देर से आना जल्दी जाना...
शादी के कार्ड में क्रार्यक्रम के अनुरूप तय समय में शायद ही कोई विवाह समारोह में शामिल होने जाता है। कार्ड में लिखा होता है, बारात प्रस्थान सांय छह बजे, तो मेहमान बराती बनने सात से आठ बजे ही पहुंचते हैं। इसी तरह प्रीतिभोज न तो तय समय से ही शुरू हो पाता है और न ही कार्ड में दर्ज समय तक मेहमान ही पहुंचते हैं। इसी तरह कोई सेमिनार हो या गोष्ठी। सभी में पहुंचने वालों में ज्यादा ऐसे ही होते हैं, जो तय समय के काफी देर बाद ही पहुंचते हैं। देरी से आने व जल्दी जाने की फितरत तो हम हिंदुस्तानी में बढ़ती जा रही है। नियत स्थान की बस लेट, ट्रेन लेट, अस्पताल में मरीजों की लाइन खड़ी, पर डॉक्टर लेट। फिर समय से क्या काम होता है, शायद यह बताना काफी मुश्किल हो गया। अब तो प्रकृति के कार्य भी लेट होने लगे हैं। जब इंसान ने हर काम में देरी की तो ये मौसम भी समय से क्यों करवट बदले, वह भी लेट लतीफ होने लगा है।
गरमी, बरसात व सर्दी समय-समय पर आते व जाते रहते हैं। मार्च माह में होली के बाद से गरमी की दस्तक शुरू हो जाती है। साथ ही अप्रैल माह में हमेशा मौसम खुशगवार रहता है। अप्रैल में पेड़ पौधों में फूल खिले होते हैं। कभी बारिश होती है तो कभी तेज गरमी भी पड़ती है। मौसम का मिजाज उस सनकी लड़की की तरह होता है, जो श्रृंगार से लदी होती है। हर तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती। इस बार तो अप्रैल सूखा ही चला गया। श्रृंगार से लदी सनकी लड़की भी सूखने लगी। पेड़-पौधे और गमले सूखने लगे। मई की शुरूआत भी ऐसी ही रही। लोग गर्मी से तड़फने लगे। जंगलों में पशु-पक्षी सभी पानी के लिए व्याकुल होने लगे। एक ही आस बादलों से रहती कि हे मेघा तुम कब बरसोगे। हर साल करीब 13 अप्रैल बैशाखी के दिन व उसके आसपास ही बारिश होती थी, लेकिन इस बार अप्रैल माह सूखा चला गया। इसके विपरीत ठीक एक माह बाद 13 मई का दिन ऐसा आया जैसे अप्रैल का महीना हो। यानी मौसम का मिजाज भी एक महिना लेट। देहरादून में रविवार की सुबह हल्के छींटे पड़े। मौसम में ठंडक बढ़ गई। पंखा चलाने में ठंड महसूस की जाने लगी। मौसम खुशगवार हुआ और देर शाम के बाद भी यही मिजाज कायम रहा। कभी कभार छींटे पड़ते रहे। पंखे में जहां कई दिनों से पसीना टपक रहा था, वहीं रविवार को पंखे के स्विच आन तक नहीं किए गए। खिड़की खोलने पर ताजी व ठंडी हवा ही पंखों का काम कर रही थी। देहरादून की खासियत यही है कि जब भी गरमी की तपिश बढ़ती है, अचानक बारिश हो जाती है। इस बार देर से ही सही, लेकिन रविवार के मौसम ने अप्रैल माह का एहसास करा दिया। अब यह हरएक की जुंवा पर यही रही कि मौसम की रवानगी देर से आई, लेकिन जल्द न चली जाए। काश ऐसा ही मौसम कई दिनों तक बना रहे। पहाड़ों में बारिश हो और दून घाटी समेत अन्य मैदानों में मौसम खुशगवार रहे।
भानु बंगवाल
