Wednesday, 1 August 2012

बहने दे रही रक्षा की गारंटी.....

राखी का त्योहार। बाजार में कई दिनों से छाने लगी रंग बिरंगी राखियां। भाई की कलाई में राखी बांधती बहनें। कोई बहन सस्ती राखी से काम चला लेती और कोई चांदी व सोने से बनी महंगी राखी अपने भाई की कलाई में बांधती है। तब भाई लेता है बहन की रक्षा का संकल्प। वो भाई भी संकल्प लेते हैं, जिन्हें खुद को ही रक्षा की जरूरत होती है। अब सवाल यह है कि भाई ही बहन की रक्षा का संकल्प क्यों लेता है। लड़की को फिर कमजोर क्यों समझा जाता है। बहन भाई की रक्षा का संकल्प क्यों नहीं लेती। कुछ इस तरह के सवाल मेरे मन में उठते हैं। महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं, तो ऐसे में वे अपने से छोटे या फिर बड़े व कमजोर भाई की रक्षा का संकल्प क्यों नहीं लेती। कई बार तो वह बगैर संकल्प लिए ही रक्षा करके दिखाती है, फिर इस दिन संकल्प क्यों नहीं लेती। मेरी नजर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां मुसीबत की घड़ी में बड़ी बहन ने अपने छोटे भाई, बहन व परिवार का जिम्मा उठाया। इसके बाद भी वही बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधती है और रक्षा की उम्मीद करती है। कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं कि जो बहन अपने भाई से रक्षा के संकल्प की उम्मीद करती हैं, इसी दिन वो जंगल में जाकर वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेती हैं।
उत्तराखंड़ के कई पर्वतीय क्षेत्र में कुछ ऐसी ही परंपरा रही है। वहां के लोगों के पास नदी, पहाड़ और जंगल है। तभी तो वहां के त्योहर भी इसके इर्द-गिर्द ही नजर आते हैं। यहां चिपको आंदोलन कर महिलाएं वृक्षों को बचाने आगे आती हैं तो राखी के दिन जंगल में जाकर पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी जनपद के कई गांव ऐसे हैं, जहां महिलाएं पेड़ो पर रक्षासूत्र बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेती हैं। पेड़ जब प्राणवायु देकर हमारी रक्षा करते हैं तो हम क्यों नहीं उसकी रक्षा का संकल्प लेते। शायद यही वजह है कि महिलाएं इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए रक्षाबंधन को अलग अंदाज से मनाती हैं। ऐसा भी नहीं कि प्रकृति प्रेम सिर्फ एक दिन का हो। कई गांव तो ऐसे हैं। जहां शादी होने पर नए जोड़े से फलदार वृक्षो की प्रजाति का पौधारोपण कराया जाता है। ऐसे पौध की देखभाल का जिम्मा भी नए जोड़े पर होता है। सच ही तो है यदि पेड़ बचे रहेंगे तो दुनियां में जीवन बचा रहेगा। सही मायने में इंसान की रक्षा इन पेड़ों की रक्षा से ही हो सकेगी। वहीं, राखी के दिन पंडितजी यजमान को राखी बांधकर अपनी रक्षा की उम्मीद करते हैं। यानी हरएक अपनी रक्षा की गारंटी चाहता है, लेकिन दूसरे की रक्षा का खुद प्रयास नहीं करता। ऐसा प्रयास तो सिर्फ पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधने वाली महिलाएं ही कर रही हैं। पेड़ों को बचाकर वे समाज की रक्षा की गारंटी दे रही हैं। यदि उनसे प्रेरणा लेकर हर व्यक्ति एक एक पेड़ की रक्षा का संकल्प लेगा, तो सही मायने में भविष्य की रक्षा हो सकेगी। तभी रक्षाबंधन का त्योहार भी सार्थक होगा।
भानु बंगवाल       

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