ये डर ही ऐसी चीज है कि इससे कोई अछूता नहीं रहता। डर का कई बार वाजिब कारण होता है और कई बार तो इसका कारण भी नहीं होता, लेकिन यह भीतर ही भीतर व्यक्ति को कचौटता रहता है। हर व्यक्ति को कहीं न कहीं दूसरे से डर रहता है। यानी की असुरक्षा की भावना। नेता डरता है प्रतिद्वंद्वी से। सेठ डरता है चोर और डकैत से। मालिक डरता है कर्मचारी से कि कहीं वेतन बढ़ाने की डिमांड न कर दें। ऐसे में वह कर्मचारी को हमेशा डराने का प्रयास करता है। इसके विपरीत कर्मचारी डरते हैं मालिक से कि कहीं किसी बहाने से नौकरी से बाहर का रास्ता न दिखा दें। इसी डर को लेकर देश की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था, सामंतशाही व भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुए गौरख पांडे ने लिखा था कि-
-वे डरते हैं
किस चीज से डरते हैं वे,
तमाम पुलिस, फौज, गोला बारुद
के बावजूद वे डरते हैं,
क्योंकि एक दिन,
उनसे डरने वाले
डरना बंद कर देंगे
ये डर तो राजा भोज को भी है और गंगू तेली को भी। दून में लगातार बारिश हो रही है। नदी किनारे बसे लोगों को हर समय बाढ़ का डर सताया रहता है, वहीं पहाड़ों में लोगों को भूस्खलन का डर रहता है। गांवों में किसान को खेत में जाने के दौरान सांप का डर रहता है। ऐसे में वह भी सतर्क रहता है। यह डर ही तो है कि अहिंसक प्रवृति का व्यक्ति भी घर में घुस आए सांप व बिच्छू को इसलिए मारने का प्रयास करता है कि कहीं वे उसे डस या काट न ले। यानी खुद को सुरक्षित रखने के लिए व्यक्ति साम, दाम, दंड, भेद सभी हथकंडों का इस्तेमाल करता है। मेरा तो मानना है कि भविष्य से प्रति बेवजह डरने की बजाय व्यक्ति को परिस्थितियों से सामना करने को तैयार रहना चाहिए। तभी वह सुखी रह सकता है। डर का भ्रम पालने से कोई खुश नहीं रह सकता। डर तो वहम है। कई बार तो इसका कोई कारण ही नहीं होता और व्यक्ति बेवजह मन में वहन पालकर डलने लगता है।
हाल ही की बात है। देहरादून के नथुवावाला गांव में मेरे एक मित्र की पत्नी ने कपड़े धोए और छत पर सुखाने को डाल दिए। इस बीच बारिश हुई और तेज हवा भी चली। इन कपड़ों में मित्र की लाल रंग की कमीज हवा से उड़कर कहीं चली गई। आसपास तलाशने के बाद भी कमीज नहीं मिली। दो-चार दिन में वे कमीज को भी भुला बैठे। मित्र के पड़ोसी व्यक्ति के घर के आंगन पर एक बड़ा सा लीची का पेड़ है। एक दिन पड़ोसी की नजर पेड़ की डाल पर पड़ी, जहां भिरड़ (डंक मारने वाली मक्खियां) का छत्ता नजर आया। ऐसे में पड़ोसी डर गया कि मक्खियों ने यदि घर के किसी सदस्य को काट लिया तो परेशानी हो जाएगी। चार-पांच भिरड़ के एकसाथ काटने पर व्यक्ति की मौत तक हो जाती है। इस पर पड़ोसी ने छत्ता हटाने की जुगत लगाई। एक लंबा बांस लेकर उसने उसके सिरे पर कपड़ा बांधा। कपड़े पर मिट्टी तेल डालकर आग लगाई और छत्ते के समीप ले गया। घुआं लगने पर भी छत्ते पर हलचल नहीं हुई। इस पर पड़ौसी ने गौर से छत्ते पर देखा तो पता चला कि वहां छत्ता था ही नहीं। उसे तो छत्ते का भ्रम हो रहा था। वह पेड़ पर चढ़ा और पास जाकर देखा कि छत्ता जैसी नजर आने वाली वस्तु तो कपड़ा थी। वह वही कमीज थी, जो मित्र की छत से उड़ गई थी और पेड़ की डाल में फंसी हुई थी। बारिश व हवा के चलते कमीज की गठरी से बन गई थी, जो छत्ता नजर आ रही थी।
