हर बार की तरह इस बार भी दशहरे का त्योहार मनाया गया। पंडालों में रामलीला का मंचन किया गया। सच्चाई के पाठ पढ़े गए। झूठ और बुराइयों से दूर रहने के संकल्प लिए गए। रामलीला के पात्रों के उदाहरण दिए गए। सूपनर्खा, रावण व अन्य राक्षसों की बुराइयों से सबक लेने को कहा गया। त्योहार निपटा और जीवन की गाड़ी फिर उसी पटरी पर दौड़ने लगी, जिसमें पहले से ही दौड़ रही थी। सारे संकल्प व्यवहारिक जिंदगी में हवा होने लगे। आए दिन किसी न किसी सूपनर्खा तो कहीं रावण जैसे कृत्य के बारे में समाचार भी छपते हैं। दशहरे के साथ न तो सूपनर्खा का ही अंत हुआ और न ही रावण का। हम पुतला दहन कर भले ही खुश होते रहें, लेकिन हकीकत में तो दोनों समाज में आज भी जिंदा हैं।
ये रावण व सूपनर्खा कौन थे। यह सवाल जब भी कोई करेगा तो सभी उसे मूर्ख समझेंगे। क्योंकि बचपन में एक कहावत सुनी थी कि.. सारी रामायण पढ़ी, फिर पूछने लगे कि सीता किसका बाप। रावण के बारे में तो मैं बस इतना जानता हूं कि वह भी एक मानव था। जिसके कर्मों ने उसे दानव बना दिया। वह लंका का राजा था। ब्राह्मण था यानी कि बुद्धिमान था। विज्ञान व तकनीकी में उसका कोई सानी नहीं था। उसके पास उस जमाने के अत्याधुनिक अस्त्र थे। समुंद्र लांघने के लिए नाव थी और पोत थे। रथ के घोड़े ऐसी नस्ल के थे कि जब वे दौड़ते तो कहा जाता कि वे दौड़ते नहीं, बल्कि उड़ रहे हैं। शायद उस समय रावण के पास वायुयान भी रहा हो। सुख साधन से संपन्न लंका को इसीलिए सोने की लंका कहा जाता था। इस सबके बावजूद रावण अपने ज्ञान व विज्ञान का प्रयोग दूसरों की भलाई में नहीं करता था। वह तो अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था। राजाओं, ऋषियों व प्रजा को लूट रहा था। इसीलिए उसके अत्याचारों के कारण उसे राक्षस की संज्ञा दी गई। राक्षस का साथ देने वाला हर प्राणी भी राक्षस कहलाने लगा। तब मीडिया वाले नारद मुनि कहलाते थे। जो उच्च वर्गीय लोगों के समाचार ही नमक मिर्च लगाकर जनता तक पहुंचाते थे। आम जनता से उनका कोई लेना देना नहीं था। या तो वे राक्षसों के समाचार ही लोगों तक पहुंचाते या फिर देवताओं के। देवता यानी दैवीय शक्ति। ये वे राजा व ऋषि थे, जिनका मससद समाज की खुशहाली था। वे भी विज्ञान के ज्ञाता थे। उनका विज्ञान राक्षसों से युद्ध करने में ही लगा हुआ था। राक्षस आते और आम जनता की कमाई को लूट ले जाते। उनसे जो राजा या ऋषि संगठित होकर मुकाबला करते, तो बेचारी भोली भाली जनता यही समझती कि मायावी शक्ति से देवीय शक्ति मुकाबला कर रही है।
राम भी ऐसे प्रतापी राजा दशरथ के पुत्र थे जो ऋषि मुनियों से शिक्षा लेकर अपने इस संकल्प को पूरा करने में लगे थे कि इस धरती को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त कराएंगे। बचपन में राक्षसी ताड़का व सुबाहू जैसे लूटेरों का वध किया। जब बड़े हुए तो वनवास मिला। वनवास भले ही भरत को राजगद्दी पर बैठाने के लिए दिया गया, लेकिन राम ने अपना संकल्प वनवास के दौरान भी नहीं त्यागा। वह लोगों को राक्षसों के अत्याचारों के खिलाफ संगठित करते हुए एक गांव से दूसरे गांव तक जाते। लोगों में भी साहस