Thursday, 16 May 2013

Double Centuary...

काफी कुछ सिखा गया ये दोहरा शतक...
वाकई में एक दूसरे का हाल जानने व अपनी बातें शेयर करने में संचार क्रांति ने जितनी तरक्की की, शायद उसकी हमने आज से वर्षों पहले कभी कल्पना तक नहीं की थी। नेट में चाहे चेट हो या फिर, फेस बुक में कविता व लेख आदि। इस बहाने हर एक लिख रहा है। ठीक उसी तरह जैसे कभी हम घर के किसी सदस्य के बाहर रहने पर उसे लंबे-लंबे अंतरदेशीय पत्र लिखते थे। या फिर पत्र को लिफाफे मे डालकर भेजते थे। ऐसे पत्रों से लेखन क्षमता में विकास तो होता ही था, साथ ही देर सवेर हमें एक दूसरे के सामाचार भी मालूम हो जाते थे। आज तो कंप्यूटर के की बोर्ड में अंगुलियां चलाओ और एक झटके में अपनी बात दूसरे तक पहुंचा दो। कितनी छोटी हो गई है अब ये दुनियां।
करीब चार-पांच साल पहले जब ऑफिस में कहा जाता था कि आप नेट से जुड़ो। साइबर कैफे में जाओ और खुद को देश दुनियां में अपडेट रखो को मुझे बुरा लगता था। मेरा कहना होता था कि इतना समय ही कहां है। फिर घर में कंप्यूटर आया। फिर नेट कनेक्शन लिया। तब भी कंप्यूटर का इस्तेमाल सिर्फ वीडियो गेम तक ही सीमित था। फेस बुक के बारे में सुना जरूर था, लेकिन यह नहीं पता था कि क्या होती है। कैसे इसमें अकाउंट खोला जाता है। लिखना चाहता था पर मंच नहीं मिला। हालांकि समाचार पत्रों से जुड़ा होने के कारण स्टोरी तो लिखता था, लेकिन समाचार पत्रों में भी लिखने की बाध्यता है। ऐसे में लिखने की छटपटाहट कैसे पूरी हो इसका समाधान नहीं मिल पा रहा था। ऑफिस में नेहा नाम की एक लड़की थी। उसने ही फेस बुक में मेरा अकाउंट बनाया। एक मित्र गोविंद पोखरिया ने मुझे ब्लाग लिखने को प्रेरित किया। उसने ही बताया कि ब्लाग स्पाट ऐसा मंच है, जहां ब्लाक लिख सकते हो। बेटे ने मेरा ब्लाग स्पाट में अकाउंट खोला और मैने अपना पहला ब्लाग वहीं लिखा। इसके कुछ ही दिन बाद मैने जागरण जंगशन में भी ब्लाग लिखने शुरू किए। 
सुबह से शाम तक हमारे इर्दगिर्द छोटी व बड़ी घटनाएं घटती रहती है। बड़ी घटनाएं ज्यादा चर्चा में आती हैं और वह समाचार भी बन जाती हैं। इसके विपरीत  कई बार छोटी-छोटी बातों पर हम गौर नहीं करते। ऐसी घटनाएं हम अपने तक ही सिमित रखते हैं। या कभी कभार दोस्तों से उन पर चर्चा कर लेते हैं। कई बार घटनाओं को बताने का हमारा अंदाज कुछ ज्यादा रोचक  होता है, ऐसे में वे घटनाएं अक्सर हमारी चर्चा व उदाहरणों में आती है। हम ऐसी घटनाओं से कई बार नया भी सीखते हैं और इनके अच्छे बुरे परीणामों का आंकलन भी करते हैं। जो घटनाएं समाचार नहीं बन पाती, उन्हें ही मैने अपने ब्लॉग में स्थान दिया। ऐसी सच्ची घटनाओं को कभी कहानी का रूप दिया या फिर घटना के इर्दगिर्द खुद की उपस्थिति दर्शाकर मैने ब्लाग लिखे। इसमें मैरे जीवन के अनुभव शामिल रहे। इसीलिए मैने अपने ब्लॉग का नाम अनुभव दिया। बचपन की यादों को मैने ब्लाग में समेटा और व्यक्ति के अच्छे व बुरे चरित्र को कहानी का रूप देकर ब्लाग लिखे। इसमें चाहे कुलटा सीरिज की कहानी हो या फिर कोई अन्य मुद्दे। सभी में मुझे पढ़ने वाले मित्रों का अच्छा सहयोग मिला। कब सौ ब्लाग पूरे हुए और अब दो सौ पूरे हाने जा रहे हैं, इसका मुझे अंदाजा तक नहीं हो पाया।
