी का इजहार करेंगी कि आप ही उनके सच्चे हितैशी हैं।
भानु बंगवाल
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