Tuesday, 7 August 2012

रुंगे में चाहिए एक अदद वोट...

कमाल के हैं भई रुंगा मांगने वाले। हो भी क्यों नहीं। अब तो पहले की तरह रुंगा मिलता नहीं। अब तो बड़ी चतुराई से ही रुंगा वसूला जाता है। कोई मांग कर लेता है, तो कोई धोखे से। अब आप पूछोगे कि ये आखिर रुंगा क्या है। बचपन से ही मैं रुंगा मांगते हुए लोगों को देखता आया हूं। जब एक पाव दही खरीदते थे, तब दही वाले से रुंगा जरूर मांगते थे। इसी तरह दूध, सरसों का तेल आदि कोई भी सामग्री खरीदने पर विक्रेता वजन व माप करने के बाद थोड़ा सा अपनी तरफ से डाल देता है। इसी को रुंगा कहा जाता है। सब्जी खरीदी तो रुंगे में हरी मिर्च व धनिया भी दे दिया। ऐसे में ग्राहक भी विक्रेता से खुश रहता है। वो क्यों मुफ्त में बांटेगा। यह रुंगा ही ऐसी चीज है। भले ही विक्रेता कहीं न कहीं से रुंगे की लागत वसूल कर ही लेता है, पर ग्राहक तो फोकट का समझकर खुश रहता है। देहरादून में तो एक ऐसा बार है, जहां नियमित पीने वाले पूरे पैग लगाने के बाद अंत में काउंटर पर बैठे व्यक्ति से रुंगा मांगते हैं। चाहे कितने भी पैसे की दारू पी लें, लेकिन जब तक रुंगे में मिली मुफ्त की नहीं पीते, तब तक उन्हें पीने का मजा ही नहीं आता।
अब बढ़ती महंगाई में रुंगा देना भी दुकानदारों ने बंद कर दिया। सब्जी वाला हरी मिर्च व धनिया भी रुंगे पर नहीं देता। यदि देता भी है तो उस ग्राहक को, जो कई सब्जी एक साथ खरीदता है। कई विक्रेता तो रुंगा देने की बजाय ले रहे हैं। यानी सामान में ही घटतौली कर अपने पास रुंगा बचा रहे हैं। ऐसा रुंगा लेने में रसोई गैस ऐजेंसी वाले अव्वल हैं। हर सिलेंडर से एक सौ ग्राम गैस कम ही निकलती है। परेशान ग्राहक सौ ग्राम की कमी को चुपचाप सहन कर लेता है। एक कवि मित्र पहले अपनी एक कविता को सुनने का मुझसे आग्रह करते हैं। मेरे हां कहने पर जब वह सुनाने पर आते हैं तो रुंगे में दो-तीन से ज्यादा ही सुना जाते हैं।
अफसर हो या नेता सभी रुंगे पर ही तो काम कर रहे हैं। नेताजी किसी को काम दिलाते हैं, तो रुंगे में अपनी जेब भी भरना नहीं भूलते। कई रुंगा लेने के आरोप में पकड़े भी गए और जेल भी गए। ऐसे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करके अन्ना हजारे ने देशवासियों के मन में एक उम्मीद जगाई। लोकपाल बिल को लागू करने के लिए अनशन किए। यह सब उन्होंने इस देश की जनता के लिए किया। अब जनता से भी टीम अन्ना रुंगा मांगेगी। मांगे भी क्यों नहीं। जब वह जनता के लिए आंदोलन कर रही है तो क्या एक रुंगे की हकदार नहीं है। वह रुंगा है हर मतदाता का एक वोट, जिसे पाकर वे संसद में जाएंगे और देश की कायापलट कर देंगे। देखते हैं कि समय क्या करवट लेता है। लेकिन, यह भी सच है कि- ये दुनियां बड़ी जालिम है, दिल तोड़कर हंसती है।....
 भानु बंगवाल

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