का संचार होने लगा और वे भी राक्षसों का मुकाबला करने को तैयार रहने लगे। तब बंदर उस जाति के लोगों को कहा जाता था, जो जंगलों में रहती थी और बेहद पिछड़ी हुई थी। ऐसे लोगों की मदद से ही गुरिल्ला वार लड़कर राम ने खर व दूषण को जमीन चटा दी। खर व दूषण से लड़ने वे उनके गढ़ में नहीं गए, बल्कि उनके हमले का इंतजार करते रहे। जब वे फौज लेकर आए तो चारों तरफ से राम के साथ ही ग्रामीणों ने घेरकर उन्हें मार डाला। यानी लोग संगठित हो रहे थे और राम का युद्ध में साथ दे रहे थे।
शक्तिशाली रावण की बहन सूपनर्खा जो गुणों से राक्षसी गुण वाली थी। शारीरिक बनानट व नैन नक्श से वह अत्यंत सुंदरी कहलाती थी। दुनियां के सबसे बड़े लूटेरे की बहन का कोई कहना टाल दे, यह मजाल तब शायद किसी की नहीं थी। जब वह राम व लक्षमण को देखती है और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती है। उसे यह नहीं पता था कि वे उसके प्रस्ताव को ठुकरा देंगे। पहले वह अनुनय विनय करती है। फिर उन्हें अपने भाई रावण की ताकत का भय दिखाती है। जब यहां से भी काम नहीं चलता तो वह सीता को मारने का प्रयास करती है। इसी छीना झपटी में लक्ष्मण उसे धक्के देकर अपनी कुटिया से दूर खदेड़ देता है। दुनियां के सबसे ताकतवर राजा रावण की बहन की कोई बात नहीं माने और उल्टे उसे बेईजत्त होकर लौटना पड़े। यही तो है सूपनर्खा की नाक कटना। इस बेईजत्ती का बदला रावण सीता का अपहरण करके लेता है। इसके लिए वह मारीच का सहारा लेता है। मारीच उस जमाने का ऐसा कलाकार था, जो हर किसी की आवाज निकालने में माहीर था।
राम की कुटिया में मारीज एक साधु के वेश में जाता है। जब सीता उसे भोजन पसोसती है और बैठने को कहती है को साधु वेशधारी मारीच उनके बिछाए गए आसन में बैठने से मना करता है। वह अपनी पोटली से हिरन की खाल निकालता है, जिसमें सोना जड़ा होता है। उसे जमीन पर बिछाकर मारीच बैठता है। साथ ही वह बताता है कि आगे जंगल में ऐसे हिरन हैं, जिनकी खाल में सोना जड़ा होता है। वह कहता है कि उसे मारने वाले को बेहतर धावक होना चाहिए, क्योंकि ऐसा हिरन बहुत तेज गति से दौड़ता है।
कहते हैं कि जिसकी आंखों में लालच आया, तो समझो वह विपत्ती में पड़ा। सीता को भी हिरन की खाल देखकर लालच आया। वह राम को हिरन लाने के लिए मारीच के साथ जाने को कहती है। मारीच बताता है कि उसने ऐसे हिरन रास्ते में कुछ ही समय पहले देखे थे। सीता के अनुरोध पर राम मारीच के साथ धनुष लेकर हिरन को लेने चल पड़ते हैं। जब मारीच को पता चलता है कि वे इतनी दूर पहुंच गए जहां से पूरी ताकत से चिल्लाने के बाद भी राम की कुटिया तक उनकी आवाज नहीं जाएगी। तब वह आश्वस्त होकर अपने थेले से लाउडस्पीकर की तरह का यंत्र निकालता है। साथ ही दौड़ लगा देता है। इस यंत्र से वह राम की आवाज में विलाप करने लगता है और चिल्लाता है, भैया लक्ष्मण मुझे बचाओ। राम भी चिल्ला रहे कि यह धोखा है धोखे में मत आना, लेकिन उनकी आवाज लक्ष्मण व सीता तक नहीं पहुंचती। वहीं मारीच लगातार यंत्र के सहारे अपनी आवाज पहुंचाता है। राम मारीच को पकड़ने के लिए पूरी ताकत से दौड़ते हैं। मारीच भी हिरन से तेज कुल्लाचे भरकर दौड़ने लगता है। यही तो है हिरन का रूप, जो मारीच ने धरा था। मारीच रुपी हिरन को मारने में ही तब राम ने भलाई समझी। तब तक वह यंत्र को तोड़ चुका था और राम इतनी दूर पहुंच गए थे कि कुटिया तक जल्द वापस लौटना भी संभव नहीं था। फिर वही कहानी। सीता लक्ष्मण को मदद को भेजती है। अकेली सीता को रावण उठाकर ले जाता है।
