यदि किसी को तैरना नहीं आता, तो उसे गहरे पानी में जाने से परहेज करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के सामने यदि कोई डूब रहा हो तो उसे मदद के लिए पानी में छलांग लगाने की बजाय दूसरे उपाय सोचने चाहिए। पानी में छलांग लगाने की स्थिति में दूसरा तो शायद नहीं बचे, लेकिन बचाने वाले की भी बचने की गारंटी नहीं रहेगी। क्योंकि उसे भी तैरना नहीं आता और वह दूसरे को बचाने के लिए पानी में कूद पड़ा। अक्सर दुर्घटनाओं के समय ऐसे ही वाक्ये होते हैं। बचाने के प्रयास में कई बार अच्छे खासे व्यक्ति भी जान से हाथ धो बैठते हैं।
इसीलिए कहा गया कि किसी भी दुर्घटना के वक्त जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, लेकिन हकीकत में ऐसे समय व्यक्ति जल्दबाजी में ही निर्णय लेता है। कई बार तो बड़ों की बजाय अनजाने में छोटे बच्चे ही ऐसा काम कर जाते हैं, जिससे संकट टल जाता है। मासूमों को यह तक पता नहीं होता कि वह जो कर रहे हैं, कितना खतरनाक काम है।
करीब छह साल पहले दिल्ली में मेरे भांजे की शादी थी। मै परिवार के साथ दिल्ली के सरोजनी नगर क्षेत्र में गया हुआ था। मकान के आगे मैदान में मेहमानों के लिए भोजन का टैंट लगाया हुआ था। मेरा छोटा बेटा उस समय करीब चार साल का था। वह टैंट से दूर बजरी व रेत के ढेर से खेल रहा था। टैंट के पीछे जहां हलुवाई खाना बना रहा था, वहां भट्टी के सिलेंडर में आग लग गई। अचानक आग लगते ही टैंट में मौजूद सभी लोगों में अफरा-तफरी मच गई। सभी सुरक्षित स्थान की तरफ भागे। इस दौरान आग सिलेंडर तक ही सीमित थी। तेजी से साथ सिलेंडर से गैस निकल रही थी और वहां से आग की लपटे निकल रही थी । दूर खड़े होकर लोग सलाह देने लगे। कोई कहता पानी डालो। तो कोई कहता पानी नहीं, सिलेंडर फट जाएगा। कोई मिट्टी डालने की सलाह दे रहा था। इसी बीच मैने देखा कि मेरा चार साल का बेटा सिलेंडर के निकट खड़ा था। मैने उसे वहां से भागने को आवाज लगाई, साथ ही उसकी तरफ दौड़ा। तब तक वह अपनी पेंट की जेब में भरी हुई रेत को सिलेंडर की तरफ डाल चुका था। इसके बाद वह दोबारा रेत लेने जाने लगा। तभी मैने उसे खींचकर अलग किया। इस बच्चे को देख तब तक वहां मौजूद हलुवाई व अन्य लोग ने प्लेट व अन्य बर्तनों में रेत भरकर सिलेंडर पर डाली और आग को बुझा दिया। उस दिन एक बच्चे से अपनी शरारत से सभी को संकट से बचने की राह दिखाई और आग बुझाने के लिए प्रेरित किया। उसे देखकर ही सभी को पता चल सका था कि समीप ही रेत का ढेर भी है।
भानु बंगवाल
इसीलिए कहा गया कि किसी भी दुर्घटना के वक्त जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, लेकिन हकीकत में ऐसे समय व्यक्ति जल्दबाजी में ही निर्णय लेता है। कई बार तो बड़ों की बजाय अनजाने में छोटे बच्चे ही ऐसा काम कर जाते हैं, जिससे संकट टल जाता है। मासूमों को यह तक पता नहीं होता कि वह जो कर रहे हैं, कितना खतरनाक काम है।
करीब छह साल पहले दिल्ली में मेरे भांजे की शादी थी। मै परिवार के साथ दिल्ली के सरोजनी नगर क्षेत्र में गया हुआ था। मकान के आगे मैदान में मेहमानों के लिए भोजन का टैंट लगाया हुआ था। मेरा छोटा बेटा उस समय करीब चार साल का था। वह टैंट से दूर बजरी व रेत के ढेर से खेल रहा था। टैंट के पीछे जहां हलुवाई खाना बना रहा था, वहां भट्टी के सिलेंडर में आग लग गई। अचानक आग लगते ही टैंट में मौजूद सभी लोगों में अफरा-तफरी मच गई। सभी सुरक्षित स्थान की तरफ भागे। इस दौरान आग सिलेंडर तक ही सीमित थी। तेजी से साथ सिलेंडर से गैस निकल रही थी और वहां से आग की लपटे निकल रही थी । दूर खड़े होकर लोग सलाह देने लगे। कोई कहता पानी डालो। तो कोई कहता पानी नहीं, सिलेंडर फट जाएगा। कोई मिट्टी डालने की सलाह दे रहा था। इसी बीच मैने देखा कि मेरा चार साल का बेटा सिलेंडर के निकट खड़ा था। मैने उसे वहां से भागने को आवाज लगाई, साथ ही उसकी तरफ दौड़ा। तब तक वह अपनी पेंट की जेब में भरी हुई रेत को सिलेंडर की तरफ डाल चुका था। इसके बाद वह दोबारा रेत लेने जाने लगा। तभी मैने उसे खींचकर अलग किया। इस बच्चे को देख तब तक वहां मौजूद हलुवाई व अन्य लोग ने प्लेट व अन्य बर्तनों में रेत भरकर सिलेंडर पर डाली और आग को बुझा दिया। उस दिन एक बच्चे से अपनी शरारत से सभी को संकट से बचने की राह दिखाई और आग बुझाने के लिए प्रेरित किया। उसे देखकर ही सभी को पता चल सका था कि समीप ही रेत का ढेर भी है।
भानु बंगवाल
No comments:
Post a Comment