Saturday, 7 April 2012

भ्रष्ट्राचार विरोधी मुहीम, पहले खुद को बदल......

अन्ना हजारे व बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार को  लेकर छेड़ी गई मुहीम कितना रंग दिखाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। इसके बावजूद एक कड़ुवा सच यह है कि भ्रष्टाचार को डंडे के बल पर नहीं मिटाया जा सकता है। इसके लिए तो हर व्यक्ति को जागरूक होना पड़ेगा। हरएक को पता है कि दहेज लेना गलत है, इसके बावजूद लाखों व करोड़ों में दुल्हे की बोली लगाई जाती है। हत्या व चोरी का अपराध साबित होने पर दोषी को सजा मिलती है। इसके बावजूद भी हत्या व चोरी की घटनाएं बढ़ ही रही हैं।
किसी बुराई को समाप्त करने के लिए उसकी वजह की जड़ तक जाने की जरूरत है।
भ्रष्टाचार कहां ज्यादा है और कहां कम है, यह बताना काफी मुश्किल है। शार्टकट से कराया गया अपना काम यदि बन गया तो सही है और यदि कोई दूसरा पकड़ा गया तो भ्रष्टाचार है। आज शायद भ्रष्टाचार की परिभाषा यही बन गई है।
आपको घर बनाना हो तो पहले जमीन खरीदोगे। उसकी रजिस्ट्री कराने में जल्दी है तो सुविधा शुल्क देना ही पड़ेगा। नहीं दोगे तो विभाग के चक्कर काटते रहोगे और मकान बनाने की कीमत बढ़ती जाएगी। फिर उसका नक्शा पास कराने के लिए सुविधा शुल्क देना पड़ेगा। भले ही आपके पास सारी पत्रावलियां पूर्ण हों। मकान बन गया तो नगर पालिका या नगर निगम में हाउस टैक्स कम कराने के लिए भी सुविधा शुल्क। यदि नहीं दिया तो आपके मकान में इतना गृह कर लगेगा कि पड़ोसी के मकान से ज्यादा होगा। भले ही पड़ोसी का मकान आपसे कई गुना बड़ा क्यों न हो। मकान बनाने के बाद बिजली व पानी का समय से कनेक्शन लेने के लिए भी सुविधा शुल्क।
सुविधा शुल्क से मुझे याद आया। करीब दस साल पहले की बात है। देहरादून में मेरी बहन का मकान बन रहा था। मकान जैसे ही बना, उनके घर नगर निगम का एक निरीक्षक पहुंचा और वह हाउस टैक्स को कम करने के नाम पर उनसे छह सौ रुपये मांगने लगा। इसी तरह पानी के व्यावसायिक कनेक्शन को घरेलू में बदलने के लिए आठ सौ रुपये की मांग की गई। मेरे कहने के मुताबिक उन्होंने किसी भी मामले में रिश्वत नहीं दी, लेकिन बाद में बहिन व जीजा मुझे कोसते रहे। कई साल तक उनका पानी का गलत बिल आता रहा। मैं हर बार ठीक कराता, लेकिन अगली बार फिर ज्यादा राशि जोड़कर हजारों का बिल भेज दिया जाता।
उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए। कई ठेकेदारों ने इंजीनियरों को रिश्वत लेते रंगे हाथों बिजलेंस के छापों में पकड़वाया। काफी वाहावाही हुई। बाद में ठेकेदार खुद को कोस रहे हैं। क्योंकि बाद में उनके काम पर नुक्स निकालकर उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। ऐसे कामों में नेताजी का भी समर्थन रहता है। आखिर ठेकेदार भी परेशान कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कहां-कहां लड़ाई लड़ें। रग-रग में फैल चुके भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए व्यक्ति को पहले अपने से ही शुरूआत करनी होगी। खुद अपना आंकलन करना होगा कि हमने लाइन में खड़े होने की बजाय कितनी बार शार्टकट अपनाया। साथ ही संकल्प लेना होगा कि भविष्य में ऐसा शार्टकट नहीं अपनाएंगे। यदि हमने खुद को नहीं बदला तो कितने भी सख्त कानून बना लो, भ्रष्टाचार समाप्त होने वाला नहीं। भले ही हर सड़क व गली में अन्ना व बाबा रामदेव जैसे लोग आंदोलन करते रहें। क्योंकि आंदोलन में शामिल कई व्यक्ति भी कहीं न कहीं शार्टकट अपना चुके होते है। सच ही कहा गया कि- इस धरती की कसम, ये तानाबाना बदलेगा, पहले खुद को बदल फिर ये जमाना बदलेगा।
                                                                                                  भानु बंगवाल

2 comments:

  1. मैं बताता हूं अभी कुछ दिन पूर्व मेरे साथ घटित एक वाकया। अपने क्षेत्र में सडक में धांधली संबंधी एक खबर प्रकाशित की। खबर के आधार पर जिलाधिकारी स्‍तर से मामले की जांच भी शुरू हो गई। प्रकाशित होने के साथ ही एई का फोन आया और उसने मिलने के लिए बुला भेजा। कई बार फोन आने के बावजूद मैं मिलने नहीं गया तो एई ने कुछ ठेकेदारों को जत्‍था मेरे कार्यालय में ही भेज दिया। ठेंकेदारों से भी मैंने मिलने से स्‍पष्‍ट रूप से कह दिया कि मुझे किसी से नहीं मिलना। इस बीच जांच रिपोर्ट भी आ गई और रिपोर्ट में भी घपला उजागर हुआ। मैंने जांच रिपोर्ट के आधार पर पिफर खबर प्रकाशित कर दी। एई ने मेरे ही एक करीबी को मेरे पास भेजा व मिलने का समय मांगा। मैंने मिलने के लिए हामी भर दी। एई से मिलने पहुंचा तो एई तमाम तर्क देते हुए मुझे पांच-पांच सौ के नोटों का एक बंडल देने लगा। उसका स्‍पष्‍ट कहना था कि तमाम अधिकारियों को मैनेज कर दिया है, बस आप चुप रहना। मैनें नोटों को बंडल एई की टेबिल पर तो पटक दिया, लेकिन यह सोचने लगा कि आखिर कब तक ये चोर अधिकारी हमारे पैसे से ही हमारा मुंह बंद कराते रहेंगे। मैंने भी ठान ली है कि जब तक इस एई को निलंबित नहीं कराता, चैन नहीं लूंगा।

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