भई इन नेताओं से तो भगवान ही बचाए। जनता से इन्हें कुछ लेना देना नहीं है, लेकिन जनता के बीच हर बार वे यह जताने का प्रयास करते हैं कि वही उनके सच्चे हितेशी हैं। कई बार तो वे यह भी नहीं देखते कि मौका कौन सा है और उन्हें क्या करना चाहिए। बस उन्हें तो अपने से ही मतलब रहता है। यह मतलब है-अक्श, छवि यानी की तस्वीर। जिसे बनाए व चमकाए रखना उनका उद्देश्य है। इस उद्देश्य के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। अब इन नेताओं को देखो कहीं कोई आपदा आती है या फिर दुर्घटना होती है, तो वे भी मुंह उठाकर मौके पर पहुंच जाते हैं। ऐसे में प्रभावितों को जो राहत समय से मिलनी चाहिए, उसमें भी बाधा उत्पन्न होने लगती है। प्रेस फोटोग्राफर के कैमरे के सामने खड़े होने की इन नेताओं में होड़ रहती है। वहीं, कई छायाकारों को असली समस्या नजर नहीं आती। उन्हें भी नेता ही दिखाई देते हैं।
ऐसे नेताओं पर मुझे एक नाटक के गीत की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो इस प्रकार हैं-
बड़ा मानुष उसको कहिए, जो खीर पराई खाए रे
रावण जैसे करम करे और रघुपति राघव गाए रे
छुरी बगल में, राम भजन में, उपकारी लगने वाला ये
सज्जनता का चढ़ा मुखौटा, सबको ठगने वाला ये
ऐसे रंगे सियार से, भगवान हमें बचाए रे....
बड़ा मानुष उसको कहिये..........
दुर्घटना में कोई मरा, कौन मरा, कितने मरे, कैसे दुर्घटना हुई, इन सब बातों से नेताओं को कोई लेना देना नहीं है। वे तो यह देखते हैं कि दुर्घटना के समाचार में शोक जताने वालों में उनका नाम प्रकाशित है या नहीं।
अब उत्तरकाशी का हम उदाहरण देखें तो तीन अगस्त को असीगंगा व भागीरथी नदी में बाढ़ आने से नदी के कई तटवर्ती इलाके डूब गए। आपदा से करीब डेढ़ सौ गांवों के रास्ते ध्वस्त हो गए। 53 परिवार बेघर हो गए। तीन लोगों के शव बरामद हुए और करीब 29 लोग लापता हैं। यही नहीं प्रभावित गांवों में बिजली, पानी, संचार व सड़क सुविधाएं तहस-नहस हो गई। प्रदेश के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री के साथ ही आपदा मंत्री का प्रभावित क्षेत्रों में दौरा तो समझ आता है, लेकिन सत्ताधारी दलों के साथ ही अन्य दलों के नेताओं में क्षेत्र में भ्रमण की होड़ सी लग गई। ऐसे में प्रशासनिक अमला नेताओं की आवाभगत में जुट जाता है और राहत कार्य भी प्रभावित होने लगते हैं।
उत्तरकाशी के बाद अब गुरुवार की रात से रुद्रप्रयाग जनपद में आपदा का पहाड़ टूट रहा है। बादल फटने से ऊखीमठ ब्लॉक के अंतर्गत पांच गांव में चालीस मकान जमींदोज हो गए। 15 सितंबर तक मलबे से करीब 39 शव निकाले गए। 21 व्यक्ति अभी भी लापता बताए गए। हादसे-दर-हादसे यहीं तक सीमित नहीं हैं। 16 सितंबर की सुबह पता चला कि ऊखीमठ के एक अन्य गांव में भी एक मकान ध्वस्त होने से दो लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए। वहीं अगस्त्यमुनि ब्लॉक के जखोली क्षेत्र के किरोडा माला गांव में भी बादल फटने से एक मकान ध्वस्त हुआ और एक ही परिवार के पांच सदस्य मलबे में जिंदा दफन हो गए। सात ही गदेरे (बरसाती नदी) में आए उफान में एक मंदिर बहने से साधु व साधवी की भी जलसमाधी बन गई। ऐसे मौके पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के साथ ही सेना के जवान व प्रशासनिक अमला मलबे से शव को तलाशने में जुटा गए। वहीं स्थानीय लोग भी जी जान से राहत कार्यों में जुटे हैं। अब तक रुद्रप्रयाग जनपद में आपदा से कुल 53 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है। इनमें 48 ऊखीमठ ब्लॉक के हैं। साथ ही 17 लोग लापता हैं। इन सबके बावजूद लाशों के ढेर पर फोटो खिंचवाने की चाह नेता भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। जहां पीड़ित मलबे में दफन अपनों की तलाश कर रहे हैं, वहीं ऐसे नेता बिखरी लाशों पर अपने वोट तराश रहे हैं। हकीकत यह है कि नेताओं का दौरा भी सिर्फ वहीं तक सीमित है, जहां आसानी से उनकी कार पहुंच सकती है। यानी सड़क से लगे गांव। सिर्फ एक दो नेता ही अपवाद स्वरूप पैदल चलकर दूर दराज के गांव तक पहुंच सके। गांव तक जाकर लोगों के हालचाल पूछना भी समझ में आता है, लेकिन जिस मौके पर सभी को एकजुट होना चाहिए, वहां भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। सत्ताधारी दल के नेता अपनी तारीफ कर रहे हैं, वहीं विपक्षी सरकार की कार्यप्रणाली को कोस रहे हैं। यह कोई देखने की कोशिश नहीं कर रहा है कि घर, खेत के साथ ही अपनों को गवां चुके लोगों के पास पहनने को कपड़े तक नहीं बचे हैं। ऐसे नेताओं को मेरी सलाह है कि वे मौके पर जाने की बजाय राहत कार्यों में जुटे लोगों को अपना काम करने दें। यदि उन्हें सचमुच प्रभावितों के दुख-दर्द की चिंता है तो मदद के लिए सरकार की तारीफ या कोसने की बजाय अपनी जेब ढीली करें। तभी वे जनता के सच्चे हितैशी कहलाएंगे और पीड़ितों की दिल से उन्हें सच्ची दुआ भी लगेगी।
भानु बंगवाल
ऐसे नेताओं पर मुझे एक नाटक के गीत की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो इस प्रकार हैं-
बड़ा मानुष उसको कहिए, जो खीर पराई खाए रे
रावण जैसे करम करे और रघुपति राघव गाए रे
छुरी बगल में, राम भजन में, उपकारी लगने वाला ये
सज्जनता का चढ़ा मुखौटा, सबको ठगने वाला ये
ऐसे रंगे सियार से, भगवान हमें बचाए रे....