शादी के कार्ड में क्रार्यक्रम के अनुरूप तय समय में शायद ही कोई विवाह समारोह में शामिल होने जाता है। कार्ड में लिखा होता है, बारात प्रस्थान सांय छह बजे, तो मेहमान बराती बनने सात से आठ बजे ही पहुंचते हैं। इसी तरह प्रीतिभोज न तो तय समय से ही शुरू हो पाता है और न ही कार्ड में दर्ज समय तक मेहमान ही पहुंचते हैं। इसी तरह कोई सेमिनार हो या गोष्ठी। सभी में पहुंचने वालों में ज्यादा ऐसे ही होते हैं, जो तय समय के काफी देर बाद ही पहुंचते हैं। देरी से आने व जल्दी जाने की फितरत तो हम हिंदुस्तानी में बढ़ती जा रही है। नियत स्थान की बस लेट, ट्रेन लेट, अस्पताल में मरीजों की लाइन खड़ी, पर डॉक्टर लेट। फिर समय से क्या काम होता है, शायद यह बताना काफी मुश्किल हो गया। अब तो प्रकृति के कार्य भी लेट होने लगे हैं। जब इंसान ने हर काम में देरी की तो ये मौसम भी समय से क्यों करवट बदले, वह भी लेट लतीफ होने लगा है।
गरमी, बरसात व सर्दी समय-समय पर आते व जाते रहते हैं। मार्च माह में होली के बाद से गरमी की दस्तक शुरू हो जाती है। साथ ही अप्रैल माह में हमेशा मौसम खुशगवार रहता है। अप्रैल में पेड़ पौधों में फूल खिले होते हैं। कभी बारिश होती है तो कभी तेज गरमी भी पड़ती है। मौसम का मिजाज उस सनकी लड़की की तरह होता है, जो श्रृंगार से लदी होती है। हर तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती। इस बार तो अप्रैल सूखा ही चला गया। श्रृंगार से लदी सनकी लड़की भी सूखने लगी। पेड़-पौधे और गमले सूखने लगे। मई की शुरूआत भी ऐसी ही रही। लोग गर्मी से तड़फने लगे। जंगलों में पशु-पक्षी सभी पानी के लिए व्याकुल होने लगे। एक ही आस बादलों से रहती कि हे मेघा तुम कब बरसोगे। हर साल करीब 13 अप्रैल बैशाखी के दिन व उसके आसपास ही बारिश होती थी, लेकिन इस बार अप्रैल माह सूखा चला गया। इसके विपरीत ठीक एक माह बाद 13 मई का दिन ऐसा आया जैसे अप्रैल का महीना हो। यानी मौसम का मिजाज भी एक महिना लेट। देहरादून में रविवार की सुबह हल्के छींटे पड़े। मौसम में ठंडक बढ़ गई। पंखा चलाने में ठंड महसूस की जाने लगी। मौसम खुशगवार हुआ और देर शाम के बाद भी यही मिजाज कायम रहा। कभी कभार छींटे पड़ते रहे। पंखे में जहां कई दिनों से पसीना टपक रहा था, वहीं रविवार को पंखे के स्विच आन तक नहीं किए गए। खिड़की खोलने पर ताजी व ठंडी हवा ही पंखों का काम कर रही थी। देहरादून की खासियत यही है कि जब भी गरमी की तपिश बढ़ती है, अचानक बारिश हो जाती है। इस बार देर से ही सही, लेकिन रविवार के मौसम ने अप्रैल माह का एहसास करा दिया। अब यह हरएक की जुंवा पर यही रही कि मौसम की रवानगी देर से आई, लेकिन जल्द न चली जाए। काश ऐसा ही मौसम कई दिनों तक बना रहे। पहाड़ों में बारिश हो और दून घाटी समेत अन्य मैदानों में मौसम खुशगवार रहे।
भानु बंगवाल
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