जिसका बचपन जहां बीतता है, व्यक्ति उस स्थान को अक्सर याद करता रहता है। बचपन के साथी भी अक्सर याद आते हैं। बड़े होने पर कई का तो यह भी नहीं पता होता कि वह कहां है। यही नहीं, व्यक्ति की तरह जानवर में भी पुरानी बातें याद रखने की प्रवृति होती है। इनमें कुत्ता ऐसा जीव है, जो कई साल तक व्यक्ति को याद रखता है। कई साल बाद सामने पड़ने पर तुरंत पहचान जाता है।
कुत्ते की आदत भी इंसान की तरह ही होती है। उसका बचपन भी शैतानी, उछलकूद से भरा होता है। वहीं बुढ़ापा भी बीमार व बूढ़े व्यक्ति की तरह ही कटता है। हालांकि कुत्ते को घर की रखवाली के लिए पाला जाता है, लेकिन सभी कुत्तों की आदत व प्रवृत्ति भिन्न होती है। बचपन से ही मुझे कुत्ता पालने का शौक था। पिताजी कुत्ता पालने के नाम पर इसलिए चिढ़ते थे कि उसकी सुबह से लेकर शाम तक कौन नियमित ड्यूटी बजाएगा। समय से खाना खिलाना, घूमाना आदि भी कोई आसान काम नहीं है। फिर भी एक कुत्ता मुझे रास्ते में मिला, उसे घर लाया, लेकिन वह कभी भौंका तक नहीं। इस पर उस कुत्ते को मैने महज एक क्रिकेट की बॉल के बदले एक व्यक्ति को दे दिया था। इसका जिक्र मैं पहले भी एक ब्लाग में कर चुका हूं। महंगा कुत्ता खऱीदने की मैरी हिम्मत नहीं थी और आवारा देसी कुत्ते मैं पालना नहीं चाहता था। ऐसे में जिसके पास भी कुत्ता देखता, उसे यही कहता एक कुत्ता मुझे भी कहीं से दिला दो।
वर्ष 1978 की बात है। देहरादून में राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशिया की देखभाल के लिए दिल्ली से राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की रोटेशन के आधार पर पोस्टिंग हुआ करती थी। इन अंगरक्षक के मुखिया को दफेदार कहते हैं। राष्ट्रपित आशिया परिसर में काफी सुंदर कुत्ते पाले हुए थे। मुझे दफेदार काफी अच्छा मानता था। मैने उससे एक कुत्ता मांगा तो उसने मना नहीं किया। भोटिया प्रजाति से कुछ छोटा, सफेद रंग व छह ईंची बाल वाला कुत्ता रस्सी से बांधकर वह मेरे घर ले आया। कुत्ते को मैने पुचकारा तो वह दुम हिलाने लगा। मैने उसे कुछएक दिन घर में बांधा। समय पर खाना खिलाया तो वह घर के सभी सदस्यों से घुलमिल गया। इस कुत्ते का नाम जैकी रखा गया। धीरे-धीरे मैने जैकी को बांधना छोड़ दिया। तब जैकी की उम्र करीब तीन साल रही होगी। उसकी शैतीनी भी अन्य कुत्तों की तरह थी, लेकिन कई बार वह गंभीर नजर आता था। हरएक के साथ वह नहीं खेलता था। कभी-कभी उसे अपना बचपन याद आता तो वह घर से गायब हो जाता। एक बार मैने उसका पीछा किया तो देखा कि वह घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित राष्ट्रपति आशिया पहुंच गया। वहां वह कुछ घंटे या फिर एक दो दिन बिताने के बाद वापस घर लौट आता था।
जैकी की आदतें भी कुछ अजीब थी। लंबे बाल होने के कारण उसे गर्मी भी कुछ अधिक लगती थी। ऐसे में वह आलसी भी था। जब वह सो रहा होता और कोई अजनबी घर में आ जाता, तो वह एक आंख उठाकर देखता। आलस बढ़ता तो चुपके से आंख बंद कर लेता, मानो उसने किसी को देखा ही नहीं। जब अजनबी वापस जाने लगता, तो उसे अपनी ड्यूटी याद आती। उसका स्वाभिमान जागता और वह रास्ता रोककर उस पर भौंकने लगता।
