आज जब भी कहीं महिला व उनके अधिकारों की बात होती है, तो स्वयंसेवी संस्थाएं चिल्लपौं मचाने लगती है। हर तरफ एक ही बात होती है कि नारी का शोषण हो रहा है। पति अपनी पत्नी का, सास बहू का, बहू सास का, समाज महिला का, दफ्तर में अफसर महिला कर्मचारी का या फिर कहें कि कहीं न कहीं महिला का शोषण हो रहा है। कई बार तो इस शोषण को करने वाली भी महिला है और शोषित होने वाली भी महिला होती है। इन सबके बावजूद भले ही महिला उत्पीड़न के खिलाफ कई कानून सरकार ने बनाए हैं, लेकिन धरातल पर आज भी महिलाओं की स्थिति में को ज्यादा बेहतर नहीं कहा जा सकता। ऐसा नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार लागने के प्रयास नहीं हो रहे हैं, ऐसे काम में कई लोग लगे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति को मैने देखा कि जो लड़ाई के माध्यम से महिलाओं के विवाद निपटाने का गुर सिखाता है। सरकार के कानूनों को उसके सामने हकीकत के तराजू में तौले तो सब बौने नजर आएंगे। यही तो है एक छोटे से चूड़ी वाले का छोटा सा प्रयास।
अक्सर महिलाएं अपना दुख-दर्द महिलाओं को ही बताती हैं, लेकिन घनश्याम ऐसा व्यक्ति है, जिसके सामने बेझिझक होकर महिलाएं अपनी आपबीती सुना देती थीं। ऐसे में घनश्याम उन्हें सिर्फ सांत्वना ही दे पाता। वह गंभीरता से महिलाओं की आपबीती सुनता। साथ ही परेशानी को कम करने के सुझाव भी देता। वह ऐसी महिलाओं के लिए कुछ करना चाहता, लेकिन उसे समझ नहीं आता कि क्या करे। वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि लाचार महिलाओ के लिए वह ऐसा क्या कर सकता है कि जिससे महिलाएं मजबूत हो सके। फिर उसने इसका उपाय तलाश लिया और शुरू कर दिया महिलाओं को सबल बनाने का प्रयास।
देहरादून के एक तंग मोहल्ले में चूड़ी की दुकान चलाता है घनश्याम। काफी साल पुरानी उसकी दुकान में महिलाओं की भीड़ भी रहती है। महिलाएं उससे इस कदर घुल मिलकर बात करती हैं, जैसे वह उनके दुख हर लेगा। अपने घर परिवार की परेशानी को महिलाएं घनश्याम को विस्तार से सुनाने लगती हैं। चूड़ी पहनाते-पहनाते घनश्याम भी महिलाओं के दुख-दर्द में इस कदर शरीक हो गया कि उसने नाजुक कलाइयों को मजबूत करने की ठान ली। अक्सर दुकान में आने वाली महिलाओं की परेशानी के पीछे घनश्याम ने यही पाया कि परेशानी की मूल जड़ आर्थिक समस्या से जुड़ी है। जब तक महिलाएं खुद आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होंगी, तब तक उनकी समस्याएं दूर नहीं होगी। सबसे पहले महिलाओं को अपने को आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा। यदि महिलाएं व्यस्त रहेंगी तो उन्हें पारिवारिक विवाद में पड़ने की भी फुर्सत नहीं होगी।
यहीं से घनश्याम ने महिलाओं को सबल बनाने के लिए अपनी छोटी सी दुकान में चूड़ी के कारोबार के साथ ही महिलाओं के लिए ब्यूटीशियन, मेहंदी, कूकिंग, पेंटिंग, हस्तकला, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई के साथ ही नृत्य, संगीत व कंप्यूटर प्रशिक्षण के निशुल्क कोर्स शुरू किए। इससे महिलाएं जुड़ती चली गई और वह उनके रोजगार की व्यवस्था भी करता चला गया। ऐसे में कई महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत होती चली गई। अब ऐसी महिलाओं के ज्यादातर दिन भर काम में व्यस्त रहने से उनके घरों में पारिवारिक विवाद कुछ कम हुए, लेकिन समाप्त नहीं हो सके। ऐसे में घनश्याम ने प्रशिक्षण के दौरान एक अन्य कोर्स लड़ाई के नाम से शुरू किया। इस कोर्स का मकसद था महिलाओं को लड़ाई झगड़े से दूर रहने व बचने के उपाय सुझाना। इस कोर्स के माध्यम से सास-बहु, ननद-भाभी, देवरानी-जेठानी आदि के झगड़ों पर अंकुश लगाने की कला महिलाओं को सिखाई जाने लगी। इसके तहत महिला प्रशिक्षणार्थी आपस में एक दूसरे की कमजोरी का खुलासा करके दूसरे को उकसाती। वहीं, विवाद बढ़ाने की बजाय परिस्थितियों को कैसे संभाला जाए इसका अभ्यास किया जाता। समझाया जाता है कि विवाद बढ़ाने की बजाय झुकना सीखो। सचमुच एक छोटे से चूड़ीवाले का प्रयास रंग ला रहा है। उसकी दुकान में ही बनाए गए प्रशिक्षण केंद्र में चलने वाली लड़ाई तो महिलाओ की भलाई के लिए है।
