Tuesday, 3 July 2012

भटकों को बेजुवान ने दिखाई राह..(बचपन के दिन-5)

हर व्यक्ति की पहचान अलग-अलग तरीके से होती है। किसी की पहचान में व्यक्ति की खुद की आदत, स्वभाव या उसका काम शामिल होता है, तो किसी की पहचान उसके बच्चों से होती है। पहचान के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। किसी को फलां का पिता या पति के नाम से जाना जाता है, तो किसी को उसके काम से जाना जाता है। मोहल्ले मैं एक महिला ज्यादा लंबी थी, तो उसके पति को लंबी महिला के पति के नाम से जाना जाता था। ज्यादातर महिलाओं के मामले में तो उनकी पहचान खुद की नहीं रहती। पहले फलां की बेटी, शादी के बाद फलां की पत्नी, बच्चे होने पर फलां की मां के नाम से ही जाना जाता है। मेरी पहचान शायद मोहल्ले में एक पत्रकार के रूप में हो, लेकिन पहले कुत्ते से ज्यादा थी। जब हमने कुत्ते पाले तो हो सकता है सामने लोग हमें नाम से पुकारते हों, लेकिन पीठ पीछे कुत्ते वाले के नाम से मुझे व भाई को जाना जाता था।
मेरे पास डोबरमैन प्रजाति का कुत्ता बुल्ली ही रह गया था। अपरिजित पर वह भौंकता तो जरूर था, लेकिन उसने अपने जीवनकाल में किसी को काटा नहीं था। बुल्ली काफी नटखट था। हर दिन शरारत उसका काम था। साथ ही वह बच्चों को काफी प्यार करता था। जब वह छोटा था और उसके साथ अन्य तीन कुतिया भी थी। खाना परोसने पर वह खाने के बर्तन ही लेकर दूर भाग जाता। पहले खुद खाता, तब जाकर अन्य का नंबर आता। जब हम खाना थाते तो हमने उसे उस दौरान खाना देने की आदत नहीं डाली। ऐसे में वह हमें खाना खाते देख चिल्लाता नहीं था। शांति से बैठकर अपने लिए खाने का इंतजार करता। बुल्ली को मैने गेट से समाचार पत्र कमरे तक लाना भी सिखाया। जब हॉकर समाचार पत्र डालता, तो मैं पेपर चिल्लाता। इसे सुनकर बुल्ली गेट तक जाता और समाचार पत्रों का बंडल उठाकर भीतर तक लाता। कई मर्तबा वह मुझे देने की बजाय बंडल को जमीन पर गिराकर उसे आगे के पैर से दबाकर बैठ जाता। काफी पुचकारने के बाद ही वह पेपर को छोड़ता। जबरदस्ती उससे कोई चीज छीनना आसान नहीं था। एक बार भाई की डे़ढ़ साल की बिटिया गुनगुन गेट से निकलकर घर से करीब सौ मीटर दूर तक सड़क में निकल गई। किसी की निगाह उस पर नहीं पड़ी। ऐसे में बुल्ली उससे आगे खड़ा हो गया और भौंककर उसे डराने लगा। डरकर वह वापस घर की तरफ भागी। यदि वह किसी दूसरे रास्ते पर जाती, तो उसके आगे बुल्ली खड़ा हो जाता। इस तरह उसे डराता हुआ वह वापस घर ले आया।
बुल्ली की एक आदत और थी कि वह हमें गमलों में पौध लगाते देखता और तब चुप रहता। जब हम पौध लगा देते तो बाद में उसे उखाड़कर दूर छिपा देता। ऐसा वह ज्यादातर कैक्टस को लगाते हुए ही ज्यादा करता। उसे शायद कैक्टस से नफरत थी। हो सकता है उसे उसके कांटे चुभे हों, ऐसे में वह कैक्टस पर भौंककर अपना विरोध भी जाहीर करता। कंटीले कैक्टस तो उसे फूटी आंख नहीं सुहाते थे। ऐसे में उसने घर में एक भी कैक्टस का पौधा रहने नहीं दिया। घर में यदि बुल्ली के रास्ते में कोई आ जाए तो एक बार वह वापस लौट जाता। फिर कुछ देर बाद दोबारा राउंड के दौरान भी उसका रास्ता क्लियर न हो और फर्श पर कोई बच्चा बैठा हो तो बुल्ली उनके ऊपर से छलांग लगाकर आगे बढ़ जाता। बुल्ली के जन्म के बाद मेरे भाई की शादी हुई, फिर बहन की और उसके बाद मेरी। जब मेरा बड़ा बेटा करीब सवा साल का था, तब जनवरी 2000 में मेरे पिताजी का निधन हो गया। छोटा बेटा तब तक हुआ नहीं था। भाई का परिवार शिमला रहता था। सुख और दुख के मौके पर घर में भीड़ जमा हो जाती है, तब भी ऐसा ही हुआ। मेरे चाचाजी के बेटे भी दिल्ली से परिवार के साथ दुख की उस घड़ी में शामिल होने देहरादून पहुंचे। अंतिम संस्कार के बाद तेहरवीं पर आएंगे कहकर वे वापस दिल्ली चले गए। एक सप्ताह बाद चाचा के बड़े बेटे का परिवार दिल्ली से हमारे घर आ रहा था। देहरादून पहुंचने पर उन्हें रात हो गई। उस रात काफी तेज बारिश हो रही थी। ऑटो से वे घर के करीब पहुंच गए, लेकिन उन्हें अंधेरे में यह अंदाजा नहीं हो रहा था कि किस गली में जाएं। कड़ाके की सर्दी वाली रात को सड़क पर कोई था नहीं, जिससे घर पूछते। ऐसे में तभी हमारी भाभी की निगाह बुल्ली पर पड़ी, तो ऑटो रुकवाया। बुल्ली अक्सर घर से निकलकर मोहल्ले का एक राउंड लेकर वापस आ जाता था। भाभी ने उसे पुकारा तो वह उनसे लिपट गया। भाभी ने ऑटो वाले से कहा कि अब इस कुत्ते के पीछे चलना, यही रास्ता बताएगा। ऑटो के स्टार्ट होते ही बुल्ली ने हमारी गली की ओर दौड़ लगा दी। कुछ आगे जाकर वह रुक गया और पलटकर देखते हुए उनके आने का इंतजार करने लगा। इसी तरह वह दौड़ता, रुकता, ऑटो के आने का इंतजार करता और फिर आगे बढ़ जाता। ऐसा वह तब तक करता रहा, जब तक वे घर तक नहीं पहुंच गए। (जारी)
भानु बंगवाल

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