Tuesday, 25 December 2012

Wedding sweets and budget of Hinjdon

शादी के लड्डू और हिंजड़ों का बजट
कहावत है कि शादी के लड्डू को जो खाए वह भी पछताए और जो न खाए वो भी पछताए। फिर भी ये शादी के लड्डू हैं बड़े की मजेदार। शादी करने वाले से लेकर कराने वालों के साथ ही विवाह समारोह में शामिल होने वालों में इसके लिए खासा उत्साह होता है। परिवार में किसी शादी के लिए तो महिलाएं व बच्चे तो पहले से ही योजना बनाने लगते हैं। लेडिज संगीत, मंगल स्नान, बारात, रिसेप्शन में किस रंग की साड़ी, लहंगा या सूट पहना जाए। इसके लिए पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। बच्चे भी माता-पिता से अपनी पसंद के कपड़ों के लिए जिद करते हैं। अक्सर ऐसे मौकों पर मेरी पत्नी व बच्चों की जब फरमाइश पूरी होती है, तो मेरा नंबर आते ही बजट समाप्त हो जाता है। ऐसे में पुराने कपड़ों पर ही प्रेस मारकर काम चला लेता हूं। सर्दियों में जब भी शादी होती है, तब मेरी शादी के वक्त के वो तीन सूट ही काम आते हैं, जिनके बाद मैं आज तक सूट सिलाने का साहस नहीं कर सका।
मेरी बहन केंद्रीय संस्थान में सरकारी नौकरी पर है। जीजा भी आबकारी विभाग में है। उनका एक ही बेटा है, जिसकी शादी तय हो रखी है और उसकी तैयारी में वे मशगूल हैं। जब भी बहन मिलती है, या फिर फोन से बात होती है, तो आजकल उसका बात का टोपिक भी शादी का ही होता है। मुझसे वह बारात में लोगों की सूची, खाने का  मैन्यू आदि पर चर्चा करती रहती है। लगभग सब फाइनल हो चुका है। एक माह बाद फरवरी में बारात दिल्ली जानी है। ऐसी ही चर्चा के दौरान मैने बहन को सतर्क किया कि सब चीजों का अनुमानित बजट बना लिया होगा, लेकिन बजट में कम से कम पांच से दस हजार रुपये शादी के बाद के लिए बचाकर रखना। अचानक किसी दिन हिंजड़े आएंगे और बधाई के लिए ठुमके मारने लगेंगे। उनके साथ बार्गेनिंग करना भी हरएक के बस की बात नहीं। चाहे कोई पुलिसवाला हो, नेता हो या फिर पत्रकार। वे किसी की नहीं सुनते। कई बार तो लोग शादी के दौरान ही सब कुछ खर्च कर जाते हैं। जब हिंजड़ों की बारी आती है तो कुछ भी पल्ले में कुछ बचा नहीं रहता। ऐसे में घर में ड्रामा होना निश्चित होता है। बहन ने बड़ी सरलता से कहा कि उनकी चिंता नहीं है। कितना लेंगे, दस या पंद्रह हजार। वो मैने बजट में शामिल कर रखा है। उसके लिए कितना आसान था यह बजट। कई तो इस बात से ही घबराते हैं कि इस तीसरी कौम को कहां से पैसा देंगे।
सच कहो तो इस दुनियां में मैं भी किसी से यदि डरता हूं तो वे हिंजड़े ही हैं। कभी किसी जमाने में किन्नरों को राजा लोग गुप्तचर के रूप में इस्तेमाल करते थे। आज तो उनकी जासूसी हर गली व मोहल्लों में है। मेरे पड़ोस में एक बेचारा छोटी मोटी नौकरी करता था। साथ में उसकी पत्नी भी थी। पहला बच्चा जब लड़का हुआ तो कई दिन तक उन्होंने बच्चे के कपड़े छत में इसलिए नहीं सुखाए कि किसी को यह पता नहीं चल सके कि घर में छोटा बचा हुआ है। करीब आठ हजार वेतन में मकान किराया व अन्य खर्च के बाद एक पैसा उसके पास नहीं बचता। वह आधा वेतन हिंजड़ों को नहीं देना चाहता था। ऐसे में वह सुबह घर से भाग जाता। शाम को देर से घर आता। यह छुपनछुपाई ज्यादा दिन नहीं चल सकी। मोहल्ले के धोबी, नाई, मालन, कामवाली बाई सभी तो इन हिंजड़ों के सूचना तंत्र हैं। एक दिन उन्होंने पड़ोसी को पकड़ ही लिया और शुरू कर दिए उसके घर में ठुमके लगाने। कुछ पड़ोसियों ने बचाव किया और बार्गेनिंग हुई। तब तरस खाकर वे इक्कतीस सौ रुपये में माने।
