Tuesday, 17 April 2012

दीवाना गुरु

कहते हैं कि किसी काम को करो, तो दीवानगी की हद तक। तभी वह काम पूरा होता है और परिणाम भी अच्छा निकलता है। साथ ही यह शर्त भी है कि आपका काम ऐसा होना चाहिए, जिससे किसी को नुकसान न पहुंचे। या फिर किसी की आत्मा को ठेस न लगे। चाहे यह काम साहित्य सर्जन का हो। या फिर कोई खेल या मनोरंजन का हो। या आफिस का काम हो। या फिर समाज सेवा का क्षेत्र। इसे पूरा करने के लिए दीवाना गुरु की तरह दीवानगी तो हो, लेकिन काम दीवाना गुरु की तरह का न हो। उसे देखकर तो सभी नफरत करने लगे थे।
दीवाना गुरु। यानी इंटरमीडिएट कॉलेज में शिक्षक। करीब तीस साल पहले इस इस शिक्षक के पास बच्चों की ट्यूशन के लिए मारामारी होती थी। गुरु पढ़ाते थे तो  दीवानगी ही हद तक। यहां तक तो गुरु का काम ठीक था, लेकिन एक शिष्य छात्रा को दिल दे बैठे। प्यार एकतरफा था। गुरु के प्रस्ताव को छात्रा ने इंकार कर दिया। ट्यूशन छोड़ दी, लेकिन गुरु तो उसकी दीवाना हो गया। बच्चों को पढ़ाने में गुरु का मन नहीं लगता। उनका समय छात्रा का पीछा करने में ही बीतने लगा। एक झलक छात्रा की देखने के लिए वह छात्रा के घर के आसपास हर सुबह, दोपहर व शाम को चक्कर लगाते। समय बीता छात्रा जवान हुई और गुरुजी अधेड़। पीछा छुड़ाने के लिए कई मर्तबा मोहल्ले के लोगों ने गुरु की पिटाई भी की, लेकिन हरकत नहीं सुधरी। कितना पतन हुआ इस समाज का, जिस गुरु को दूसरों को ज्ञान देना था, वही ज्ञान के लिए मोहताज था। छात्रा के मोहल्ले के लोगों ने गुरु का नाम दीवाना गुरुजी रख दिया। इस नाम से उसे बच्चा -बच्चा पहचानने लगा।
मां-बाप ने गुरु से प्रताड़ित बेटी का विवाह कर दिया। इसके बाद भी गुरु ने सुबह शाम इस महिला के ससुराल के चक्कर लगाने जारी रखे। घर से कुछ दूर दीवाना गुरु खड़े होकर अपनी पूर्व शिष्या की एक झलक देने को आतुर रहता। समय ने फिर करवट बदली। महिला के पति की मौत हो गई। दीवाना गुरु ने उससे फिर विवाह का प्रस्ताव रखा। महिला ने फिर इंकार किया। वह तो दीवाना गुरु की दीवानगी के तरीके से ही नफरत करती थी।
पति की मौत के बाद इस महिला की पति की जगह सरकारी नौकरी लग गई। उसने किसी दूसरे से विवाह भी कर लिया। बच्चों की मां भी बनी। उधर, दीवाना गुरु विक्षिप्त सा रहने लगा। नौकरी चली गई। चेहरे पर दाढ़ी बड़ी रहती। सुबह महिला के घर से दफ्तर तक उसकी मोपेड के पीछे दौड़ लगाना। शाम को छुट्टी के समय महिला के दफ्तर के आगे खड़ा हो जाना। जब तक महिला नहीं दिखाई देती तो दीवाना गुरु की चहलकदमी बड़ जाती। तेजी से सिगरेट के कश लगाता। जैसे ही महिला की मोपेड नजर आती तो उछलकर उस दिशा की तरफ जाती किसी साइकिल या स्कूटर के पीछे बैठना, जिस दिशा में महिला को जाना होता था। इसी पीछा करने के फेर में एक दिन दीवाना गुरु दुर्घटना का शिकार हुए और अपनी टांग तुड़वा बैठे। दीवाना गुरु बिस्तर पर और एक पूरे पांव में प्लास्टर। शायद महिला खुश थी कि चलो कुछ राहत मिली। पर दीवाना गुरु भी पक्के ढीट। कुछ दिन बिस्तर पर रहने के बाद लंबें बांस के डंडे का सहारा लेकर फिर से पांव में पलस्टर समेत ही महिला के घर के चक्कर लगाने लगे। यह क्रम तब तक जारी रहा, जब तक दीवाना गुरु की मौत नहीं हो गई। इस मौत के बाद महिला ने युवावस्था से झेल रही त्रास्दी से छुटकारा पाया। वहीं दीवाना गुरु की दीवानगी की कहानी का भी अंत हो गया। हर एक की नजर में दीवाना गुरु गलत था। प्रेम के इजहार का उसका तरीका भी गलत था, लेकिन क्या महिला अपनी जगह सही थी। जो इस दीवाने की भावनाओं को नहीं समझ पाई। या फिर वह अपनी भावनाओं से समझाकर दीवाने की गलतफहमी को दूर नहीं कर सकी।
                                                                          भानु बंगवाल           

1 comment:

  1. दीवाना गुरू की कहानी दर्दनाक है। निश्चित रूप से वह महिला से बेपनाह मुहब्बत करता था। लेकिन यह मुहब्बत एक पक्षीय थी। या तो दीवाना गुरू दुर्भाग्यशाली था या वह फरहाद का वंशज था। वैसे आम तौर पर महिलाएं या यूं कह लीजिए लड़कियां सच्चे लड़कों को फ्राड और फ्राड लड़कों को अच्छा समझती हैं।

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