ये तो थी त्रेता युग की कहानी। आज देखें तो समाज में सूपनर्खाओं की कमी नहीं है। कई किस्से तो ऐसे हैं कि सूपनर्खा की तरह महिलाएं यह जानती हैं कि इस पुरुष की शादी हो रखी है, फिर भी वे उसे ही अपना जीवन साथी बनाने में तुली रहती हैं। पत्नी से तलाक करवाती हैं। यदि कोई राम व लक्ष्मण की तरह मना कर दे, तो झट कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। साल दो साल लिव इन रिलेशन में (या कुछ और कह लो) साथ बिताने के बाद जब मन की नहीं हुई तो लगा दिए आरोप। सब कुछ जानबूझकर हो रहे हैं ऐसे अपराध। वहीं रावण की भी कमी नहीं है। अबला व लाचार नारी के अपहरण की घटनाएं हर दिन अखबारों की सुर्खियां रहती हैं। कल्पना करो कि यदि तब आज की तरह न्यायालय होते तो शायद राम व लक्ष्मण भी सूपनर्खा की बेईजत्ती के मामले में जेल की सलाखों के पीछे रहते। रावण ने तो अपहरण के बाद भी सीता से कोई बदसलूकी नहीं की। उसके भी कुछ सिद्धांत थे। अब तो समाज में जो रावण व सूपनर्खा पनप रहे हैं, ये उस जमाने के रावण व सूपनर्खा से ज्यादा घातक हैं। उनसे बचने के लिए समाज में एक नई क्रांति की जरूरत है।
भानु बंगवाल
ये रावण व सूपनर्खा कौन थे। यह सवाल जब भी कोई करेगा तो सभी उसे मूर्ख समझेंगे। क्योंकि बचपन में एक कहावत सुनी थी कि.. सारी रामायण पढ़ी, फिर पूछने लगे कि सीता किसका बाप। रावण के बारे में तो मैं बस इतना जानता हूं कि वह भी एक मानव था। जिसके कर्मों ने उसे दानव बना दिया। वह लंका का राजा था। ब्राह्मण था यानी कि बुद्धिमान था। विज्ञान व तकनीकी में उसका कोई सानी नहीं था। उसके पास उस जमाने के अत्याधुनिक अस्त्र थे। समुंद्र लांघने के लिए नाव थी और पोत थे। रथ के घोड़े ऐसी नस्ल के थे कि जब वे दौड़ते तो कहा जाता कि वे दौड़ते नहीं, बल्कि उड़ रहे हैं। शायद उस समय रावण के पास वायुयान भी रहा हो। सुख साधन से संपन्न लंका को इसीलिए सोने की लंका कहा जाता था। इस सबके बावजूद रावण अपने ज्ञान व विज्ञान का प्रयोग दूसरों की भलाई में नहीं करता था। वह तो अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था। राजाओं, ऋषियों व प्रजा को लूट रहा था। इसीलिए उसके अत्याचारों के कारण उसे राक्षस की संज्ञा दी गई। राक्षस का साथ देने वाला हर प्राणी भी राक्षस कहलाने लगा। तब मीडिया वाले नारद मुनि कहलाते थे। जो उच्च वर्गीय लोगों के समाचार ही नमक मिर्च लगाकर जनता तक पहुंचाते थे। आम जनता से उनका कोई लेना देना नहीं था। या तो वे राक्षसों के समाचार ही लोगों तक पहुंचाते या फिर देवताओं के। देवता यानी दैवीय शक्ति। ये वे राजा व ऋषि थे, जिनका मससद समाज की खुशहाली था। वे भी विज्ञान के ज्ञाता थे। उनका विज्ञान राक्षसों से युद्ध करने में ही लगा हुआ था। राक्षस आते और आम जनता की कमाई को लूट ले जाते। उनसे जो राजा या ऋषि संगठित होकर मुकाबला करते, तो बेचारी भोली भाली जनता यही समझती कि मायावी शक्ति से देवीय शक्ति मुकाबला कर रही है।