पहले तो लड़की की शादी, बेटी के पैदा होने पर हिंजड़े नहीं आते थे, लेकिन अब तो शादी हो या फिर बच्चा हो, नया मकान बनाया हो तो हिंजड़ों का बजट जरूर रखना चाहिए। ना जाने कब आ धमकें। कई बार तो एक पार्टी से छुटकारा मिलता है तो दूसरी आ धमकती है। उनका अपना एरिया का झगड़ा होता है, लेकिन पिसता वो व्यक्ति है, जिसके घर वे आते हैं। करीब 14 साल पहले की बात है। उन दिनों मैं सहानपुर था। एकदिन मैं समाचार पत्र के आफिस में बैठा समाचार लिख रहा था कि पीछे से आवाज आई कि मेरी विज्ञप्ति भी छाप दे। मैने पीछे देखे बगैर कह दिया कि विज्ञप्ति टेबल में रख दो देख लूंगा। इस पर विज्ञप्ति लाने वाला बोला कि मेरे सामने ही समाचार लिख। तब ही जाऊंगी। आवाज मर्दाना, लेकिन खुद को जनाना बताने वाले शक्स को देखने के लिए मैने गर्दन पीछे घुमाई। वह मेरे सिर के पास तक पहुंच गया था। उसे देखते ही मेरे बदन में झुरझुरी सी उठ गई। वह सलवार-कमीज पहने हुए एक हिंजड़ा था। उसने मुझे देखते ही अपने लहजे में अजीब सा मुंह  बनाया और आंखों से इशारा किया। उसे देखते ही मैं डर गया। मैने उससे पीछा छुड़ाने के लिए विज्ञप्ति ले ली, लेकिन वह जिद में अड़ा रहा कि उसका समाचार उसके सामने ही बनाकर भेजा जाए। वह किसी दूसरे हिंजड़े की शिकायत लेकर आया था। उसका कहना था कि वे असली हिंजड़े नहीं हैं। नकली हिंगड़ों का गिरोह मोहल्लों में जाकर बधाई मांगता है। ऐसे नकली से लोगों को बचना चाहिए। इस दिन से मुझे एक बात समझ में आई कि उनमें भी असली व नकली की लड़ाई है। किसी तरह उसे आफिस से चलता कर मैने हिंजड़ों की लड़ाई पर एक रोचक समाचार भी लिखा और समाचारपत्र में प्रकाशित भी हुआ।
उन्हीं दिनों मेरी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया। जब वह गर्भवती थी तभी हर महीने के वेतन से मैंने कुछ पैसे डिलीवरी के नाम से बचाने शुरू कर दिए थे। साथ ही हिंजड़ों के लिए तब पांच सौ रुपये भी अलग से रखे। सरकारी अस्पताल में नार्मल डिलीवरी के कारण बजट नहीं बिगड़ा। बच्चा होने के बाद पत्नी मायके पर ही थी। एक दिन वहां दो हिंजड़े पहुंच गए। उन्हें समझाया कि यह लड़की का मायका है। जब वह पति के घर जाएगी वहीं जाना, लेकिन वे नहीं माने और पत्नी से पांच सौ रुपये और साड़ी लेकर ही घर से टले। अक्सर नवजात शिशु को पीलिया हो जाता है। मेरे बेटे को भी पीलिया की शिकायत पर डाक्टर ने उसे सुबह व शाम की धूप दिखाने की सलाह दी। एक सुबह मैं घर की खिड़की के पास बैठा धूप दिखा रहा था,तभी कमरे में करीब पांच-छह हिंजड़ों की टोली आ गई। उन्हें समझाया गया कि दो दिन पहले ही हिंजड़े आए थे और बधाई लेकर चले गए। इस पर टोली की मुखिया बिगड़ गई और कहने लगी कि पहले वालों को भले ही तुमने पांच सौ रुपये दिए, लेकिन मैं तो इक्यावन सौ रुपये लेकर ही जाऊंगी। वह जोर से ताली पीट रही थी और बच्चा रो रहा था साथ ही मैने मन में हथौड़े चल रहे थे। मैने उन्हें डांटा तो वे एक साथ कपड़े उतारने का उपक्रम करने लगे। तभी मुझे कुछ दिन पूर्व आफिस में आए हिंजड़े की बात याद आई। मैने उनसे कहा कि यदि कपड़े उतारने हों तो उतार लो। आज असली व नकली का भी फैसला हो जाएगा। फिर तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा। दो-दो बार किस बात की बधाई दी जाए। उन्हें मैं घर के गेट के बाहर तक ले आया। अचानक एक मुझे डराने लगा कि पहले अपने गुरु को लाउंगी और तूझे पहनाऊंगी सलवार, घुमाऊंगी गली-गली।
मैं थाने में जाकर उनकी रिपोर्ट कराने को बाहर निकला। उनका मुझसे लड़ने का भी अंदाज कुछ निराला था। तब तक उनमें से एक मुझसे कहने लगा कि-चल थाने, चल थाने। जितनी बार वह चल थाने कहता साथ ही मेरे पेट पर भी हथेली से धकियाता। मैं उसके वार से बचने को एक कदम पीछे होता और वह फिर कहता चल थाने। जितनी बार वह चल थाने कहता उतनी बार उसका सहयोगी ढोलक पर थाप भी देता। आसपड़ोस के लोग छतों से तमाशा देख रहे थे। तभी एक महिला ने साहस कर बोला कि जब एक बार ये बधाई दे चुके हैं तो दोबारा किस बात की। खैर किसी तरह उनसे पीछा छुड़ाया गया, लेकिन मैने दूसरी बार बधाई के नाम पर अपने वेतन का करीब छठा हिस्सा उन्हें नहीं दिया। वे अपने गुरु व पहली बार बधाई ले गए हिजड़े को साथ लाने की बात कहकर गए, जो उसके बाद फिर दोबारा नहीं आए।
भानु बंगवाल         

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