बैंड ना बाजा, सीधे फेरे, बस सादगी ही सादगी...
शादी हुई पर हुल्लड़ नहीं। दूल्हा सजा पर बैंड नहीं बजा। ना बाराती नाचे और न ही सड़कों पर जाम लगा। फिर भी शादी हुई। एक नहीं एक साथ दो अलग-अलग शादियां। दोनों ही शादी के मेहमान एक दूसरे को नहीं जानते। फिर भी एक ही छत के नीचे विवाह संस्कार पूरे कराए गए। एक बड़े से हाल में दो शादियों के मेहमान बैठे हैं। आगे दो जोड़े। हर जोड़े के इर्दगिर्द उसके परिचित मेहमान। दोनों जोड़ों के आगे हवन कुंड में आग धधक रही है। सामने मंच पर बैठा पुरोहित मंत्र पढ़ते हैं। जैसा वह कहते हैं, वर वधु वैसी की क्रियाएं करते हैं। जब फेरे होते हैं, तो मेहमान अपने-अपने परिचित जोड़े के ऊपर फूलों की वर्षा करते हैं। ना तमाशा न कोई हुल्लड़, न ही कोई शराब के नशे में। ऐसा ही नजारा देखने को मिला शांतिकुंज हरिद्वार में। अपने आफिस के सहयोगी की शादी में शामिल होने मैं वहां गया था। साथ में चार अन्य साथी भी थे। पता चला कि कई बार तो एक साथ आठ से दस जोड़ों या इससे भी अधिक की शादी कराई जाती है।
वैदिक रीति से कराई जाने वाली इस शादी में जहां सादगी देखने को मिलती है, वहीं आडंबर से दूर ऐसी शादी में खर्च भी काफी कम आता है। यदि किसी की जेब में शादी कराने के लिए पैसा नहीं है तो उसे सिर्फ पुरोहित को दक्षिणा के रूप में कम से कम मात्र एक रुपये ही देना पड़ता है। वैसे जिसकी जितनी श्रृद्धा हो उतना चलेगा। फेरे हुए शादी भी हो गई। अब बारी थी भोजन की। वर व बधु पक्ष के लोगों का भोजन। भोजन की व्यवस्था भी वहां की कैंटिन में ही थी। इसके लिए हाल बुक थे। हमें बताया गया कि कैंटीन के ऊपर एक हाल है, वहां पर भोजन की व्यवस्था है। सीड़ी चढ़कर पहली मंजिल में पहुंचे। वहां एक हाल के द्वार पर पर्ची में लिखा था दिल्ली वाले। वहीं खड़े एक व्यक्ति ने हमसे पूछा कि आप कहां वाले हो। हने बताया कि देहरादून वाले। इस पर उसने कहा कि शादी कहां वालों की है, जिसमें आप शामिल होने आए हो। हम तो दूल्हे का नाम महेंद्र जानते थे। अब इतना याद जरूर था कि वह चंदोसी का रहने वाला है। हमने बताया कि महेंद्र की शादी में आए हैं, वो चंदोसी का है। इस पर मौजूद व्यक्ति ने कहा कि अभी दो मंजिल और चढ़नी होगी। आप अलीगढ़ वाले हो। शायद अलीगढ़ वाले वधु पक्ष के लोग थे। दूसरी मंजिल के हाल में एक के द्वार में शिमला वाले व दूसरे हाल में कानपुर वाले लिखा था। यानी उक्त हाल शिमला व कानपुर के लोगों ने खाने के लिए बुक कराए होगें। तीसरी मंजिल में हमें अलीगढ़ वाले व नोएडा वाले के नाम से एक हाल के गेट में दो अलग-अलग तख्तियां टंगी मिली। हाल के आधे हिस्से में अलीगढ़ की पार्टी का इंतजाम था, वहीं आधे में नोएडा वालों की। तब हम अलीगढ़ वाले थे। सो अपने स्थान पर गए और सादगी से भरपूर भोजन का आनंद लिया। साथ ही शांतिकुंड से वापस लौटते हुए यह संकल्प भी लिया कि भविष्य में परिवार के किसी सदस्य की शादी होगी, तो मेरा प्रयास यही रहेगा कि शांतिकुंज में ही कराई जाए। ना हुड़दंग, न बैंड, बस सादगी ही सादगी।
भानु बंगवाल
