आपरेशन का सच.....
शुक्रवार के दिन टिहरी जनपद के कीर्तिनगर में आयोजित किए गए परिवार नियोजन के एक शिविर में महिला की आपरेशन के बाद तबीयत बिगड़ी और वह बेहोश हो गई। अफरा-तफरी में परिजन महिला को श्रीनगर गढ़वाल के बेस चिकित्सालय ले गए, जहां चिकित्सक भी महिला को बचा नहीं सके। इस मामले में चिकित्सकों ने तुर्रा मारा कि महिला की मौत घबराहट से हुई। इस समाचार ने सभी को चौंकाया कि नसबंदी के एक छोटे से आपरेशन पर भी क्या किसी को जान से हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसी नौबत आने के लिए क्या इसे चिकित्सकों की लापरवाही नहीं कहा जाएगा। इस मामले में महिला के पति ने चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए थाने में रिपोर्ट भी लिखाई और पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के साथ ही पोस्टमार्टम कराकर अपने फर्ज की इतिश्री भी कर दी।
इस घटना से सवाल उठता है कि यदि परिवार नियोजन के मामलों में ऐसी लापरवाही बरती जाने लगी तो आने वाले दिनों में लोग इस सबसे आसान तरीके को अपनाने में भी घबराएंगे। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लागना भी संभव नहीं हो सकेगा। एक यह भी सच है कि परिवार नियोजन के आपरेशन कराने में अक्सर महिलाओं को ही आगे किया जाता है। इसकी तस्दीक सरकारी आंकडे़ भी करते हैं कि ऐसे आपरेशन कराने वालों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या ज्यादा है। पुरुष तो हर मामले में महिला को ही आगे कर देता है। महिला का जीवन ही ऐसा है कि पुरुष प्रधान समाज में जनसंख्या नियंत्रण में भी उसके कंधे पर ही जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। ऐसे मामले में या तो काफी जागरूक पुरुष ही आगे आते हैं या फिर मजबूरी में।
एक बार मुझे किसी रिश्तेदार का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा कि उनकी बहन का दामाद देहरादन में रहता है। पहले उसकी एक बेटी आपरेशन से हुई। वह चलने लायक भी नहीं हुई कि दूसरी बेटी ने भी आपरेशन से जन्म दिया। चिकित्सकों ने स्पष्ट कह दिया कि यदि फिर औलाद हुई तो मां की जान जा सकती है। बहन की बेटी दो बच्चों की मां तो बन गई, लेकिन काफी कमजोर है। ऐसे में परिवार नियोजन के लिए उसका आपरेशन तो करा नहीं सकते, लेकिन उसके पति का आपरेशन कराना है। परिचित ने मुझे बताया कि काफी समझाने के बाद दामाद आपरेशन के लिए राजी तो हो गया, लेकिन उसे लेकर तुम्हें अस्पताल जाना होगा। यानी परिचित ने अपनी बहन के दामाद के आपरेशन की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी।
मैं बंटू नाम के इस युवक के घर पहुंचा। उसकी उम्र करीब 27 साल रही होगी। बंटू के साथ ही के उसके माता व पिता से मैं पहली बार मिला। उन्होंने भी मुझसे यही कहा कि बेटा तू ही इसे अस्पातल ले जाकर आपरेशन करा। नहीं तो हमारी बहू मुसीबत में पढ़ जाएगी।
बंटू को मैं देहरादून के सरकारी अस्पताल ले गया। कागजी कार्यावाही पूरी की गई। आपरेशन के नाम से ही बंटू कांप रहा था। उसे आपरेशन कक्ष में कंपाउंडर ले गया। करीब दो मिनट बाद दरवाजा खुला और चिकित्सक बाहर आया। उसने मुझसे कहा कि इस युवक का आपरेशन करना मुश्किल है। यह तो घबराहट में कांप रहा है। ऐसी स्थिति में इसका आपरेशन करना संभव नहीं है। चिकित्सक ने मुझसे कहा कि पहले इसे मानसिक रूप से मजबूत करो। इसके भीतर का डर हटाओ तभी आपरेशन कर पाऊंगा। इस पर मैं आपरेशन कक्ष में गया उसे मैं जितना समझा सकता था समझाया। कहा- अपने बच्चों का भविष्य सोच। पत्नी को देख यदि उसे कुछ हो गया तो तेरा और बच्चों का क्या होगा। उसे बताया गया कि ऐसा आपरेशन काफी छोटा होता है। इससे कोई खतरा नहीं होता। बंटू मानसिक रूप से कुछ मजबूत हुआ और आपरेशन के लिए तैयार हो गया और मैं कक्ष से बाहर आ गया।