हां इतना जरूर है कि हर व्यक्ति को किसी न किसी का नशा होता है। किसी को शराब का, किसी को खेल का, किसी को प्रेम का, लेकिन मुझे कंप्यूटर का नशा होने लगा। पहले मैं अक्सर हर दिन या एक दिन छोड़कर लिखता रहा। जब कंप्यूटर खराब हो जाता तो मेरे भीतर एक अजीब की छटपटाहट होने लगती। लगता कि मैं बीमार हो गया। खाने का भी मन नहीं करता। प्रभात हो, दोपहर हो, संध्या हो या फिर निशा। हर वक्त मुझे ब्लाग का ही नशा छाया रहता। मैं अपने बचपन से लेकर बड़े तक की घटनाओं को दिमाग में रिकेपिंग करता और यही सोचता कि किस पर ब्लाग लिखा जा सकता है। वैसे देश ही हालत, राजनीति आदि पर लिखने का मेरा मन इसलिए नहीं होता कि ऐसे लेखों से समाचार पत्र भरे रहते हैं। लोग काफी अच्छा लिखते हैं। मुझे तो वो लिखना है, जो शायद दूसरा न लिखे। यही प्रयास रहता है। इसमें मैं कभी सफल और कई बार असफल भी हुआ।
जागरण जंगशन से मैने काफी कुछ सीखा कि अपनी बात को कैसे आसानी से दूसरों तक पहुंचाया जा सकता है। फिर फेसबुक में भी मैरे अनुभव कुछ खट्टे व कुछ मिट्ठे रहे। चेहरों की इस किताब में किसका चेहरा असली है, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है। फ्रेंड रिक्यूवेस्ट आती है तो मैं इसलिए कनफर्म करता हूं कि शायद दूसरी तरफ वाला मेरे ब्लाग जरूर पढ़ेगा। सामने से हो सकता है कि मेरी शक्ल ज्यादा अच्छी न हो, लेकिन कई बार लड़कियों के दोस्ती या कहें साथ जीने व मरने के प्रस्ताव भी आए। हो सकता है कि उन्हें मेरी फोटो ने आकर्षित किया हो। ऐसी ही एक लड़की जब ज्यादा पीछे पड़ी तो उसे मैने समझाया कि मैं कुंवारा नहीं हूं। मेरी पत्नी व दो बच्चे हैं। मैं अच्छा मित्र हो सकता हूं, लेकिन जो आप चाहती हो, वो नहीं हो सकता। मैने उसे अपने परिवार की फोटो भी भेजी और आज वह किसी भी नेक काम के लिए मुझसे सलाह भी लेती है।
बात रही जागरण जंक्शन की। जब तक दिमाग में विचार आते रहेंगे, तो मैं लिखता रहूंगा। क्योंकि मेरी फितरत ही लिखने की है। जब छोटा था तो बड़ी बहन को दिल्ली पत्र लिखता था। साथ ही मौहल्ले की अनपढ़ महिलाएं मुझसे अपने पति, रिश्तेदारों व अन्य परिचितों के लिए पत्र लिखवाती थी। इसका मैने लीली की चिट्ठी, ब्लाग में भी जिक्र किया है। ये ही लोग मुझे लिखना सिखाने वाले पहले गुरु थे। जिन्हें आज तक मैं नहीं भूल पाऊंगा।
भानु बंगवाल

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