Thursday, 12 April 2012

महंगाईः कम करो आवश्यकताएं

दो दिन से मौसम ने अचानक करवट बदली। पिछली रात तो बूंदाबांदी के साथ ओले भी गिरे। रात को तेज हवा भी चली और ठंडक फिर से लौट आई। हवा के साथ ही रात करीब 11 बजे घर की बिजली भी चली गई। कुछ परेशानी जरूर हुई, लेकिन गर्मी न होने से बिजली जाने का मलाल नहीं हुआ। देहरादून में बगैर पंखा चलाए पूरी रात बीत गई। सुबह बिजली आई। साथ ही जब सभी समाचार पत्रों पर नजर दौड़ाई, तो सोचने लगा कि मुझ जैसे आम आदमी के घर से अब तो हर रात बिजली गायब रहनी चाहिए। सभी समाचार पत्रों में बिजली की कीमत में इजाफे का समाचार छपा था। यानि सुबह उठते ही बिजली जोर का झटका दे गई।
पेट्रोल की कीमतों का बार-बार बढ़ना अब आम हो गया। रसोई गैस भी बीच-बीच में चूल्हे की आंच को महंगाई की हवा देती है। सब्जियों की कीमत में आग लग चुकी है। 15 से 20 रुपये पाव से कम सब्जी आती नहीं है। नए सत्र में बच्चों के स्कूल की फीस भी बढ़ गई। बगैर ट्यूशन के बच्चों की पढ़ाई मुश्किल है। आय कम और खर्च ज्यादा। यही हकीकत है आम आदमी की। अब बिजली तो झटका दे चुकी है, उस पर पानी भी त्योरियां चढ़ा रहा है। कहा जाता है कि कभी भारत में दूध व घी की नदिया बहती थी। अब तो पानी की कीमत दूध की कीमत का पीछा करती नजर आ रही है। पंद्रह से बीस रुपये में आधा लीटर दूध का पैकेट मिलता है, वहीं एक लीटर मिनरल वाटर भी पंद्रह  रुपये में मिलता है।
कहा गया है कि- आय से अधिक खर्च करने वाले तिस्कार सहते हैं और कष्ट भोगते हैं। साथ ही यह भी कहा गया कि -प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं, आवश्यकता कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बैठाएं। बिजली के झटके को कम करने के लिए अब मैं गीजर के बजाय ठंडे पानी से नहा रहा हूं। बच्चों को सख्त हिदायत है कि बहुत जरूरी हो तभी लाइट जलाएं। पढ़ाई भी दिन के उजाले में ही करें। तभी आम आदमी की आवश्यकता कम होगी।  ट्रैफिक के नियमों का इसलिए पालन करता हूं कि कहीं चालान हुआ तो कहां की आवश्यकता कम करके इसे भुगतुंगा। दो किलो की बजाय अब डेढ़ किलो दूध से काम चला रहा हूं। साथ ही भगवान से प्रार्थना करता हूं कि यहां रोज बारिश हो, जिससे गर्मियों में पंखा चलाने की नौबत न आए।
                                                                                                      भानु बंगवाल     

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