Friday, 22 June 2012

पहले छिपाते थे, अब बताते हैं...

सुबह जैसे ही समाचार पत्र पढ़ने लगा। एक समाचार पर मेरी निगाह पड़ी कि पहली टेस्ट ट्यूब बेबी की मां लेस्ली ब्राउन का ब्रिटेन में निधन हो गया। इस समाचार ने मुझे करीब दस साल पुरानी बात याद दिला दी। ब्राउन ने 1978 में टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था, लेकिन मेरे शहर देहरादून में वर्ष 2001 में जून माह में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी जन्मा था। देहरादून की राजपुर रोड स्थित सेनी आइवीएफ एंड फर्टीलिटी रिसर्च सेंटर में इस बच्चे ने 12 जून 2001 को जन्म लिया था। इसके बाद एक साल के भीतर इसी सेंटर में दस ऐसे दस बच्चों ने जन्म लिया। दावा किया गया कि उक्त टेस्ट ट्यूब बेबी उत्तराखंड का पहला है। इस पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के बारे में समाचार पत्रों में खूब लिखा गया, लेकिन बच्चे के माता-पिता की पहचान गायब रखी गई। इसका कारण यह था कि टेस्ट ट्यूब बेबी के माता-पिता खुद को टेस्ट ट्यूब बेबी के माता-पिता कहलाने से शर्म महसूस कर रहे थे।
पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बालक था। बच्चा जब एक साल का होने को था, तब मुझे उस पर स्टोरी करने को कहा गया। स्टोरी बच्चे के जन्मदिन वाले दिन प्रकाशित होनी थी। जन्मदिन से कुछ दिन पहले तय कार्यक्रम के मुताबिक मैं रिसर्च सेंटर पहुंचा। वहां बच्चे के माता-पिता पहले से मौजूद थे। वे मेरे सामने नहीं आए। सेंटर के एक कमरे में उन्हें बैठा दिया गया। बीच में पर्दा लगा दिया गया। मुझे पर्दे के पीछे बैठे दंपती से बात करनी थी। मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि बात कहां से शुरू की जाए। क्या पूछूं और स्टोरी का एंगिल क्या रहेगा। सबसे पहले मैने बातचीत शुरू करते हुए कहा नमस्कार- आपको मेरी बात समझ आ रही है। पर्दे के भीतर से भी हां में जवाब आया। आवाज सुनकर मैने अंदाजा लगाया कि बच्चे की माता ने जवाब दिया। जो शायद किसी देहात की रहने वाली लग रही थी। मैने कहा कि आपका बेटा एक साल का होने को है, इसके बारे में कुछ बताओ। जवाब आया आप जो पूछोगे, मैं बता दूंगी। मेरे समझ मैं नहीं आया कि क्यू पूंछूं। मैने कहा कि इस बच्चे का व्यवहार अन्य बच्चों से क्या भिन्न है। इस पर जवाब आया कि जैसे अन्य बच्चे होते हैं, ऐसा ही यह है। मैने खाने के बारे में पूछा, तो बताया बया जो सब बच्चे खाते हैं, वही इसे भी खिलाया जाता है।
मैं अंधेरे में तीर मार रहा था और न्यूज एंगिल नहीं मिल रहा था। तभी मुझे याद आया कि मेरा बड़ा बेटा जब छह माह का था, तो हम पत्नी के मौसा के घर गए। बच्चा घुटनों चलता था। मौसा ने हमसे कहा कि इसे फर्श में छोड़ दो। घुटनों चलने वाले बच्चे उन्हें काफी अच्छे लगते हैं। यह याद आते ही मैने बेबी के माता-पिता से सवाल किया कि जब बच्चा घुटनों चला तो कैसा लगा। महिला का जवाब आया कि यह घुटनो नहीं चला। मैने पूछा फिर कैसे चला। उसने बताया कि यह बिस्तर में ही लोटपोट करता था। ग्याहरवें महीने का जब हुआ तो सीधा खड़ा हुआ और चलने लगा। बस यहीं से मुझे न्यूज एंगिल मिला और मैने समाचार लिखा कि-घुटनों नहीं चला पहला टेस्ट ट्यूब बेबी।
जहां ब्राउन ने अपनी पहचान नहीं छिपाई, वहीं हमारे देश में विदेश से कई साल बाद टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म होने पर माता-पिता पहचान छिपाते रहे। फिर धीरे-धीरे यह बात आम होने लगी। बच्चे के माता-पिता का पर्दे से पीछे से इंटरव्यू लेने की घटना के कुछ साल बाद एक ही दिन करीब तीन लोग टेस्ट ट्यूब बेबी के पिता बने। इनमें से दो को मैं पहचानता था। एक देहरादून में जाने माने इंस्टीट्यूट का स्वामी था और दूसरा एक नेता। दोनो ने ही मुझे फोने से टेस्ट ट्यूब बेबी का पिता बनने की जानकारी दी और अनुरोध किया कि यह समाचार प्रकाशित किया जाए। सचमुच समय के साथ व्यक्ति की सोच में कितना परिवर्तन आ जाता है। पहले संकोचवश जिस बात को छिपाया जाता था। अब उसी को फोन से बताया   जाता है।
भानु बंगवाल         

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