राम भी ऐसे प्रतापी राजा दशरथ के पुत्र थे जो ऋषि मुनियों से शिक्षा लेकर अपने इस संकल्प को पूरा करने में लगे थे कि इस धरती को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त कराएंगे। बचपन में राक्षसी ताड़का व सुबाहू जैसे लूटेरों का वध किया। जब बड़े हुए तो वनवास मिला। वनवास भले ही भरत को राजगद्दी पर बैठाने के लिए दिया गया, लेकिन राम ने अपना संकल्प वनवास के दौरान भी नहीं त्यागा। वह लोगों को राक्षसों के अत्याचारों के खिलाफ संगठित करते हुए एक गांव से दूसरे गांव तक जाते। लोगों में भी साहस का संचार होने लगा और वे भी राक्षसों का मुकाबला करने को तैयार रहने लगे। तब बंदर उस जाति के लोगों को कहा जाता था, जो जंगलों में रहती थी और बेहद पिछड़ी हुई थी। ऐसे लोगों की मदद से ही गुरिल्ला वार लड़कर राम ने खर व दूषण को जमीन चटा दी। खर व दूषण से लड़ने वे उनके गढ़ में नहीं गए, बल्कि उनके हमले का इंतजार करते रहे। जब वे फौज लेकर आए तो चारों तरफ से राम के साथ ही ग्रामीणों ने घेरकर उन्हें मार डाला। यानी लोग संगठित हो रहे थे और राम का युद्ध में साथ दे रहे थे।
शक्तिशाली रावण की बहन सूपनर्खा जो गुणों से राक्षसी गुण वाली थी। शारीरिक बनानट व नैन नक्श से वह अत्यंत सुंदरी कहलाती थी। दुनियां के सबसे बड़े लूटेरे की बहन का कोई कहना टाल दे, यह मजाल तब शायद किसी की नहीं थी। जब वह राम व लक्षमण को देखती है और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती है। उसे यह नहीं पता था कि वे उसके प्रस्ताव को ठुकरा देंगे। पहले वह अनुनय विनय करती है। फिर उन्हें अपने भाई रावण की ताकत का भय दिखाती है। जब यहां से भी काम नहीं चलता तो वह सीता को मारने का प्रयास करती है। इसी छीना झपटी में लक्ष्मण उसे धक्के देकर अपनी कुटिया से दूर खदेड़ देता है। दुनियां के सबसे ताकतवर राजा रावण की बहन की कोई बात नहीं माने और उल्टे उसे बेईजत्त होकर लौटना पड़े। यही तो है सूपनर्खा की नाक कटना। इस बेईजत्ती का बदला रावण सीता का अपहरण करके लेता है। इसके लिए वह मारीच का सहारा लेता है। मारीच उस जमाने का ऐसा कलाकार था, जो हर किसी की आवाज निकालने में माहीर था।
राम की कुटिया में मारीज एक साधु के वेश में जाता है। जब सीता उसे भोजन पसोसती है और बैठने को कहती है को साधु वेशधारी मारीच उनके बिछाए गए आसन में बैठने से मना करता है। वह अपनी पोटली से हिरन की खाल निकालता है, जिसमें सोना जड़ा होता है। उसे जमीन पर बिछाकर मारीच बैठता है। साथ ही वह बताता है कि आगे जंगल में ऐसे हिरन हैं, जिनकी खाल में सोना जड़ा होता है। वह कहता है कि उसे मारने वाले को बेहतर धावक होना चाहिए, क्योंकि ऐसा हिरन बहुत तेज गति से दौड़ता है।
