Friday, 1 June 2012

बताना नहीं था, पर बता रहा हूं.....

व्यक्ति का स्वभाव यह भी है कि वह किसी दूसरे को अपने राज बताने के साथ ही यह भी कहता है कि यह बात वह सिर्फ उससे ही कह रहा है।किसी दूसरे से इसका जिक्र मत करना।दूसरी तरफ से पूरी तरह से आश्वासन मिलने के बाद ही व्यक्ति अपना राज दूसरे को बताता है। दूसरा भी कुछ समय या दिन तक पेट में बात रखता है और फिर उसे आगे बढ़ा देता है।इसीलिए तो किसी के राज ज्यादा दिन तक राज बने नहीं रहते।
दूसरों के राज अपने मन में रखना भी काफी मुश्किल भरा काम है।कई बार तो व्यक्ति दूसरों की भलाई के फेर में खुद को ही संकट में डाल देता है।खुद बुरा बनता है और दूसरा साफ बच निकलता है।वह तो दूसरे के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता, लेकिन सही बात को आगे न बताने पर उसके सामने धर्म संकट आ खड़ा होता है।कई बार तो देखा गया कि किसी दूसरे को न बताने वाली बात को बताकर ही ज्यादा लाभ मिलता है।ऐसी बातों को आगे बताकर बिगड़े काम भी बन जाते है।
बात काफी पुरानी हो गई।तब मैं करीब सत्ताइस साल का था।मुझसे बड़ी बहन का रिश्ता तय हो गया था।मैं एक समाचार पत्र में कार्यरत था।मेरा लक्ष्य परमानेंट होने का था और अपनी शादी के बारे में तब तक मैने सोचा तक नहीं था।मेरा मत था कि जब तक मैं अच्छी सेलरी लेने लायक नहीं बन जाता, तब तक शादी नहीं करुंगा।मेरा एक मित्र मुझे शादी पर जोर दे रहा था।मैने उससे कहा कि अभी मुझे कौन अपनी लड़की देगा।मुझे यह मालूम नहीं था कि मित्र मुझे टोह रहा है।उसने मुझसे पूछा कि मेरी व मेरे घरवालों की डिमांड क्या है।मैने उसे बताया  कि मेरे पिताजी आर्य समाजी विचारधारा के हैं।वह दहेज लेने व देने दोनोंे से चिढ़ते हैं।बेटियों की शादी में उन्होंने दहेज नहीं दिया और मेरी शादी में वह दहेज नहीं लेंगे।
एक दिन मित्र ने मुझे एक रिश्ता बताया।उसने बताया कि उसकी बुआ की लड़की है। जो पढ़ी-लिखी है।बुआ टीचर है और विधआ है।उसकी कीडनी खराब हो गई है।वह अपने जीते जी बेटी की शादी करना चाहती है।बेटी काफी अच्छी व सीधी है।मित्र बुआ की बेटी की फोटो भी साथ लाया था।उसने मुझे फोटो दिखाई।फोटो देखकर मैं पहली नजर में ही लड़की को पसंद कर गया।साथ ही मेरे मन में भय था कि कहीं अचानक शादी करा दी, तो कैसे परिवार चलाउंगा।
फोटो को मैने अपने घर में पिताजी, माताजी व बहनों को दिखाया। सभी को फोटो में लड़की पसंद आई।इसके बाद मित्र के पिताजी बात आगे बढ़ाने को हमारे घर भी आए।एक दिन मित्र ने बताया कि बुआ उनके घर आई है।साथ में बेटी को भी लाई है।उसे देखने हमारे घर आ जाओ।इस पर तय दिन व समय के मुताबिक मैं अपनी बड़ी बहन, जीजा व पिताजी के साथ मित्र के घर चला गया।वहां खातिरदारी में कोई कमी नहीं की गई।मित्र की बुआ मुझे काफी सीधी-साधी लगी।लड़की को दिखाया गया, लेकिन मुझे वह पसंद नहीं आई।इसका कारण यह था कि फोटो से वह बिलकुल उलट थी।उन्नीस-बीस साल की उम्र मंे वह नाबालिग लग रही थी।कद भी काफी कम था।सामने का एक दांत भी गायब था।