कुछ दिन से घर में चूहों ने उछलकूद मचा रखी थी। इनसे छुटकारा पाने से लिए मैं हर बार नया टोटका इस्तेमाल करता हूं। चूहे ही क्यों, कॉकरोच के लिए भी एक फार्मूला कामयाब नहीं होता। यदि पहली बार हिट से भागते हैं, तो अगली बार कॉकरोच में उसे सहने की शक्ति आ जाती है। ऐसे में हर बार मुझे उनसे छुटकारा पाने के नए तरीके तलाशने पड़ते। इसके लिए कीटनाशक बदलता, लेकिन एक दिन ऐसा आया उन पर कोई भी कीटनाशक कारगार साबित नहीं हुआ। वो तो भला हो मेरी बहन का। उसने बताया कि बोरिक पाउडर में उसके बराबर आटा मिला लो। साथ ही उसमें एक चम्मच हल्दी व एक चम्मच चीनी मिलाकर सब को गूंद लो। इस पेस्ट को कीचन में दीवारों के सभी छिद्रों में भर दो। साथ ही इससे स्लैब व दीवार से सटाकर एक लाइन खींच दो। कम से कम छह माह तक कॉकरोच नजर नहीं आएंगे। यह फार्मूला फिलहाल कारगार साबित हुआ और घर में कॉकरोच से फिलहाल निजात मिली हुई है। पर चूहे इनका क्या किया जाए।
पड़ोसी की एक बिल्ली है। वह कभी-कभी हमारे घर भी आ जाती है, लेकिन मजाल है कि चूहे मारे। पडो़सी उसे पेट भरकर दूध पिलाता है और बिल्ली का पेट भरा रहता है। ऐसे में वह क्यों चूहे मारेगी। घर में चहलकदमी करने के बाद वह म्याऊं -म्याऊं करती वापस चली जाती है। जब कभी मौका मिलता है तो दूध इतनी सफाई से चुरा कर पीती है कि बर्तन में मलाई की परत तक नहीं टूटती। नीचे से दूध कम हो जाता है। चूहों को मारने का जहर भी मैं इस्तेमाल कर चुका हूं और अब चूहे उसे खाते भी नहीं। यदि खाते हैं, तो भी जहर का उन्हें असर नहीं होता। ऐसे में एकमात्र उपाय चूहेदानी ही सही नजर आया। पत्नी ने आटे में असली घी के साथ कुछ चीनी भी मिलाई। फिर एक सख्त रोटी बनाकर चूहेदानी में फिट कर दी गई। बच्चों वाले घर में खाने-पीने की काफी चीजें डस्टबीन में फेंकी जाती हैं। ऐसे में चूहे क्यों रूखी रोटी खाने चूहेदानी तक जाएंगे। इसी के मद्देनजर घी व चीनी मिलाकर रोटी चूहेदानी में लगाई गई। एक रात रोटी लगाई और कुछ ही देर बाद चूहेदानी में चूहा फंस गया। वह चूहा काफी बड़ा था, जिसे छुछुदंर भी कहा जाता है। मैने बेटे को घर से दूर चूहेदानी को खोलकर छुछुंदर को छोड़ने को कहा। इस पर मेरा बेटा चूहेदानी लेकर घर से बाहर निकला। गेट से काफी आगे एक नाली के पास उसने चूहेदानी खोल दी और वापस आ गया। उसके पीछे-पीछे छुछुंदर भी आने लगा। उसे देख बेटे ने भगाने का प्रयास किया तो वह किसी दूसरे के गेट के भीतर घुस गया। खैर हमने राहत की सांस ली कि अब चूहे से छुटकारा मिल गया। चूहा पड़ोस के जिस घर में घुसा वहां बच्चे नहीं रहते। खाना खाने के दौरान उस घर में कोई न तो बच्चो की तरह नखरे ही करता है और न ही थाली में खाना छोड़ता है। ऐसे में जितना पकाया उतना ही खाते हैं। चूहे को वहां शायद वेस्ट भोजन नहीं मिला और तीन दिन बाद वह हमारे घर पहुंच गया। अब यह चूहा और शातिर हो गया। वह चूहेदानी में लटकी रोटी की तरफ देखता तक नहीं। जब रात को बत्ती बंद की जाती है, तो उसकी आवाज भी बच्चों को डराती है।