मेरी याददाश्त कहती है कि जैसी ने शायद ही किसी को काटा होगा। मां जब गाय के लिए चारा लेने जाती, तो वह भी उसके साथ जंगल तक जाता। एक बार मां घासफूंस काटने को आगे बढ़ रही थी, तो जैसी ने उसका रास्ता रोक दिया। वह भौंकने लगा। उसके खुंखार रूप को देखकर मां भी डर गई। उसे डांटने का भी असर नहीं हो रहा था। मां आगे बढ़ी, तो देखा जिस बेल से वह पत्ते काटने आगे बढ़ी उस पर सांप लिपटा हुआ था। इस दिन से मां भी जैकी को ज्यादा ही लाड करने लगी। समय बीत रहा था। मैं बड़ा हो रहा था और जैसी बूढ़ा। उसका आत्मविश्वास जवाब देने लगा था। भागदौड़ की बजाय वह सधे कदमों से चलता। नजर कमजोर होने के कारण कई बार वह स्टूल व कुर्सी आदि से टकरा भी जाता। जब उसे खाना देते तो वह प्लेट के पास आता, उसमें झांकता और कई बार खाए बगैर ही वापस कुछ दूर जाकर बैठ जाता। कभी एकआध निवाला ही लपकता। आसपड़ोस के कुत्ते या फिर कौवे, चिड़िया उसकी प्लेट पर मुंह या चोंच मारते तो वह चुपचाप देखता रहता। खाना देखकर अक्सर वापस भागने वाला कुत्ता भी यही मैने पहली बार देखा। यही नहीं वह सप्ताह में एक दिन भूखा भी रहने लगा था। उसकी वह आदत मैं अब बच्चों या बूढ़ों में देखता हूं। बच्चे खाने में नखरे करते हैं, वहीं बढ़े थाली से एक आध कोर खाने के बाद पूरा खाना छोड़ देते हैं। बूढ़ों के मुंह में न तो स्वाद ही बचा रहता और न ही उनकी खाने की इच्छा रहती है। खाने पर जोर डालने पर वे गुस्सा होने लगते हैं। एक दिन जैकी घर से गायब हो गया। कई दिन तक वह वापस नहीं आया। मैने उसे राष्ट्रपति आशिया भी में तलाश किया, लेकिन उसका पता नहीं चला। उसके गायब होने के करीब बीस बाद एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि उसने जैकी को पास के खाले में मरा देखा। यह सुनकर मैने गेंती, फावड़ा उठाया और जैकी को समाधी देने घर से निकल पड़ा। (जारी)
भानु बंगवाल
कुत्ते की आदत भी इंसान की तरह ही होती है। उसका बचपन भी शैतानी, उछलकूद से भरा होता है। वहीं बुढ़ापा भी बीमार व बूढ़े व्यक्ति की तरह ही कटता है। हालांकि कुत्ते को घर की रखवाली के लिए पाला जाता है, लेकिन सभी कुत्तों की आदत व प्रवृत्ति भिन्न होती है। बचपन से ही मुझे कुत्ता पालने का शौक था। पिताजी कुत्ता पालने के नाम पर इसलिए चिढ़ते थे कि उसकी सुबह से लेकर शाम तक कौन नियमित ड्यूटी बजाएगा। समय से खाना खिलाना, घूमाना आदि भी कोई आसान काम नहीं है। फिर भी एक कुत्ता मुझे रास्ते में मिला, उसे घर लाया, लेकिन वह कभी भौंका तक नहीं। इस पर उस कुत्ते को मैने महज एक क्रिकेट की बॉल के बदले एक व्यक्ति को दे दिया था। इसका जिक्र मैं पहले भी एक ब्लाग में कर चुका हूं। महंगा कुत्ता खऱीदने की मैरी हिम्मत नहीं थी और आवारा देसी कुत्ते मैं पालना नहीं चाहता था। ऐसे में जिसके पास भी कुत्ता देखता, उसे यही कहता एक कुत्ता मुझे भी कहीं से दिला दो।