अब मैं असमंजस की स्थिति में था कि क्या करूं या ना करूं।खैर मुझे लड़की से बात करने को कहा।कहा गया कि आपस में एक दूसरे को समझ लो।किसी इंसान को समझने में कई साल लग जाते हैं और जिससे साथ जिंदगी गुजारनी हो उसे समझने के लिए मुझे दस-पंद्रह मिनट दिए गए।कई सवाल मेरे मस्तिष्क में कौंध रहे थे।एक कमरे में दोनों को बैठा दिया गया।मेरे दिमाग में यह भी नहीं आ रहा था कि उससे क्या पूंछूं।
कमरे में चुप्पी के कारण सन्नाटा पसरा हुआ था।इसे लड़की ने ही तोड़ा।उसने सवाल किया कि आपने क्या सोचा है।मैने पूछा सोचने से क्या मतलब।उसने कहा कि अभी आपसे पूछेंगे कि लड़की पसंद आई या नहीं।फिर सगाई की डेट फिक्स होगी।साथ ही संभव है कि शादी की डेट भी फिक्स हो जाए।मैने उससे पूछा कि आप बताओ मैं क्या जवाब दूं।तूम्हें पसंद करूं या नहीं।इस पर वह रोने लगी।उसने बताया कि मेरी मां के जीवन का कोई भरोसा नहीं है।ऐसे में वह मेरी शादी करना चाहती है।मैैं शादी नहीं करना चाहती।साथ ही मां को कोई दुख भी देना नहीं चाहती।ऐसे में यदि संभव हो तो आप शादी से मना कर देना, लेकिन यह मत बताना कि मैने आपको ऐसा करने को कहा है।मैने लड़की को आश्वासन दिया कि जैसा वह चाहती है, वैसा ही करुंगा।
संक्षिप्त बातचीत समाप्त हुई।मैं इतना तो समझ गया कि वह लड़की किसी दूसरे से विवाह करना चाहती है।संकोच व डर के कारण उसने अपनी माताजी को नहीं कुछ नहीं बताया।बैठक में आने के बाद दोनों तरफ से लोग ऐसे बातें कर रहे थे जैसे रिश्ता पक्का हो गया।मित्र के परिजन व मेरे पिताजी, बड़ी बहन आदि सभी उत्साहित थे।मुझसे पूछा गया बोल अब क्या मर्जी है।लड़की तो पसंद आ गई होगी।सगाई की डेट फिक्स कर देते हैं।झेंपू प्रवृति का होने के कारण मेरे मन में साहस तक नहीं आ रहा था कि क्या करूं।मैने इतना ही कहा कि अभी जल्दबाजी न करो।एक-दो दिन तक मुझे सोचने की मोहल्लत दो।इस पर सभी को झटका लगा।मुझे सभी टोहने लगे कि लड़की पसंद नहीं आई क्या।मैने कहा कि यह बात नहीं फिर भी मुझे दो-तीन दिन का समय दे दो।इसके बाद हम घर लौट गए।
तीन दिन बीते मित्र ने मुझसे मिलकर पूछा कि मैं अपना निर्णय सुनाऊँ।विवाह की तैयारी करनी है।मैं उसे टाल रहा था।टालते-टालते एक सप्ताह से अधिक का समय बीत गया।फिर एक दिन मित्र मेरे पीछे ही पड़ गया।फिर मैने मित्र को सिर्फ इतना ही कहा कि लड़की से पता कर लो वह कहींं दूसरी जगह शादी करना चाहती है।इस पर मित्र चिढ़ गया।वह मुझे खरी-खोटी सुनाने लगा।मैने उसे काफी समझाया, लेकिन वह अपनी भड़ास मुझपर उतारकर चला गया।फिर उसने मुझसे कभी इस रिश्ते का जिक्र नहीं किया।इस घटना के छह माह बीत गए।एक दिन मैने मित्र से पूछा कि बुआ की बेटी की शादी का क्या हुआ।इस पर मित्र ने बताया कि तू ठीक ही था।बुआ की बेटी किसी दूसरे लड़के को चाहती थी।उससे जब सख्ती से पूछा गया तो उसने सारा राज उगल दिया।उसका उसी लड़के से विवाह भी कर दिया गया है।आज दोनों खुश हैं।
भानु बंगवाल  
                 

No comments:

Post a Comment