दुश्मन बना हाथी, जिम्मेदार कौन...
फरवरी माह में भांजे की शादी में मुझे पूनम मिली। वो अपने पति के साथ शादी में आई थी। उसने अपने पति से मेरा परिचय कराया। मेरा बचपन जिस मोहल्ले में कटा था, वहां पूनम अपने माता-पिता के साथ रहती थी। परिवार में वह सबसे बड़ी थी। उसके बाद दो भाई व एक बहन और थे। बाद में पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हुए तो उन्होंने मकान खरीदा और हम उस मोहल्ले को विदा कर गए, जहां मेरा बचपन कटा था। बाद में पता चला कि पूनम की शादी हो गई, लेकिन उसके पति को देखने का सौभाग्य मुझे भांजे की शादी के दिन ही मिला। इस शादी के दो दिन बाद ही पता चला कि अभागी पूनम के पति की मौत हो गई। हरिद्वार से वे रात को कार से सपरिवार देहरादून लौट रहे थे। ऋषिकेश देहरादून मार्ग पर रात को कार से आगे बिगड़ैल हाथी धमक गया। पूनम का पति कार चला रहा था। पहले सभी कार में दुबके रहे, लेकिन हाथी तो हमले पर आमादा था। हाथी ने कार से शीशे तोड़ डाले। पूनम का पति जान बचाने को कार से निकल कर भागा, लेकिन हाथी ने देख लिया। उसका मकसद था कि हाथी का ध्यान बटाएगा और दूसरा कार को आगे बढ़ा देगा। फिर वह भी कार में बैठ जाएगा, लेकिन भाग्य को शायद कुछ और मंजूर था। उसे हाथी ने पकड़ कर पटक दिया। बाकी सदस्य कार दौड़ाकर भाग निकले। पूनम का पति हाथी के हमले में जान गंवा बैठा और पूनम विधवा हो गई।
गढ़वाल में अब तक जहां पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोग जहां गुलदार से हमेशा भयभीत रहते थे, वहीं घाटी व निचले इलाकों में गुलदार के हमले की घटनाएं कभी कभार ही सुनने को मिलती थी। अब गुलदार के साथ हाथी भी इंसान की जान का दुश्मन बनता जा रहा है। ऋषिकेश में जहां तीन साल पहले तक हाथी के हमले की घटनाएं कभी कभार ही सुनने को मिलती थी, वहीं अब अक्सर ऐसे हमले होने आम बात बनती जा रही है। ऋषिकेश व आसपास के क्षेत्र मे करीब ढाई साल में हाथी के हमले में अब तक 37 लोग जान गंवा चुके हैं।
अचानक हाथी के स्वभाव में क्या अंतर आया कि वह मानव की जान का दुश्मन बन गया। इसके कारणों की पड़ताल करने और उसका समाधान तलाशने की बजाय वन विभाग ने ऋषिकेश से देहरादून को जाने वाली सड़क के किनारे पर जगह-जगह हाथी से सावधान के बोर्ड लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। रविवार को मैं देहरादून से एक बरात में शामिल होकर ऋषिकेश जा रहा था। बस में सभी लोगों की जुवां पर हाथी की ही चर्चा थी। साथ ही एक भय यह भी था कि मार्ग पर कब कहां आथी धमक सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से बस के शीशे बंद किए हुए थे और सभी यही कामना कर रहे थे कि हाथी न दिख जाए। ये व्यक्ति का जीवन ही ऐसा है कि भले ही रास्ते में कितनी बाधा व भय हों, लेकिन व्यक्ति को गनतव्य तक जाना है तो जाकर ही रहेगा। यही कारण है कि हाथी प्रभावित जोन पर दो या चार पहिये वाहन सरपट दौड़ रहे थे। सड़क किनारे सटे जंगलों से लकड़ी लाते कई ग्रामीण नजर भी आए। मानो सड़क पर निकलने वाले को यही विश्वास रहता है कि उसके रास्ते पर हाथी नहीं आएगा। तभी तो पूनम का पति भी इसी विश्वास के चलते रात को उस मार्ग पर गाड़ी लेकर चला गया, जहां लोग हाथी के डर से नहीं जाते।