वर्ष 1978 की बात है। देहरादून में राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशिया की देखभाल के लिए दिल्ली से राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की रोटेशन के आधार पर पोस्टिंग हुआ करती थी। इन अंगरक्षक के मुखिया को दफेदार कहते हैं। राष्ट्रपित आशिया परिसर में काफी सुंदर कुत्ते पाले हुए थे। मुझे दफेदार काफी अच्छा मानता था। मैने उससे एक कुत्ता मांगा तो उसने मना नहीं किया। भोटिया प्रजाति से कुछ छोटा, सफेद रंग व छह ईंची बाल वाला कुत्ता रस्सी से बांधकर वह मेरे घर ले आया। कुत्ते को मैने पुचकारा तो वह दुम हिलाने लगा। मैने उसे कुछएक दिन घर में बांधा। समय पर खाना खिलाया तो वह घर के सभी सदस्यों से घुलमिल गया। इस कुत्ते का नाम जैकी रखा गया। धीरे-धीरे मैने जैकी को बांधना छोड़ दिया। तब जैकी की उम्र करीब तीन साल रही होगी। उसकी शैतीनी भी अन्य कुत्तों की तरह थी, लेकिन कई बार वह गंभीर नजर आता था। हरएक के साथ वह नहीं खेलता था। कभी-कभी उसे अपना बचपन याद आता तो वह घर से गायब हो जाता। एक बार मैने उसका पीछा किया तो देखा कि वह घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित राष्ट्रपति आशिया पहुंच गया। वहां वह कुछ घंटे या फिर एक दो दिन बिताने के बाद वापस घर लौट आता था।
जैकी की आदतें भी कुछ अजीब थी। लंबे बाल होने के कारण उसे गर्मी भी कुछ अधिक लगती थी। ऐसे में वह आलसी भी था। जब वह सो रहा होता और कोई अजनबी घर में आ जाता, तो वह एक आंख उठाकर देखता। आलस बढ़ता तो चुपके से आंख बंद कर लेता, मानो उसने किसी को देखा ही नहीं। जब अजनबी वापस जाने लगता, तो उसे अपनी ड्यूटी याद आती। उसका स्वाभिमान जागता और वह रास्ता रोककर उस पर भौंकने लगता।
मेरी याददाश्त कहती है कि जैसी ने शायद ही किसी को काटा होगा। मां जब गाय के लिए चारा लेने जाती, तो वह भी उसके साथ जंगल तक जाता। एक बार मां घासफूंस काटने को आगे बढ़ रही थी, तो जैसी ने उसका रास्ता रोक दिया। वह भौंकने लगा। उसके खुंखार रूप को देखकर मां भी डर गई। उसे डांटने का भी असर नहीं हो रहा था। मां आगे बढ़ी, तो देखा जिस बेल से वह पत्ते काटने आगे बढ़ी उस पर सांप लिपटा हुआ था। इस दिन से मां भी जैकी को ज्यादा ही लाड करने लगी। समय बीत रहा था। मैं बड़ा हो रहा था और जैसी बूढ़ा। उसका आत्मविश्वास जवाब देने लगा था। भागदौड़ की बजाय वह सधे कदमों से चलता। नजर कमजोर होने के कारण कई बार वह स्टूल व कुर्सी आदि से टकरा भी जाता। जब उसे खाना देते तो वह प्लेट के पास आता, उसमें झांकता और कई बार खाए बगैर ही वापस कुछ दूर जाकर बैठ जाता। कभी एकआध निवाला ही लपकता। आसपड़ोस के कुत्ते या फिर कौवे, चिड़िया उसकी प्लेट पर मुंह या चोंच मारते तो वह चुपचाप देखता रहता। खाना देखकर अक्सर वापस भागने वाला कुत्ता भी यही मैने पहली बार देखा। यही नहीं वह सप्ताह में एक दिन भूखा भी रहने लगा था। उसकी वह आदत मैं अब बच्चों या बूढ़ों में देखता हूं। बच्चे खाने में नखरे करते हैं, वहीं बढ़े थाली से एक आध कोर खाने के बाद पूरा खाना छोड़ देते हैं। बूढ़ों के मुंह में न तो स्वाद ही बचा रहता और न ही उनकी खाने की इच्छा रहती है। खाने पर जोर डालने पर वे गुस्सा होने लगते हैं। एक दिन जैकी घर से गायब हो गया। कई दिन तक वह वापस नहीं आया। मैने उसे राष्ट्रपति आशिया भी में तलाश किया, लेकिन उसका पता नहीं चला। उसके गायब होने के करीब बीस बाद एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि उसने जैकी को पास के खाले में मरा देखा। यह सुनकर मैने गेंती, फावड़ा उठाया और जैकी को समाधी देने घर से निकल पड़ा। (जारी)
भानु बंगवाल
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