भानु बंगवाल
-वे डरते हैं
किस चीज से डरते हैं वे,
तमाम पुलिस, फौज, गोला बारुद
के बावजूद वे डरते हैं,
क्योंकि एक दिन,
उनसे डरने वाले
डरना बंद कर देंगे
ये डर तो राजा भोज को भी है और गंगू तेली को भी। दून में लगातार बारिश हो रही है। नदी किनारे बसे लोगों को हर समय बाढ़ का डर सताया रहता है, वहीं पहाड़ों में लोगों को भूस्खलन का डर रहता है। गांवों में किसान को खेत में जाने के दौरान सांप का डर रहता है। ऐसे में वह भी सतर्क रहता है। यह डर ही तो है कि अहिंसक प्रवृति का व्यक्ति भी घर में घुस आए सांप व बिच्छू को इसलिए मारने का प्रयास करता है कि कहीं वे उसे डस या काट न ले। यानी खुद को सुरक्षित रखने के लिए व्यक्ति साम, दाम, दंड, भेद सभी हथकंडों का इस्तेमाल करता है। मेरा तो मानना है कि भविष्य से प्रति बेवजह डरने की बजाय व्यक्ति को परिस्थितियों से सामना करने को तैयार रहना चाहिए। तभी वह सुखी रह सकता है। डर का भ्रम पालने से कोई खुश नहीं रह सकता। डर तो वहम है। कई बार तो इसका कोई कारण ही नहीं होता और व्यक्ति बेवजह मन में वहन पालकर डलने लगता है।
हाल ही की बात है। देहरादून के नथुवावाला गांव में मेरे एक मित्र की पत्नी ने कपड़े धोए और छत पर सुखाने को डाल दिए। इस बीच बारिश हुई और तेज हवा भी चली। इन कपड़ों में मित्र की लाल रंग की कमीज हवा से उड़कर कहीं चली गई। आसपास तलाशने के बाद भी कमीज नहीं मिली। दो-चार दिन में वे कमीज को भी भुला बैठे। मित्र के पड़ोसी व्यक्ति के घर के आंगन पर एक बड़ा सा लीची का पेड़ है। एक दिन पड़ोसी की नजर पेड़ की डाल पर पड़ी, जहां भिरड़ (डंक मारने वाली मक्खियां) का छत्ता नजर आया। ऐसे में पड़ोसी डर गया कि मक्खियों ने यदि घर के किसी सदस्य को काट लिया तो परेशानी हो जाएगी। चार-पांच भिरड़ के एकसाथ काटने पर व्यक्ति की मौत तक हो जाती है। इस पर पड़ोसी ने छत्ता हटाने की जुगत लगाई। एक लंबा बांस लेकर उसने उसके सिरे पर कपड़ा बांधा। कपड़े पर मिट्टी तेल डालकर आग लगाई और छत्ते के समीप ले गया। घुआं लगने पर भी छत्ते पर हलचल नहीं हुई। इस पर पड़ौसी ने गौर से छत्ते पर देखा तो पता चला कि वहां छत्ता था ही नहीं। उसे तो छत्ते का भ्रम हो रहा था। वह पेड़ पर चढ़ा और पास जाकर देखा कि छत्ता जैसी नजर आने वाली वस्तु तो कपड़ा थी। वह वही कमीज थी, जो मित्र की छत से उड़ गई थी और पेड़ की डाल में फंसी हुई थी। बारिश व हवा के चलते कमीज की गठरी से बन गई थी, जो छत्ता नजर आ रही थी।
भानु बंगवाल
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