ढाई साल के भीतर हाथी के स्वाभाव में अंतर क्यों आया। जो हाथी अपने जंगल के रास्ते में सड़क पड़ने पर चुपचाप झुंड के साथ सड़क पार कर जंगल में चला जाता था, वह क्यों अब हमला कर रहा है। क्यों वह रास्ते में मानव को देखकर चुपचाप आगे नहीं बढ़ रहा है। क्यों वह अब वाहनों की तरफ ऐसे दौड़ता है जैसे मानव उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। इन सब बातों के लिए देखा जाए तो व्यक्ति ही जिम्मेदार है। कारण यह है कि जिस जंगल में हाथी विचरण करता था। जहां उसे चारा-पत्ती आसानी से मिल जाती थी। उस जंगल में मानव का हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है। हाथी का प्रिय भोजन रैंणी व बांस की पत्ती जंगल से गायब हो रही है। पानी के प्राकृतिक स्रोत से सटकर मकान बन गए हैं। जगंल से गुजरने वाली सूखी व बरसाती नदियों पर व्यक्ति अवैध खनन कर रहा है। जंगल में जब भोजन व पानी हाथी को नहीं मिल रहा है, तो वह ऐसे स्थान की तरफ रुख कर रहा है, जहां लोग रहते हैं। ऋषिकेश में जंगल से सटे ग्रामीण इलाकों में अवैध शराब बनाने का धंधा भी जोरों पर है। शराब बनाने वाले लोग जंगलों में शराब की भट्टियां बनाते हैं। शराब बनाने के लिए उन्होंने साल के पेड़ तक छिल डाले हैं। ऐसे में पेड़ भी सूखने लगे हैं। साल के पेड़ की छाल व सड़ा-गला अनाज वे जंगलों में छिपाकर रखते हैं। इसे गलाकर लहन तैयार की जाती है। लहन से ही शराब बनती है। ऐसी लहन को नष्ट करने में पुलिस व आबकारी विभाग जहां सफल नहीं हो पाता है, वहीं जंगलों में इन विभागों का काम हाथी कर रहे हैं। वे जमीन में दबाए गए ड्रम व पालीथिन की बोरियों की में रखी लहन को खोज निकालते हैं। उसे खाकर वे मदमस्त हो जाते हैं। जब कभी उन्हें लहन नहीं मिलती, तो वे गुस्से में और आक्रमक होकर बस्ती व खेतों की तरफ रुख करते हैं। वहां पर वे फिर खड़ी फसल को रौंद डालते हैं। यही नहीं कुछ हाथी को अब सड़क किनारे खड़े अनाज के ट्रक तक लूटने लगे हैं। भोजन की तलाश में वे टिहरी व चंबा की तरफ जाने वाले से अनाज से भरे ट्रकों के आगे धमकने लगे हैं। इन ट्रकों पर रखी राशन की बोरियों को वे सूंड से नीचे गिराकर अपना भोजन तलाश रहे हैं। अब हाथियों को ऐसी आदत पड़ने लगी है कि वे जंगल में भोजन तलाशने की बजाय व्यक्ति पर हमला कर भोजन प्राप्त कर रहा है। क्योंकि जंगल में उसके लिए मानव ने कुछ छोड़ा ही नहीं।
भानु बंगवाल
फरवरी माह में भांजे की शादी में मुझे पूनम मिली। वो अपने पति के साथ शादी में आई थी। उसने अपने पति से मेरा परिचय कराया। मेरा बचपन जिस मोहल्ले में कटा था, वहां पूनम अपने माता-पिता के साथ रहती थी। परिवार में वह सबसे बड़ी थी। उसके बाद दो भाई व एक बहन और थे। बाद में पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हुए तो उन्होंने मकान खरीदा और हम उस मोहल्ले को विदा कर गए, जहां मेरा बचपन कटा था। बाद में पता चला कि पूनम की शादी हो गई, लेकिन उसके पति को देखने का सौभाग्य मुझे भांजे की शादी के दिन ही मिला। इस शादी के दो दिन बाद ही पता चला कि अभागी पूनम के पति की मौत हो गई। हरिद्वार से वे रात को कार से सपरिवार देहरादून लौट रहे थे। ऋषिकेश देहरादून मार्ग पर रात को कार से आगे बिगड़ैल हाथी धमक गया। पूनम का पति कार चला रहा था। पहले सभी कार में दुबके रहे, लेकिन हाथी तो हमले पर आमादा था। हाथी ने कार से शीशे तोड़ डाले। पूनम का पति जान बचाने को कार से निकल कर भागा, लेकिन हाथी ने देख लिया। उसका मकसद था कि हाथी का ध्यान बटाएगा और दूसरा कार को आगे बढ़ा देगा। फिर वह भी कार में बैठ जाएगा, लेकिन भाग्य को शायद कुछ और मंजूर था। उसे हाथी ने पकड़ कर पटक दिया। बाकी सदस्य कार दौड़ाकर भाग निकले। पूनम का पति हाथी के हमले में जान गंवा बैठा और पूनम विधवा हो गई।
गढ़वाल में अब तक जहां पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोग जहां गुलदार से हमेशा भयभीत रहते थे, वहीं घाटी व निचले इलाकों में गुलदार के हमले की घटनाएं कभी कभार ही सुनने को मिलती थी। अब गुलदार के साथ हाथी भी इंसान की जान का दुश्मन बनता जा रहा है। ऋषिकेश में जहां तीन साल पहले तक हाथी के हमले की घटनाएं कभी कभार ही सुनने को मिलती थी, वहीं अब अक्सर ऐसे हमले होने आम बात बनती जा रही है। ऋषिकेश व आसपास के क्षेत्र मे करीब ढाई साल में हाथी के हमले में अब तक 37 लोग जान गंवा चुके हैं।