शादी हुई पर हुल्लड़ नहीं। दूल्हा सजा पर बैंड नहीं बजा। ना बाराती नाचे और न ही सड़कों पर जाम लगा। फिर भी शादी हुई। एक नहीं एक साथ दो अलग-अलग शादियां। दोनों ही शादी के मेहमान एक दूसरे को नहीं जानते। फिर भी एक ही छत के नीचे विवाह संस्कार पूरे कराए गए। एक बड़े से हाल में दो शादियों के मेहमान बैठे हैं। आगे दो जोड़े। हर जोड़े के इर्दगिर्द उसके परिचित मेहमान। दोनों जोड़ों के आगे हवन कुंड में आग धधक रही है। सामने मंच पर बैठा पुरोहित मंत्र पढ़ते हैं। जैसा वह कहते हैं, वर वधु वैसी की क्रियाएं करते हैं। जब फेरे होते हैं, तो मेहमान अपने-अपने परिचित जोड़े के ऊपर फूलों की वर्षा करते हैं। ना तमाशा न कोई हुल्लड़, न ही कोई शराब के नशे में। ऐसा ही नजारा देखने को मिला शांतिकुंज हरिद्वार में। अपने आफिस के सहयोगी की शादी में शामिल होने मैं वहां गया था। साथ में चार अन्य साथी भी थे। पता चला कि कई बार तो एक साथ आठ से दस जोड़ों या इससे भी अधिक की शादी कराई जाती है।
वैदिक रीति से कराई जाने वाली इस शादी में जहां सादगी देखने को मिलती है, वहीं आडंबर से दूर ऐसी शादी में खर्च भी काफी कम आता है। यदि किसी की जेब में शादी कराने के लिए पैसा नहीं है तो उसे सिर्फ पुरोहित को दक्षिणा के रूप में कम से कम मात्र एक रुपये ही देना पड़ता है। वैसे जिसकी जितनी श्रृद्धा हो उतना चलेगा। फेरे हुए शादी भी हो गई। अब बारी थी भोजन की। वर व बधु पक्ष के लोगों का भोजन। भोजन की व्यवस्था भी वहां की कैंटिन में ही थी। इसके लिए हाल बुक थे। हमें बताया गया कि कैंटीन के ऊपर एक हाल है, वहां पर भोजन की व्यवस्था है। सीड़ी चढ़कर पहली मंजिल में पहुंचे। वहां एक हाल के द्वार पर पर्ची में लिखा था दिल्ली वाले। वहीं खड़े एक व्यक्ति ने हमसे पूछा कि आप कहां वाले हो। हने बताया कि देहरादून वाले। इस पर उसने कहा कि शादी कहां वालों की है, जिसमें आप शामिल होने आए हो। हम तो दूल्हे का नाम महेंद्र जानते थे। अब इतना याद जरूर था कि वह चंदोसी का रहने वाला है। हमने बताया कि महेंद्र की शादी में आए हैं, वो चंदोसी का है। इस पर मौजूद व्यक्ति ने कहा कि अभी दो मंजिल और चढ़नी होगी। आप अलीगढ़ वाले हो। शायद अलीगढ़ वाले वधु पक्ष के लोग थे। दूसरी मंजिल के हाल में एक के द्वार में शिमला वाले व दूसरे हाल में कानपुर वाले लिखा था। यानी उक्त हाल शिमला व कानपुर के लोगों ने खाने के लिए बुक कराए होगें। तीसरी मंजिल में हमें अलीगढ़ वाले व नोएडा वाले के नाम से एक हाल के गेट में दो अलग-अलग तख्तियां टंगी मिली। हाल के आधे हिस्से में अलीगढ़ की पार्टी का इंतजाम था, वहीं आधे में नोएडा वालों की। तब हम अलीगढ़ वाले थे। सो अपने स्थान पर गए और सादगी से भरपूर भोजन का आनंद लिया। साथ ही शांतिकुंड से वापस लौटते हुए यह संकल्प भी लिया कि भविष्य में परिवार के किसी सदस्य की शादी होगी, तो मेरा प्रयास यही रहेगा कि शांतिकुंज में ही कराई जाए। ना हुड़दंग, न बैंड, बस सादगी ही सादगी।
भानु बंगवाल
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