भानु बंगवाल
अक्सर महिलाएं अपना दुख-दर्द महिलाओं को ही बताती हैं, लेकिन घनश्याम ऐसा व्यक्ति है, जिसके सामने बेझिझक होकर महिलाएं अपनी आपबीती सुना देती थीं। ऐसे में घनश्याम उन्हें सिर्फ सांत्वना ही दे पाता। वह गंभीरता से महिलाओं की आपबीती सुनता। साथ ही परेशानी को कम करने के सुझाव भी देता। वह ऐसी महिलाओं के लिए कुछ करना चाहता, लेकिन उसे समझ नहीं आता कि क्या करे। वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि लाचार महिलाओ के लिए वह ऐसा क्या कर सकता है कि जिससे महिलाएं मजबूत हो सके। फिर उसने इसका उपाय तलाश लिया और शुरू कर दिया महिलाओं को सबल बनाने का प्रयास।
देहरादून के एक तंग मोहल्ले में चूड़ी की दुकान चलाता है घनश्याम। काफी साल पुरानी उसकी दुकान में महिलाओं की भीड़ भी रहती है। महिलाएं उससे इस कदर घुल मिलकर बात करती हैं, जैसे वह उनके दुख हर लेगा। अपने घर परिवार की परेशानी को महिलाएं घनश्याम को विस्तार से सुनाने लगती हैं। चूड़ी पहनाते-पहनाते घनश्याम भी महिलाओं के दुख-दर्द में इस कदर शरीक हो गया कि उसने नाजुक कलाइयों को मजबूत करने की ठान ली। अक्सर दुकान में आने वाली महिलाओं की परेशानी के पीछे घनश्याम ने यही पाया कि परेशानी की मूल जड़ आर्थिक समस्या से जुड़ी है। जब तक महिलाएं खुद आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होंगी, तब तक उनकी समस्याएं दूर नहीं होगी। सबसे पहले महिलाओं को अपने को आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा। यदि महिलाएं व्यस्त रहेंगी तो उन्हें पारिवारिक विवाद में पड़ने की भी फुर्सत नहीं होगी।
यहीं से घनश्याम ने महिलाओं को सबल बनाने के लिए अपनी छोटी सी दुकान में चूड़ी के कारोबार के साथ ही महिलाओं के लिए ब्यूटीशियन, मेहंदी, कूकिंग, पेंटिंग, हस्तकला, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई के साथ ही नृत्य, संगीत व कंप्यूटर प्रशिक्षण के निशुल्क कोर्स शुरू किए। इससे महिलाएं जुड़ती चली गई और वह उनके रोजगार की व्यवस्था भी करता चला गया। ऐसे में कई महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत होती चली गई। अब ऐसी महिलाओं के ज्यादातर दिन भर काम में व्यस्त रहने से उनके घरों में पारिवारिक विवाद कुछ कम हुए, लेकिन समाप्त नहीं हो सके। ऐसे में घनश्याम ने प्रशिक्षण के दौरान एक अन्य कोर्स लड़ाई के नाम से शुरू किया। इस कोर्स का मकसद था महिलाओं को लड़ाई झगड़े से दूर रहने व बचने के उपाय सुझाना। इस कोर्स के माध्यम से सास-बहु, ननद-भाभी, देवरानी-जेठानी आदि के झगड़ों पर अंकुश लगाने की कला महिलाओं को सिखाई जाने लगी। इसके तहत महिला प्रशिक्षणार्थी आपस में एक दूसरे की कमजोरी का खुलासा करके दूसरे को उकसाती। वहीं, विवाद बढ़ाने की बजाय परिस्थितियों को कैसे संभाला जाए इसका अभ्यास किया जाता। समझाया जाता है कि विवाद बढ़ाने की बजाय झुकना सीखो। सचमुच एक छोटे से चूड़ीवाले का प्रयास रंग ला रहा है। उसकी दुकान में ही बनाए गए प्रशिक्षण केंद्र में चलने वाली लड़ाई तो महिलाओ की भलाई के लिए है।
भानु बंगवाल
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