Saturday, 21 July 2012

बहाना बनाना, पर फंस न जाना (रविवार विशेष)

बात-बात पर बहाना बनाने वाले भी कमाल के होते हैं। उनके पास बहानों की लंबी सूची होती है। वे हर बार नया प्रयोग करते हैं और बहाना बनाने में कामयाब हो जाते हैं। वैसे तो बहाने बनाने के लिए कोई विषय निर्धारित नहीं होता। कई बार तो व्यक्ति जरूरत पड़ने पर मजबूरन बहाना बनाता है और कई की बहाना बनाने की आदत ही बन जाती है। सरकारी दफ्तर हों या निजी संस्थान। कहने को सभी में कर्मचारियों की छुट्टी व साप्ताहिक अवकाश की सुविधाएं होती हैं, लेकिन कई बार कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश से लाले तक पड़ जाते हैं। एक साथ कई कर्मचारियों के छुट्टी पर जाने से अन्य की छुट्टी निरस्त कर दी जाती है। ऐसे में बहाना बनाने वाले ही अपनी चालों से विपरीत परिस्थितियों में छुट्टी लेने में कामयाब हो जाते हैं।
बहाने भी कई तरह के हैं। यदि एक या दो दिन की छुट्टी चाहिए तो बुखार या लूज मोशन का बहाना चल जाता है। लंबी छुट्टी के लिए गांव में पूजा, पीलिया की बीमारी आदि का बहाना। ऑफिस पहुंचने से पहले ऐन वक्त पर छुट्टी मारने वाले किसी को भी लुढ़का देते है। ऐसे लोगों को यह भी याद रखना पड़ता है कि पहले वे किसे लुढ़का चुके हैं। दोबारा दूसरे व्यक्ति की मौत का बहाना करते हैं। कई बार तो ऐसे बहानेबाज अपने मोहल्ले के किसी व्यक्ति व दूर के रिश्तेदार की मौत पर छुट्टी मार देते हैं। भले ही वे मरने वाले के घर तक नहीं जाते।
छुट्टी पाना भी व्यक्ति का अधिकार है। क्योंकि जब बात-बात पर छुट्टी पर रोक लगती है, तभी बहानेबाज भी सक्रिय हो जाते हैं। बहाना मारने वाले तो बहाना मारते हैं, लेकिन उनके ही कई सहयोगी काट को तैयार रहते हैं। ऐसे में बहानेबाजों को परफेक्ट बहाने की तलाश रहती है। क्योंकि ऐसे मौकों पर शादी का बहाना नहीं, चलता जब शुभ मुहूर्त नहीं होते।
एक दफ्तर में बहानेबाज महाशय ने फोन किया कि वह बीमार है। पेट दर्द हो रहा है। लूज मोशन भी है। छुट्टी तो मिल ही गई। इस पर महाशय शाम के समय यह सोचकर बाजार निकले कि यदि कोई देखेगा तो सफाई दे देंगे कि डॉक्टर के पास गए थे। घर जाते समय महाशय की जीभ लपलपाने लगी और चाऊमिन की ठेली पर खड़े होकर ठाठ से चाऊमिन खाने लगे। ऑफिस का कोई देख न ले इस भय से उन्होंने हेलमेट तक नहीं उतारा। फिर भी एक सज्जन ने उन्हें देख ही लिया। उसे देखने वाले ने ऑफिस पहुंचते ही सबसे पहले सभी को इसकी सूचना दी।
अक्सर पत्रकारों को देर रात दफ्तर से निकलने के बाद भी यह निश्चिंतता नहीं रहती कि वे समय से घर पहुंचेंगे। कई बार उन्हें दोबारा ऑफिस जाकर समाचार तैयार करने पढ़ते हैं। कई संस्थानों में तो यह व्यवस्था रहती है कि देर रात को रिपोर्टर डेस्क से सहयोगियों को समाचार फोन से लिखा देता है। एक संस्थान के संपादक को रात को अक्सर रिपोर्टर को वापस बुलाने की आदत थी। ऐसे में सभी रिपोर्टर दफ्तर से निकलने के बाद दोबारा न आने का बहाना तलाशते रहते। एक दिन एक रिपोर्टर ऑफिस से निकलने के बाद घर के रास्ते पर था। तभी मोबाइल की घंटी बजी। रिपोर्टर को तभी दूर एक बारात जाती दिखाई दी। पहले वह बारात के पास मोटरसाइकिल ले गया और फिर फोन रिसीव किया। संपादक का सवाल था कहां हो। इस पर जबाव मिला शादी में। शायद बैंड की आवाज सुनकर संपादक महोदय ने इस बहाने पर यकीन कर लिया। उसे दोबारा ऑफिस बुलाने की बजाय किसी समाचार के संबंध में जानकारी जुटाकर डेस्क को नोट कराने के निर्देश दिए।
बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी मारना जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। ऐसे बहाना बनाने वालों को काफी सतर्कतता बरतनी पड़ती है। कब जाने कौन बीमारी का हाल पूछने के बहाने घर पर टपक जाए। ऐसा ही एक किस्सा मुझे याद है। एक मित्र ने बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी ले ली। दफ्तार में दो मित्रों में इस बात पर ही शर्त लग गई कि वाकई मित्र बीमार है या नहीं। शर्त का परिणाम जानने के लिए दोनों बीमार मित्र के घर देर रात को पहुंच गए। घर में अंधेरा पसरा हुआ था। बीमार मित्र का स्कूटर भी घर पर ही था। बीमार घर पर ही है, यह सोचकर वे वापिस जाने लगे। इस पर शर्त हारने वाला पूरी तहकीकात के पक्ष में उतर गया। उसने गेट खटखटाया। भीतर से जवाब न मिलने पर दरवाजा पीटा गया। काफी देर बाद एक युवा भीतर से निकला। उसे परिस्थितियों का पता नहीं था। ऐसे में उसने सच बता दिया कि महाशय पत्नी व बच्चों के साथ किसी के घर पार्टी में गए हैं।
अब मेरे मन में यह सवाल उठता है कि क्या छुट्टी के लिए बहाना बनाने वाले सही हैं। या फिर उन्हें सबकुछ सच बताकर छुट्टी का आनंद उठाना चाहिए।
भानु बंगवाल 

1 comment:

  1. सर आपने बहुत ही अच्छा लिखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बहाने बनाने वाले ऐसा ही करते हैं, लेकिन आपने यह सुझाव नहीं दिया कि छुट्टी न मिले तो फिर उसे क्या करना चाहिए।
    गोविन्द सिंह

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