भीतर बंटू व चिकित्सक था और मैं बाहर इंतजार कर रहा था। बाहर सरकारी चिकित्सालय की एक नर्स भी खड़ी थी। जो कुछ समय पहले मुझे बंटू को समझाते हुए देख रही थी। नर्स को अपना रिकार्ड बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन के केस लाने होते थे। वह परेशान थी कि उसे कोई केस नहीं मिल रहा। उसे मैं काम का नजर आया। वह मेरे पीछे पढ़ गई कि मुझे भी ऐसे केस लाकर दो। उस नर्स की बातें सुनकर मैं बोर हो रहा था। उसने अपनी कार्यप्रणाली से लेकर अब तक कराए गए आपरेशनों की संख्या तक मुझे गिना दी। मैने उसे आश्वासन दिया कि जब भी कोई ऐसा मामला मेरी नजर में आएगा उसे आपके पास ही भेजूंगा।
कुछ देर बाद आपरेशन कक्ष का दरवाजा खुला और बंटू खुद चलकर बाहर आया। उसके हाथ में कुछ गोलियां भी थीं। वह मुझसे कुछ नहीं बोला। मैने पूछा आपरेशन हो गया। इस पर उसने हां में सिर हिलाया। तब मैने उसे कहा कि उसे घर छोड़ आता हूं। कुछ मानसिक रूप से कमजोर होने के बावजूद बंटू बोला कि आपरेशन कराने के पैसे मिलते हैं। पैसे लेकर ही घर जाऊंगा। इस पर हम चिकित्सक की रिपोर्ट लेकर अस्पताल के कार्यालय में बाबू के पास गए। वहां कागजी खानापूर्ति के बाद बंटू को एक सौ का नोट थमाया गया। बंटू को मैने स्कूटर से घर छोड़ दिया। जब मैं वापस जाने लगा तो वह मुझपर बरसने लगा। उसे यही गुस्सा था कि मैने उसका आपरेशन क्यों कराया। वह मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहता था, जबकि उसके घर में सभी खुश थे। मैं चुपचाप उसके घर से बाहर निकल गया। इस घटना के करीब पंद्रह साल हो चुके हैं। उसके बाद से मैने उसे नहीं देखा, लेकिन इतना पता है कि उसकी बेटियां जवान हो गई हैं और परिवार खुशहाल है।
भानु बंगवाल
शुक्रवार के दिन टिहरी जनपद के कीर्तिनगर में आयोजित किए गए परिवार नियोजन के एक शिविर में महिला की आपरेशन के बाद तबीयत बिगड़ी और वह बेहोश हो गई। अफरा-तफरी में परिजन महिला को श्रीनगर गढ़वाल के बेस चिकित्सालय ले गए, जहां चिकित्सक भी महिला को बचा नहीं सके। इस मामले में चिकित्सकों ने तुर्रा मारा कि महिला की मौत घबराहट से हुई। इस समाचार ने सभी को चौंकाया कि नसबंदी के एक छोटे से आपरेशन पर भी क्या किसी को जान से हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसी नौबत आने के लिए क्या इसे चिकित्सकों की लापरवाही नहीं कहा जाएगा। इस मामले में महिला के पति ने चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए थाने में रिपोर्ट भी लिखाई और पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के साथ ही पोस्टमार्टम कराकर अपने फर्ज की इतिश्री भी कर दी।
इस घटना से सवाल उठता है कि यदि परिवार नियोजन के मामलों में ऐसी लापरवाही बरती जाने लगी तो आने वाले दिनों में लोग इस सबसे आसान तरीके को अपनाने में भी घबराएंगे। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लागना भी संभव नहीं हो सकेगा। एक यह भी सच है कि परिवार नियोजन के आपरेशन कराने में अक्सर महिलाओं को ही आगे किया जाता है। इसकी तस्दीक सरकारी आंकडे़ भी करते हैं कि ऐसे आपरेशन कराने वालों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या ज्यादा है। पुरुष तो हर मामले में महिला को ही आगे कर देता है। महिला का जीवन ही ऐसा है कि पुरुष प्रधान समाज में जनसंख्या नियंत्रण में भी उसके कंधे पर ही जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। ऐसे मामले में या तो काफी जागरूक पुरुष ही आगे आते हैं या फिर मजबूरी में।