इस चूहे को देखकर मुझे यह आश्चर्य भी हुआ कि वह चूहेदानी में दोबारा फंसने की गलती नहीं कर रहा है। पहली गलती से ही उसने सबक ले लिया था। फिर उसने कभी चूहेदानी की तरफ रुख नहीं किया। चूहेदानी में रोटी का टुकड़ा उसके इंतजार में सूख कर कड़ा हो गया। काश इस चूहे से इंसान भी सीख लेता। इंसान तो गलती दर गलती करता जा रहा है। साथ ही वह गलती को मानने को भी तैयार नहीं होता। बार-बार लालच में पड़कर वह अपना नुकसान कर बैठता है। जानबूझकर वह काम, क्रोध, लोभ, द्वेष आदि के जाल में अक्सर फंसता चला जाता है।
भानु बंगवाल
पड़ोसी की एक बिल्ली है। वह कभी-कभी हमारे घर भी आ जाती है, लेकिन मजाल है कि चूहे मारे। पडो़सी उसे पेट भरकर दूध पिलाता है और बिल्ली का पेट भरा रहता है। ऐसे में वह क्यों चूहे मारेगी। घर में चहलकदमी करने के बाद वह म्याऊं -म्याऊं करती वापस चली जाती है। जब कभी मौका मिलता है तो दूध इतनी सफाई से चुरा कर पीती है कि बर्तन में मलाई की परत तक नहीं टूटती। नीचे से दूध कम हो जाता है। चूहों को मारने का जहर भी मैं इस्तेमाल कर चुका हूं और अब चूहे उसे खाते भी नहीं। यदि खाते हैं, तो भी जहर का उन्हें असर नहीं होता। ऐसे में एकमात्र उपाय चूहेदानी ही सही नजर आया। पत्नी ने आटे में असली घी के साथ कुछ चीनी भी मिलाई। फिर एक सख्त रोटी बनाकर चूहेदानी में फिट कर दी गई। बच्चों वाले घर में खाने-पीने की काफी चीजें डस्टबीन में फेंकी जाती हैं। ऐसे में चूहे क्यों रूखी रोटी खाने चूहेदानी तक जाएंगे। इसी के मद्देनजर घी व चीनी मिलाकर रोटी चूहेदानी में लगाई गई। एक रात रोटी लगाई और कुछ ही देर बाद चूहेदानी में चूहा फंस गया। वह चूहा काफी बड़ा था, जिसे छुछुदंर भी कहा जाता है। मैने बेटे को घर से दूर चूहेदानी को खोलकर छुछुंदर को छोड़ने को कहा। इस पर मेरा बेटा चूहेदानी लेकर घर से बाहर निकला। गेट से काफी आगे एक नाली के पास उसने चूहेदानी खोल दी और वापस आ गया। उसके पीछे-पीछे छुछुंदर भी आने लगा। उसे देख बेटे ने भगाने का प्रयास किया तो वह किसी दूसरे के गेट के भीतर घुस गया। खैर हमने राहत की सांस ली कि अब चूहे से छुटकारा मिल गया। चूहा पड़ोस के जिस घर में घुसा वहां बच्चे नहीं रहते। खाना खाने के दौरान उस घर में कोई न तो बच्चो की तरह नखरे ही करता है और न ही थाली में खाना छोड़ता है। ऐसे में जितना पकाया उतना ही खाते हैं। चूहे को वहां शायद वेस्ट भोजन नहीं मिला और तीन दिन बाद वह हमारे घर पहुंच गया। अब यह चूहा और शातिर हो गया। वह चूहेदानी में लटकी रोटी की तरफ देखता तक नहीं। जब रात को बत्ती बंद की जाती है, तो उसकी आवाज भी बच्चों को डराती है।
इस चूहे को देखकर मुझे यह आश्चर्य भी हुआ कि वह चूहेदानी में दोबारा फंसने की गलती नहीं कर रहा है। पहली गलती से ही उसने सबक ले लिया था। फिर उसने कभी चूहेदानी की तरफ रुख नहीं किया। चूहेदानी में रोटी का टुकड़ा उसके इंतजार में सूख कर कड़ा हो गया। काश इस चूहे से इंसान भी सीख लेता। इंसान तो गलती दर गलती करता जा रहा है। साथ ही वह गलती को मानने को भी तैयार नहीं होता। बार-बार लालच में पड़कर वह अपना नुकसान कर बैठता है। जानबूझकर वह काम, क्रोध, लोभ, द्वेष आदि के जाल में अक्सर फंसता चला जाता है।
भानु बंगवाल
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