बड़ा मानुष उसको कहिये..........
दुर्घटना में कोई मरा, कौन मरा, कितने मरे, कैसे दुर्घटना हुई, इन सब बातों से नेताओं को कोई लेना देना नहीं है। वे तो यह देखते हैं कि दुर्घटना के समाचार में शोक जताने वालों में उनका नाम प्रकाशित है या नहीं।
अब उत्तरकाशी का हम उदाहरण देखें तो तीन अगस्त को असीगंगा व भागीरथी नदी में बाढ़ आने से नदी के कई तटवर्ती इलाके डूब गए। आपदा से करीब डेढ़ सौ गांवों के रास्ते ध्वस्त हो गए। 53 परिवार बेघर हो गए। तीन लोगों के शव बरामद हुए और करीब 29 लोग लापता हैं। यही नहीं प्रभावित गांवों में बिजली, पानी, संचार व सड़क सुविधाएं तहस-नहस हो गई। प्रदेश के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री के साथ ही आपदा मंत्री का प्रभावित क्षेत्रों में दौरा तो समझ आता है, लेकिन सत्ताधारी दलों के साथ ही अन्य दलों के नेताओं में क्षेत्र में भ्रमण की होड़ सी लग गई। ऐसे में प्रशासनिक अमला नेताओं की आवाभगत में जुट जाता है और राहत कार्य भी प्रभावित होने लगते हैं।
उत्तरकाशी के बाद अब गुरुवार की रात से रुद्रप्रयाग जनपद में आपदा का पहाड़ टूट रहा है। बादल फटने से ऊखीमठ ब्लॉक के अंतर्गत पांच गांव में चालीस मकान जमींदोज हो गए। 15 सितंबर तक मलबे से करीब 39 शव निकाले गए। 21 व्यक्ति अभी भी लापता बताए गए। हादसे-दर-हादसे यहीं तक सीमित नहीं हैं। 16 सितंबर की सुबह पता चला कि ऊखीमठ के एक अन्य गांव में भी एक मकान ध्वस्त होने से दो लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए। वहीं अगस्त्यमुनि ब्लॉक के जखोली क्षेत्र के किरोडा माला गांव में भी बादल फटने से एक मकान ध्वस्त हुआ और एक ही परिवार के पांच सदस्य मलबे में जिंदा दफन हो गए। सात ही गदेरे (बरसाती नदी) में आए उफान में एक मंदिर बहने से साधु व साधवी की भी जलसमाधी बन गई। ऐसे मौके पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के साथ ही सेना के जवान व प्रशासनिक अमला मलबे से शव को तलाशने में जुटा गए। वहीं स्थानीय लोग भी जी जान से राहत कार्यों में जुटे हैं। अब तक रुद्रप्रयाग जनपद में आपदा से कुल 53 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है। इनमें 48 ऊखीमठ ब्लॉक के हैं। साथ ही 17 लोग लापता हैं। इन सबके बावजूद लाशों के ढेर पर फोटो खिंचवाने की चाह नेता भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। जहां पीड़ित मलबे में दफन अपनों की तलाश कर रहे हैं, वहीं ऐसे नेता बिखरी लाशों पर अपने वोट तराश रहे हैं। हकीकत यह है कि नेताओं का दौरा भी सिर्फ वहीं तक सीमित है, जहां आसानी से उनकी कार पहुंच सकती है। यानी सड़क से लगे गांव। सिर्फ एक दो नेता ही अपवाद स्वरूप पैदल चलकर दूर दराज के गांव तक पहुंच सके। गांव तक जाकर लोगों के हालचाल पूछना भी समझ में आता है, लेकिन जिस मौके पर सभी को एकजुट होना चाहिए, वहां भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। सत्ताधारी दल के नेता अपनी तारीफ कर रहे हैं, वहीं विपक्षी सरकार की कार्यप्रणाली को कोस रहे हैं। यह कोई देखने की कोशिश नहीं कर रहा है कि घर, खेत के साथ ही अपनों को गवां चुके लोगों के पास पहनने को कपड़े तक नहीं बचे हैं। ऐसे नेताओं को मेरी सलाह है कि वे मौके पर जाने की बजाय राहत कार्यों में जुटे लोगों को अपना काम करने दें। यदि उन्हें सचमुच प्रभावितों के दुख-दर्द की चिंता है तो मदद के लिए सरकार की तारीफ या कोसने की बजाय अपनी जेब ढीली करें। तभी वे जनता के सच्चे हितैशी कहलाएंगे और पीड़ितों की दिल से उन्हें सच्ची दुआ भी लगेगी।
भानु बंगवाल
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