एक बार मुझे किसी रिश्तेदार का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा कि उनकी बहन का दामाद देहरादन में रहता है। पहले उसकी एक बेटी आपरेशन से हुई। वह चलने लायक भी नहीं हुई कि दूसरी बेटी ने भी आपरेशन से जन्म दिया। चिकित्सकों ने स्पष्ट कह दिया कि यदि फिर औलाद हुई तो मां की जान जा सकती है। बहन की बेटी दो बच्चों की मां तो बन गई, लेकिन काफी कमजोर है। ऐसे में परिवार नियोजन के लिए उसका आपरेशन तो करा नहीं सकते, लेकिन उसके पति का आपरेशन कराना है। परिचित ने मुझे बताया कि काफी समझाने के बाद दामाद आपरेशन के लिए राजी तो हो गया, लेकिन उसे लेकर तुम्हें अस्पताल जाना होगा। यानी परिचित ने अपनी बहन के दामाद के आपरेशन की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी।
मैं बंटू नाम के इस युवक के घर पहुंचा। उसकी उम्र करीब 27 साल रही होगी। बंटू के साथ ही के उसके माता व पिता से मैं पहली बार मिला। उन्होंने भी मुझसे यही कहा कि बेटा तू ही इसे अस्पातल ले जाकर आपरेशन करा। नहीं तो हमारी बहू मुसीबत में पढ़ जाएगी।
बंटू को मैं देहरादून के सरकारी अस्पताल ले गया। कागजी कार्यावाही पूरी की गई। आपरेशन के नाम से ही बंटू कांप रहा था। उसे आपरेशन कक्ष में कंपाउंडर ले गया। करीब दो मिनट बाद दरवाजा खुला और चिकित्सक बाहर आया। उसने मुझसे कहा कि इस युवक का आपरेशन करना मुश्किल है। यह तो घबराहट में कांप रहा है। ऐसी स्थिति में इसका आपरेशन करना संभव नहीं है। चिकित्सक ने मुझसे कहा कि पहले इसे मानसिक रूप से मजबूत करो। इसके भीतर का डर हटाओ तभी आपरेशन कर पाऊंगा। इस पर मैं आपरेशन कक्ष में गया उसे मैं जितना समझा सकता था समझाया। कहा- अपने बच्चों का भविष्य सोच। पत्नी को देख यदि उसे कुछ हो गया तो तेरा और बच्चों का क्या होगा। उसे बताया गया कि ऐसा आपरेशन काफी छोटा होता है। इससे कोई खतरा नहीं होता। बंटू मानसिक रूप से कुछ मजबूत हुआ और आपरेशन के लिए तैयार हो गया और मैं कक्ष से बाहर आ गया।
भीतर बंटू व चिकित्सक था और मैं बाहर इंतजार कर रहा था। बाहर सरकारी चिकित्सालय की एक नर्स भी खड़ी थी। जो कुछ समय पहले मुझे बंटू को समझाते हुए देख रही थी। नर्स को अपना रिकार्ड बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन के केस लाने होते थे। वह परेशान थी कि उसे कोई केस नहीं मिल रहा। उसे मैं काम का नजर आया। वह मेरे पीछे पढ़ गई कि मुझे भी ऐसे केस लाकर दो। उस नर्स की बातें सुनकर मैं बोर हो रहा था। उसने अपनी कार्यप्रणाली से लेकर अब तक कराए गए आपरेशनों की संख्या तक मुझे गिना दी। मैने उसे आश्वासन दिया कि जब भी कोई ऐसा मामला मेरी नजर में आएगा उसे आपके पास ही भेजूंगा।
कुछ देर बाद आपरेशन कक्ष का दरवाजा खुला और बंटू खुद चलकर बाहर आया। उसके हाथ में कुछ गोलियां भी थीं। वह मुझसे कुछ नहीं बोला। मैने पूछा आपरेशन हो गया। इस पर उसने हां में सिर हिलाया। तब मैने उसे कहा कि उसे घर छोड़ आता हूं। कुछ मानसिक रूप से कमजोर होने के बावजूद बंटू बोला कि आपरेशन कराने के पैसे मिलते हैं। पैसे लेकर ही घर जाऊंगा। इस पर हम चिकित्सक की रिपोर्ट लेकर अस्पताल के कार्यालय में बाबू के पास गए। वहां कागजी खानापूर्ति के बाद बंटू को एक सौ का नोट थमाया गया। बंटू को मैने स्कूटर से घर छोड़ दिया। जब मैं वापस जाने लगा तो वह मुझपर बरसने लगा। उसे यही गुस्सा था कि मैने उसका आपरेशन क्यों कराया। वह मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहता था, जबकि उसके घर में सभी खुश थे। मैं चुपचाप उसके घर से बाहर निकल गया। इस घटना के करीब पंद्रह साल हो चुके हैं। उसके बाद से मैने उसे नहीं देखा, लेकिन इतना पता है कि उसकी बेटियां जवान हो गई हैं और परिवार खुशहाल है।
भानु बंगवाल
No comments:
Post a Comment