कहते हैं कि जिसकी आंखों में लालच आया, तो समझो वह विपत्ती में पड़ा। सीता को भी हिरन की खाल देखकर लालच आया। वह राम को हिरन लाने के लिए मारीच के साथ जाने को कहती है। मारीच बताता है कि उसने ऐसे हिरन रास्ते में कुछ ही समय पहले देखे थे। सीता के अनुरोध पर राम मारीच के साथ धनुष लेकर हिरन को लेने चल पड़ते हैं। जब मारीच को पता चलता है कि वे इतनी दूर पहुंच गए जहां से पूरी ताकत से चिल्लाने के बाद भी राम की कुटिया तक उनकी आवाज नहीं जाएगी। तब वह आश्वस्त होकर अपने थेले से लाउडस्पीकर की तरह का यंत्र निकालता है। साथ ही दौड़ लगा देता है। इस यंत्र से वह राम की आवाज में विलाप करने लगता है और चिल्लाता है, भैया लक्ष्मण मुझे बचाओ। राम भी चिल्ला रहे कि यह धोखा है धोखे में मत आना, लेकिन उनकी आवाज लक्ष्मण व सीता तक नहीं पहुंचती। वहीं मारीच लगातार यंत्र के सहारे अपनी आवाज पहुंचाता है। राम मारीच को पकड़ने के लिए पूरी ताकत से दौड़ते हैं। मारीच भी हिरन से तेज कुल्लाचे भरकर दौड़ने लगता है। यही तो है हिरन का रूप, जो मारीच ने धरा था। मारीच रुपी हिरन को मारने में ही तब राम ने भलाई समझी। तब तक वह यंत्र को तोड़ चुका था और राम इतनी दूर पहुंच गए थे कि कुटिया तक जल्द वापस लौटना भी संभव नहीं था। फिर वही कहानी। सीता लक्ष्मण को मदद को भेजती है। अकेली सीता को रावण उठाकर ले जाता है।
ये तो थी त्रेता युग की कहानी। आज देखें तो समाज में सूपनर्खाओं की कमी नहीं है। कई किस्से तो ऐसे हैं कि सूपनर्खा की तरह महिलाएं यह जानती हैं कि इस पुरुष की शादी हो रखी है, फिर भी वे उसे ही अपना जीवन साथी बनाने में तुली रहती हैं। पत्नी से तलाक करवाती हैं। यदि कोई राम व लक्ष्मण की तरह मना कर दे, तो झट कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। साल दो साल लिव इन रिलेशन में (या कुछ और कह लो) साथ बिताने के बाद जब मन की नहीं हुई तो लगा दिए आरोप। सब कुछ जानबूझकर हो रहे हैं ऐसे अपराध। वहीं रावण की भी कमी नहीं है। अबला व लाचार नारी के अपहरण की घटनाएं हर दिन अखबारों की सुर्खियां रहती हैं। कल्पना करो कि यदि तब आज की तरह न्यायालय होते तो शायद राम व लक्ष्मण भी सूपनर्खा की बेईजत्ती के मामले में जेल की सलाखों के पीछे रहते। रावण ने तो अपहरण के बाद भी सीता से कोई बदसलूकी नहीं की। उसके भी कुछ सिद्धांत थे। अब तो समाज में जो रावण व सूपनर्खा पनप रहे हैं, ये उस जमाने के रावण व सूपनर्खा से ज्यादा घातक हैं। उनसे बचने के लिए समाज में एक नई क्रांति की जरूरत है।
भानु बंगवाल
This is called Kalyuga which is full of demons and devils even in the garb and disguise of so called sadhus, babas, gurus and there may be countless ravans and surpanakhs flourshing and playing with the humanity, law and justice. All these characters of Treyta yuga, dwapar yuga or even sata yuga are remembered through rituals/celebrations as perodic festivals for fun and enjoyment and forgotten the next day. This is the truth and ground reality of today..
ReplyDeleteअब तो समाज में जो रावण व सूपनर्खा पनप रहे हैं, ये उस जमाने के रावण व सूपनर्खा से ज्यादा घातक हैं। उनसे बचने के लिए समाज में एक नई क्रांति की जरूरत है। ..सुन्दर मंथन, बंगवाल जी
ReplyDelete