अचानक हाथी के स्वभाव में क्या अंतर आया कि वह मानव की जान का दुश्मन बन गया। इसके कारणों की पड़ताल करने और उसका समाधान तलाशने की बजाय वन विभाग ने ऋषिकेश से देहरादून को जाने वाली सड़क के किनारे पर जगह-जगह हाथी से सावधान के बोर्ड लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। रविवार को मैं देहरादून से एक बरात में शामिल होकर ऋषिकेश जा रहा था। बस में सभी लोगों की जुवां पर हाथी की ही चर्चा थी। साथ ही एक भय यह भी था कि मार्ग पर कब कहां आथी धमक सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से बस के शीशे बंद किए हुए थे और सभी यही कामना कर रहे थे कि हाथी न दिख जाए। ये व्यक्ति का जीवन ही ऐसा है कि भले ही रास्ते में कितनी बाधा व भय हों, लेकिन व्यक्ति को गनतव्य तक जाना है तो जाकर ही रहेगा। यही कारण है कि हाथी प्रभावित जोन पर दो या चार पहिये वाहन सरपट दौड़ रहे थे। सड़क किनारे सटे जंगलों से लकड़ी लाते कई ग्रामीण नजर भी आए। मानो सड़क पर निकलने वाले को यही विश्वास रहता है कि उसके रास्ते पर हाथी नहीं आएगा। तभी तो पूनम का पति भी इसी विश्वास के चलते रात को उस मार्ग पर गाड़ी लेकर चला गया, जहां लोग हाथी के डर से नहीं जाते।
ढाई साल के भीतर हाथी के स्वाभाव में अंतर क्यों आया। जो हाथी अपने जंगल के रास्ते में सड़क पड़ने पर चुपचाप झुंड के साथ सड़क पार कर जंगल में चला जाता था, वह क्यों अब हमला कर रहा है। क्यों वह रास्ते में मानव को देखकर चुपचाप आगे नहीं बढ़ रहा है। क्यों वह अब वाहनों की तरफ ऐसे दौड़ता है जैसे मानव उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। इन सब बातों के लिए देखा जाए तो व्यक्ति ही जिम्मेदार है। कारण यह है कि जिस जंगल में हाथी विचरण करता था। जहां उसे चारा-पत्ती आसानी से मिल जाती थी। उस जंगल में मानव का हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है। हाथी का प्रिय भोजन रैंणी व बांस की पत्ती जंगल से गायब हो रही है। पानी के प्राकृतिक स्रोत से सटकर मकान बन गए हैं। जगंल से गुजरने वाली सूखी व बरसाती नदियों पर व्यक्ति अवैध खनन कर रहा है। जंगल में जब भोजन व पानी हाथी को नहीं मिल रहा है, तो वह ऐसे स्थान की तरफ रुख कर रहा है, जहां लोग रहते हैं। ऋषिकेश में जंगल से सटे ग्रामीण इलाकों में अवैध शराब बनाने का धंधा भी जोरों पर है। शराब बनाने वाले लोग जंगलों में शराब की भट्टियां बनाते हैं। शराब बनाने के लिए उन्होंने साल के पेड़ तक छिल डाले हैं। ऐसे में पेड़ भी सूखने लगे हैं। साल के पेड़ की छाल व सड़ा-गला अनाज वे जंगलों में छिपाकर रखते हैं। इसे गलाकर लहन तैयार की जाती है। लहन से ही शराब बनती है। ऐसी लहन को नष्ट करने में पुलिस व आबकारी विभाग जहां सफल नहीं हो पाता है, वहीं जंगलों में इन विभागों का काम हाथी कर रहे हैं। वे जमीन में दबाए गए ड्रम व पालीथिन की बोरियों की में रखी लहन को खोज निकालते हैं। उसे खाकर वे मदमस्त हो जाते हैं। जब कभी उन्हें लहन नहीं मिलती, तो वे गुस्से में और आक्रमक होकर बस्ती व खेतों की तरफ रुख करते हैं। वहां पर वे फिर खड़ी फसल को रौंद डालते हैं। यही नहीं कुछ हाथी को अब सड़क किनारे खड़े अनाज के ट्रक तक लूटने लगे हैं। भोजन की तलाश में वे टिहरी व चंबा की तरफ जाने वाले से अनाज से भरे ट्रकों के आगे धमकने लगे हैं। इन ट्रकों पर रखी राशन की बोरियों को वे सूंड से नीचे गिराकर अपना भोजन तलाश रहे हैं। अब हाथियों को ऐसी आदत पड़ने लगी है कि वे जंगल में भोजन तलाशने की बजाय व्यक्ति पर हमला कर भोजन प्राप्त कर रहा है। क्योंकि जंगल में उसके लिए मानव ने कुछ छोड़ा ही नहीं।
भानु बंगवाल
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